हिमानी
हिमानी या हिमनद पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को कहते है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती है। ध्यातव्य है कि यह हिमराशि सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे इलाकों में होती है जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के क्षय से अधिक होती है और प्रतिवर्ष कुछ मात्रा में हिम अधिशेष के रूप में बच जाता है। वर्ष दर वर्ष हिम के एकत्रण से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे हिमनद कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल देता है।
पृथ्वी पर ९९% हिमानियाँ ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं जिन पर वर्ष भर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है।[1]
ये हिमानियाँ समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी का सबसे बड़ा भण्डार हैं[2] और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं।
हिमानियों द्वारा कई प्रकार के स्थल रूप भी निर्मित किये जाते हैं जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थल रूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफ़ी बड़े क्षेत्र में हुआ था और इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थल रूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहाँ आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। वर्तमान समय में भी उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही हिमानियों का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रिया के तौर पर भी मानते हैं।
हिमानियों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादी के प्रतिरूपों, से प्रभावित होते हैं और इसीलिए इन्हें जलवायु परिवर्तन और समुद्र तल परिवर्तन का बेहतर सूचक माना जाता है।
हिमानी का निर्माण
संपादित करेंप्रकार
संपादित करेंहिमानी निर्मित स्थलरूप
संपादित करेंअपरदनात्मक
संपादित करेंभूदृश्य का उद्भव:- हिमानीकृत स्थलाकृतियाँ हिमानी के कार्य अनाच्छादन करने वाली अन्य शक्तियों या कारकों की भाँति हिमानियां भी अपरदन, परिवहन तथा निक्षेपण कार्यों द्वारा धरातल के स्वरूप को परिवर्तित करती रहती हैं । किसी हिमानी द्वारा किसी क्षेत्र विशेष की जाने वाली क्रियाओं ( अपरदन , परिवहन , निक्षेपण ) को हिमनदन ( Glaciation ) कहते हैं ।
हिमानी का अपरदन कार्य:— हिमानी के अपरदन कार्यों को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। कुछ विद्वानों अनुसार हिम अधिकतर भूमि की रक्षा करता है, जबकि अन्य के अनुसार हिमानियाँ अपरदन करती हैं। वास्तव में हिमानियां दोनों ही कार्य करती हैं। जब तक हिम गति नहीं करता है भूमि की रक्षा करता है तथा जब प्रवाहित होने लगता है तो अपरदन करता है। हिमानी मुख्यतः तीन प्रकार से अपरदन करती है:
( i ) उत्पाटन ( Plucking ):- हिमानी की तली में अपक्षय के कारण बने चट्टानों के टुकड़े गतिशील हिम साथ फँस कर आगे खिसकते रहते हैं। इसे उत्पाटन क्रिया कहते हैं ।
( ii ) अपघर्षण ( Abrasion ):- हिमानी का अधिकांश अपरदन कार्य अपघर्षण विधि से ही होता है। अकले हिम में अपरदन की अधिक क्षमता नहीं होती है। जब इसमें उत्पाटन द्वारा शिलाखण्ड व कंकड़ पत्थर जुड़ जाते हैं तो घाटी की तली व पावों को रगड़ने व खरोंचने लगते हैं । अपरदन कार्य में हिमानी से पिघला हुआ जल भी सहायता करता है ।
( iii ) सन्निघर्षण ( Attrition ):- हिमानी के साथ प्रवाहित होते हुए कंकड़ , पत्थर व शिलाखंड (शिलाखण्ड) आपस में भी रगड़ होने से खण्डित होते हैं एवं घिसते हैं। इस प्रक्रिया को सन्निघर्षण कहते हैं ।
