पंडित सुंदरलाल शर्मा (२१ दिसम्बर १८८१ - १९४०), छत्तीसगढ़ में जन जागरण तथा सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। वे कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवक, इतिहासकार, स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें 'छत्तीसगढ़ का गांधी' कहा जाता है। उनके सम्मान में उनके नाम पर पण्डित सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ की स्थापना की गई है।

जीवनी संपादित करें

21 दिसम्बर 1881 को राजिम के निकट महानदी के तट पर बसे ग्राम चंद्रसूर में उनका जन्म हुआ।उनके पिता का नाम जगलाल तिवारी था और उनकी माता का नाम देवमती था। उनकी स्कूली शिक्षा प्राथमिक स्तर तक हुई और आगे घर पर ही स्वाध्याय से आपने संस्कृत, मराठी, बांगला, उड़िया भाषाएं सीख लीं। किशोरावस्था से आप कविताएं, लेख तथा नाटक लिखने लगे। कुरीतियों को मिटाने के लिए शिक्षा के प्रचार-प्रसार को आवश्यक समझते थे। आप हिन्दी भाषा के साथ छत्तीसगढ़ी को भी महत्व देते थे। आपने हिंदी तथा छत्तीसगढ़ी में लगभग 18 ग्रंथों की रचना की, जिसमें छत्तीसगढ़ी दान-लीला चर्चित कृति है। इन्हें छ०ग० का प्रथम स्वप्नदृष्टा व संकल्पनाकार कहा जाता है। आपने छ.ग. में दुलरवा पत्रिका और हिंदी में कृष्ण जन्मस्थान पत्रिका लिखा।

19 वीं सदी के अंतिम चरण में देश में राजनैतिक और सांस्कृतिक चेतना की लहरें उठ रही थी। समाज सुधारकों, चिंतकों तथा देशभक्तों ने परिवर्तन के इस दौर में समाज को नयी सोच और दिशा दी। छत्तीसगढ़ में आपने सामाजिक चेतना का स्वर घर-घर पहुंचाने में अविस्मरणीय कार्य किया। आप राष्ट्रीय कृषक आंदोलन, मद्यनिषेध, आदिवासी आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन जुड़े और स्वतंत्रता के यज्ञवेदी पर अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।

 
उन्हे छत्तीसगढ का गाधी कहा जाता है

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए आपने अथक प्रयास किया। आपके हरिजनोद्धार कार्य की प्रशंसा महात्मा गांधी ने मुक्त कंठ से करते हुए, इस कार्य में आपको गुरु माना था। 1920 में धमतरी के पास कंडेल नहर सत्याग्रह आपके नेतृत्व में सफल रहा। आपके प्रयासों से ही महात्मा गांधी 20 दिसम्बर 1920 को पहली बार रायपुर आए।

असहयोग आंदोलन के दौरान छत्तीसगढ़ से जेल जाने वाले व्यक्तियों में आप प्रमुख थे। जीवन-पर्यन्त सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श का पालन करते रहे। समाज सेवा में रत परिश्रम के कारण शरीर क्षीण हो गया और 28 दिसम्बर 1940 को आपका निधन हुआ। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहित्य/आंचिलेक साहित्य के लिए पं. सुन्दरलाल शर्मा सम्मान स्थापित किया है। उनके नाम पर पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ की स्थापना की गई है।

प्रकाशित कृतियाँ संपादित करें

छत्तीसगढ़ी दानलीला

काव्यामृतवर्षिणी

राजीव प्रेम-पियूष

सीता परिणय

पार्वती परिणय

प्रल्हाद चरित्र

ध्रुव आख्यान

करुणा पच्चीसी

श्रीकृष्ण जन्म आख्यान

सच्चा सरदार

विक्रम शशिकला

विक्टोरिया वियोग

श्री रघुनाथ गुण कीर्तन

प्रताप पदावली

सतनामी भजनमाला

कंस वध।

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें