सुम्गल
सुम्गल लद्दाख़ के अक्साई चीन क्षेत्र में काराकाश नदी की वादी में स्थित एक उजड़ी हुई बस्ती है। यह उस क्षेत्र में पड़ता है जिसे भारत अपना अंग मानता है लेकिन जिसपर चीन का क़ब्ज़ा है। चीन ने इसे शिनजियांग प्रान्त का हिस्सा घोषित कर दिया है। लद्दाख़ क्षेत्र के सुम्गल से लगभग उत्तर में हिन्दूताश दर्रा है जिस से कुनलुन पर्वत शृंखला पार करके ऐतिहासिक ख़ोतान क्षेत्र पहुँचा जा सकता है, इसलिए सुम्गल भारत की मुख्यभूमि को ख़ोतान राज्य से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण मार्ग पर एक अहम पड़ाव हुआ करता था।
नामों का अर्थ
संपादित करेंसुम्गल लाद्दख़ी भाषा के 'ग्सुम र्गल' से उत्पन्न शब्द है जिसका मतलब 'तीन (पहाड़ी) गलियाँ' होता है। शिनजियांग की स्थानीय उईग़ुर भाषा में 'हिन्दू ताश' का मतलब 'भारतीय पर्वत' या 'भारतीय शिला' होता है। यह दर्रा भारतीय-प्रभावित ख़ोतान राज्य को लद्दाख़ के ज़रिये भारत की मुख्यभूमि से जोड़ता था, जिस से इसका नाम पड़ा है।
विवरण
संपादित करेंपूरी काराकाश वादी भारत के कश्मीर राज्य के अधीन हुआ करती थी। १८६५ में ब्रिटिश राज के भारतीय भौगोलिक निरीक्षण के अध्यक्ष विल्यम हंटर जॉनसन ने इस इलाक़े का दौरा किया और कहा कि "शाहीदुल्ला के रास्ते का अंतिम हिस्सा, जिसमें सुम्गल भी शामिल है, बहुत रमणीय है क्योंकि इसमें पूरी काराकाश वादी आती है और यह दोनों तरफ़ से ऊँचे पर्वतों से घिरा है। इस मार्ग पर मैंने नदी के पास वृक्षों और लम्बी घास से भरे कई फैले हुए पठार देखे। कश्मीर के माहराज के क्षेत्र में होने के कारण अगर कश्मीर की सरकार प्रोत्साहन दे तो इनपर लद्दाख़ी और अन्य समुदाय आसानी से कृषि चला सकते हैं। इस नदी के किनारे गाँव और बस्तियाँ स्थापित करने के कई महत्व होंगे, लेकिन यह विशेषकर इस मार्ग को किरगिज़ लुटेरों से मुक्त रखने के लिए लाभदायक होगा।" विल्सन ने करंगु ताग़ से दक्षिण पूर्व में स्थित ब्रिन्ज्गा (Brinjga) को भारत और तिब्बत की सीमा-चौकी बताया।[1]
सुम्गल से आगे आने वाला हिन्दूताश दर्रा पूर्वी कुनलुन शृंखला में स्थित है जहाँ दो अन्य महत्वपूर्ण दर्रे भी मौजूद हैं - संजू दर्रा और इल्ची दर्रा। संजू दर्रा शाहीदुल्ला खेमे के पास है और हिन्दूताश दर्रे से पश्चिमोत्तर में है जबकि इल्ची दर्रा हिन्दूताश से दक्षिण-पूर्व में है। यह पूरा क्षेत्र भारत के अक्साई चीन इलाक़े से उत्तर और पूरोत्तर में पड़ता है, जो वर्तमान में चीन के क़ब्ज़े में है। १८५७ में जर्मन खोजयात्री रॉबर्ट श्लागिंटवाईट (Robert Schlagintweit) ने सुम्गल चलकर यह दर्रा पार किया था और इसका ब्यौरा देते हुए कहा था कि यह लगभग १७,३७९ फ़ुट (५,४५० मीटर) कि ऊँचाई पर है और इसके शिकार पर तीखी ढलान पर एक हिमानी (ग्लेशियर) स्थित है जिसमें कई बर्फ़ीली खाइयाँ हैं।[2]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Himalayan frontiers: a political review of British, Chinese, Indian, and Russian rivalries, Dorothy Woodman, Praeger, 1970, ... The last portion of the route to Shadulla is particularly pleasant, being the whole way up the Karakash valley which is wide and even, and shut in on either side by rugged mountains. On this route I noticed numerous extensive plateaux near the river, covered with wood and long greaa. These being within the territory of the Maharajah of Kashmir, could easily be brought under cultivation by Ladakhees and others, if they could be induced and encouraged to do so by the Kashmeer Government. The establishment of villages and habitations on this river would be important in many points of view, but chiefly in keeping the route open from the attacks of the Khergiz robbers ...
- ↑ The Journal of the Royal Geographical Society, Volume 48, Royal Geographical Society (Great Britain), 1878, ... On the Karakash River, above Fotash, is a camping-ground called Sumgal, from which Robert Schlagintweit crossed the Kuen Luen Range by the Hindu-tagh Pass, estimated by him at 17,379 feet high. At the top of this pass is a glacier much crevassed and extremely steep ...