- सर्क
- तीक्ष्ण कटक या एरेट
- गिरिश्रृंग / गिरिशृंग या हार्न
- Torn lakh
- Hanging valley
- U size valley
निक्षेप जन्य
संपादित करें- ड्रमलिन
- एस्कर
- मोरेन
- Himod
- Kem
- Eretics
हिमजल वाह जन्य
संपादित करेंजलवायु परिवर्तन और हिमनद
संपादित करेंवैज्ञानिकों का दावा है, समुद्र में 280 फीट ऊंची दीवार बनाने से नहीं पिघलेंगे ग्लेशियर। ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने नई तरकीब निकाली है, इसके तहत समुद्र में 980 फीट ऊंची धातु की दीवार बनानी होगी। जो पहाड़ के नीचे मौजूद गरम पानी ग्लेशियरों तक नहीं पहुंचने देंगे। इससे हिमखंड टूटकर समुद्र में नहीं गिरेगें। समुद्र का जलस्तर बढ़ने की कमी आएगी साथी तटीय शहरों के डूबने का खतरा भी कम होगा। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में बताया गया कि 0.1 क्यूबिक किलोमीटर से 1.5 किलोमीटर तक धातु लगेगी। अरबों रुपए खर्च होने का अनुमान है। इससे पहले इस तकनीक से दुबई का जुमेरा पार्क और हांगकांग इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया गया था। दुबई के पास जुमेरा पार्क बनाने में 0.3 किलोमीटर धातु से दीवार बनाई गई थी जिस पर 86 करोड़ रु खर्च हुए थे। [3]2016 में नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी ने बताया था कि पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है। पहाड़ के नीचे गर्म पानी भरना इसका कारण हो सकता है।[4]
हिमालय की हिमानियाँ
संपादित करेंहिमालय में हजारों छोटे-बड़े हिमनद है जो लगभग 3350 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में फैले है। कुछ विशेष हिमनदों का विवरण निम्नवत् है -
- गंगोत्री- यह 26 कि॰मी॰ लम्बा तथा 4 कि॰मी॰ चौड़ा हिमखण्ड उत्तरकाशी के उत्तर में स्थित है।
- पिण्डारी- यह गढ़वाल-कुमाऊँ सीमा के उत्तरी भाग पर स्थित है।
- सियाचिन - यह काराकोरम श्रेणी में है और 72 किलोमीटर लम्बा है
- सासाइनी - काराकोरम श्रेणी
- बियाफो - काराकोरम श्रेणी
- हिस्पर - काराकोरम श्रेणी
- बातुरा - काराकोरम श्रेणी
- खुर्दोपिन - काराकोरम श्रेणी
- रूपल - काश्मीर
- रिमो - काश्मीर, 40 किलोमीटर लम्बा
- सोनापानी - काश्मीर
- केदारनाथ - उत्तराखंड कुमायूँ
- कोसा - उत्तराखंड कुमायूँ
- जेमू - नेपाल/सिक्किम, [[२६ किलोमीटर लम्बा
- कंचनजंघा - नेपाल में स्थित है और लम्बाई १६ किलोमीटर
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Post, Austin; LaChapelle, Edward R (2000). Glacier ice. Seattle, Washington: University of Washington Press. ISBN 0-295-97910-0
- ↑ Brown, Molly Elizabeth; Ouyang, Hua; Habib, Shahid; Shrestha, Basanta; Shrestha, Mandira; Panday, Prajjwal; Tzortziou, Maria; Policelli, Frederick; Artan, Guleid; Giriraj, Amarnath; Bajracharya, Sagar R.; Racoviteanu, Adina. [1] Mountain Research and Development. International Mountain Society. Retrieved 16 सितंबर 2011.
- ↑ "ग्लोबल वॉर्मिंग- ग्लेशियर को पिघलने से रोकने की तरकीब वैज्ञानिकों ने खोज निकाली". Amar Ujala. मूल से 5 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 मई 2019.
- ↑ "ग्लैशियरों-को-पिघलने-से-बचाने-वैज्ञानिकों-ने-खोजा-तरीका-समुद्र-के-अंदर-बनाएंगे-दीवार |Wall Stop Glacier Melt ग्लैशियरों वैज्ञानिक खोजा तरीका समुद्र दीवार Hindi Latest News". news.raftaar.in. अभिगमन तिथि 14 मई 2019.[मृत कड़ियाँ]