जलवायु परिवर्तन

पृथ्वी के औसत तापमान में वर्तमान वृद्धि और उसके प्रभाव

जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी।[1] ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम है।[2] जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं[3] |


मुख्य रूप से, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा तथा उसका हास् के बीच का संतुलन ही हमारे पृथ्वी की जलवायु का निर्धारण और तापमान संतुलन निर्धारित करती हैं। यह ऊर्जा हवाओं, समुद्र धाराओं, और अन्य तंत्र द्वारा विश्व भर में वितरित हो जाती हैं तथा अलग-अलग क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती है।

कारक जो जलवायु में परिवर्तन के जिम्मेदार होते हैं जिनमे सौर विकिरण में बदलाव, पृथ्वी की कक्षा में बदलाव, महाद्वीपों की परावर्तकता में बदलाव, वातावरण, महासागरों, पर्वत निर्माण और महाद्वीपीय बहाव तथा ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता में परिवर्तन आदि शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के अंदरुनी तथा बाहरी कारक हो सकते हैं। अंदरुनी कारको में जलवायु प्रणाली के भीतर ही प्राकृतिक प्रक्रियाओं में हो रहे परिवर्तन शामिल हैं (जैसे की उष्मिक परिसंचरण), वही बाहरी कारको में कुछ प्राकृतिक (जैसे: सौर उत्पादन में परिवर्तन, पृथ्वी की कक्षा, ज्वालामुखी विस्फोट) या मानवजनित (जैसे: ग्रीन हाउस गैसों और धूल के उत्सर्जन में वृद्धि) शामिल हो सकते हैं। कुछ परिवर्तन कारको का जलवायु में बहुत जल्द ही प्रभाव पड़ता हैं जबकि कुछ प्रभवित करने में सालो लगा देते हैं

आंतरिक जलवायु परिवर्तन कारक

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महासागर-वातावरण परिवर्तनशीलता

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जलवायु परिवर्तन के कारको में सबसे बड़ा कारण मांसाहार है आदमी का भोग विलास है इसके लिए जिम्मेदार जनसंख्या वृद्धि है।और जनसंख्या वृद्धि मूल कारण है सही शिक्षा का आभाव ।

जैव, कार्बन और पानी के चक्र में अपनी भूमिका के माध्यम से जलवायु को प्रभावित करता है। इसके साथ ही वाष्पन-उत्सर्जन, बादल गठन, और प्रतिकूल मौसम के रूप में भी यह तंत्र को प्रभावित करता हैं। जैव ने, भूतकाल में जलवायु को कैसे प्रभावित किया, इसके कुछ उदाहरण हैं:

  • 2.3 अरब साल पहले हिमाच्छादन में ऑक्सिजेनिक प्रकाश संश्लेषण के विकास हुआ, जिससे ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर ऑक्सीजन मुक्त करने की प्रक्रिया शुरू हो गई।[4]
  • एक और हिमाच्छादन 300 लाख साल पहले, लंबी अवधि से दफन संवहनी भूमि-पौधों के अपघटन के द्वारा की शुरुआत हुई। (जिससे कार्बन सिंक और कोयला बनने की प्रक्रिया शुरू हुई)[5]
  • 55 लाख साल पहले समृद्ध समुद्री पादप प्लवक द्वारा पेलियोसीन-युगीन ऊष्मा की अधिकतम समाप्ति।[6]
  • 49 लाख साल पहले, 800,000 साल का आर्कटिक अजोला ब्लूम्स के कारण भूमण्डलीय तापक्रम वृद्धि के उत्क्रमण।[7]
  • घास-तृणभोजी पशु पारिस्थितिक तंत्र के विस्तार के द्वारा पिछले 40 लाख साल में वैश्विक ठंड का बढ़ना।[8][9]

बाहरी जलवायु परिवर्तन कारक

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कक्षीय परिवर्तन

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सौर उत्पादन

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सतह विवर्तनिकी

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मानवजनित

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मनुष्य आज जलवायु परिवर्तन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारकों में से एक हो गया है। यह यह परिवर्तन तापमान में वृद्धि या कमी, वर्षण में वृद्धि या कमी, मरुस्थलीकरण, अम्लीय वर्षा आदि के रूप में दिखाई पड़ते हैं इन सभी के अलग-अलग कारण हैं

जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, मानवजनित गतिविधिय ा जोकि जलवायु को प्रभावित कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिको की आम सहमति है कि "जलवायु परिवर्तनों में मानव गतिविधियों का सबसे बड़ा हाथ रहा हैं" और यह "व्यापक तौर पर अपरिवर्तनीय है।" इन मानवीय कारकों में सबसे अधिक चिंता का विषय, औद्योगिकरण के लिए कोयले और पेट्रोलियम पदार्थों जैसे फासिल फ्यूएल्स का अंधाधुंध उपयोग के कारण कार्बन डाई ऑक्साइड का बेहिसाब उत्सर्जन होना हैं, इसके अलावा वायुमंडल का सुरक्षा कवच ओजोन परत, जो सूर्य के खतरनाक रेडिएशन को रोकता है का लगातार हास होना। जनसंख्या वृद्धि, जल का बेहिसाब उपयोग, वनों की अंधाधुंध कटाई आदि भी मानवीय कारको में शामिल हैं।

ग्रीन हाउस इफेक्ट
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पृथ्वी का वातावरण सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ये गैसें सूर्य की ऊर्जा का शोषण करके पृथ्वी की सतह को गर्म कर देती है इससे पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन हो रहा है। गर्मी की ऋतु लम्बी अवधि की और सर्दी की ऋतु छोटी अवधि की होती जा रही है।[10] ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में विभिन्न गैसें :

  • कॉर्बन डाइऑक्साइड (लकड़ी ,कोयला के जलने पर ):57%
  • कॉर्बन डाइऑक्साइड (वृक्षों की कटान हो जाने पर ):17%
  • मीथेन :14%
  • नाइट्रस ऑक्साइड:8%
  • कॉर्बन डाइऑक्साइड:3%
  • फ्लोरिनेटेड गैसें :1%[10]

भौतिक साक्ष्य

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वर्ष 2015 सबसे गर्म वर्ष रहा (वर्ष 1880 से लेकर) – तापमान विसंगतियों को दर्शाते रंग: लाल-गर्म ,नील-ठंड़ा(NASA/NOAA); 20 जनवरी 2016).[11]

जलवायु परिवर्तन के साक्ष्य कई प्रकार के स्रोतों से उपलब्ध होते हैं जिन्हें पुराकालीन जलवायवीय दशाओं के विवेचन हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है। धरातलीय सतह के पास तापमान के प्रत्यक्ष मापन द्वारा प्राप्त किये गए आँकड़े, उन्नीसवीं सदी के मध्य के बाद के पूरी दुनिया के विभिन्न स्थानों के लिए उपलब्ध हैं और ये आँकड़े तार्किक निष्पत्तियाँ निकालने हेतु पर्याप्त मात्रा में मौज़ूद हैं। इससे पहले की जलवायवीय दशाओं के पुनर्निर्माण हेतु विविध अप्रत्यक्ष तरीकों से प्राप्त किये आँकड़े प्रयोग में लाये जाते हैं—पुराजलवायु वैज्ञानिक अध्ययनों में प्राप्त संरक्षित लक्षण जिनका उपयोग उस समय की जलवायु के निर्धारण में मददगार साबित होता है, अन्य संसूचक जो जलवायु दशाओं को प्रतिबिंबित करते हैं, जैसे वनस्पतियाँ, हिमक्रोड,[12] पेड़ों के आयु निर्धारक आँकड़े, समुद्रतल परिवर्तन संबंधी आँकड़े और हिमनदीय भूविज्ञान से प्राप्त आँकड़े इत्यादि।

तापमान पर्यवेक्षण और प्रातिनिधिक जलवायु आँकड़े

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पृथवी के सतह पर विभिन्न स्थानों पर सीधे तौर पर यंत्रों द्वारा मापे गए तापमान के अतिरिक्त रेडियोसोन्ड गुब्बारों द्वारा मापे गए ऊँचाई पर वायुमण्डलीय ताप दशाओं के आँकड़े भी बीसवीं सदी के मध्य के बाद मौजूद हैं। साथ ही सत्तर के दशक के बाद से उपग्रहीय आँकड़े भी उपलब्ध हैं। 18O/16O अनुपातों सम्बन्धी पर्यवेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ों का प्रयोग भी पुराने दौर की जलवायु को कल्पित करने में सहायक हैं। पृथ्वी पर जमी बर्फ़ के नमूनों में कैद ऑक्सीजन में ऑक्सीजन-18 और ऑक्सीजन-16 के अनुपात उस समय के समुद्री सतह के तापमान के बारे में बताते हैं जब यह जल वाष्पीकृत हुआ होगा, क्योंकि प्रत्येक ताप दशा के लिए इनका एक विशिष्ठ अनुपात होता है। यह तरीका प्रातिनिधिक (प्रॉक्सी) जलवायु आँकड़े प्रदान करने वाली कई विधियों में सर्वप्रमुख है।

ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य

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हाल के इतिहास में जलवायु बदलाव को चिह्नित करने के लिए बस्तियों और कृषि प्रतिरूपों में संगत बदलाव का अध्ययन किया जाता है।[13] पुरातात्विक साक्ष्य, मौखिक इतिहास और ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन पुराने समय की जलवायु को पुनःकल्पित करने में सहायक हैं। जलवायु दशाओं में परिवर्तन को कई सभ्यताओं के पतन के कारण के रूप में भी चिह्नित किया जाता रहा है।[13]

 
पिछली आधी सदी में, वैश्विक रूप से हिमनदों की मोटाई में कमी

हिमनदों को जलवायु में बदलाव के संकेतकों में सर्वथा सम्वेदनशील संकेतक के रूप में देखा जाता है। हिमनदों का आकार इनके ऊपरी हिस्से में बर्फ़बारी के कारण होने वाले बर्फ़ के आगम और निचले सिरे पर बर्फ़ के पिघलने के बीच के संतुलन पर आधारित होता है, जिसे हिमनद का द्रव्यमान संतुलन भी कहा जाता है। तापमान के अधिक होने की दशा में हिमनदों का यह द्रव्यमान संतुलन ऋणात्मक हो जाता है, अर्थात हिमपात से जितनी बर्फ़ का आगम होता है उससे ज़्यादा बर्फ़ निचले हिस्सों में पिघलने लगती है और परिणामस्वरूप हिमनद पीछे की ओर खिसकने लगता है जिसे हिमनद निवर्तन कहा जाता है। इसके विपरीत तापमान में कमी आने पर हिमनद की लम्बाई बढ़ती है।

उपरोक्त सामान्य कारण के अलावा, हिमनदों की लम्बाई में होने वाले परिवर्तन अन्य कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं और बाह्य दशाओं पर निर्भर करते हैं। इसी कारण, तापमान, वर्षण, हिमनदीय और उपहिमनदीय जलविज्ञान के तत्व मिलकर किसी एक ऋतु में भी हिमनद की लम्बाई को विविध तरीकों से प्रभावित कर सकते हैं। यही कारण है कि हिमनदों की लम्बाई के आधार पर जलवायु के बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए एक पर्याप्त समयावधि के आंकड़ों का औसत निकाल कर ही इनके आकार में होने वाले बदलाव की प्रवृत्ति देखी जाती है, ताकि लघु-समयावधि के विचलनों के प्रभाव को हटा कर केवल जलवायु के कारण हुए बदलाव को अलग से चिह्नित किया जा सके।

1970 के दशक से ही विश्व के हिमनदों की आँकड़ासूची तैयार की जाती रही है, जो मुख्यतः हवाई छायाचित्रों और इनके मानचित्रण पर आधारित है, तथापि अब यह उपग्रह आंकड़ों पर काफ़ी निर्भर हो चली है। इस आँकड़ा संग्रहण के कार्य के अन्तर्गत लगभग 24,00,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर फैले 10,00,000 से भी अधिक हिमनदों की मॉनिटरिंग की जा रही है और प्राथमिक प्राक्कलनों के मुताबिक पृथ्वी पर कुल हिमाच्छादित क्षेत्र 4,45,000 वर्ग किलोमीटर है। हिमनद निवर्तन और हिमनद द्रव्यमान संतुलन सम्बन्धी आँकड़े वल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस (विश्व हिमनद अनुवीक्षण सेवा) द्वारा वार्षिक रूप से एकत्र किये जाते हैं। इन आँकड़ों के अध्ययन से यह पता चलता है कि वैश्विक रूप से हिमनदों में सिकुड़ाव हो रहा है। इन प्रतिरूपों में, अलग-अलग समयावधियों में हिमनदों के प्रतिरूप मिले हैं, चालीस के दशक में इनके सिकुड़ने के मजबूत प्रमाण मिले हैं, जबकि बीस और सत्तर के दशकों में इनमें स्थायित्व अथवा विस्तार दर्ज किया गया और अस्सी के दशक के मध्य से वर्तमान तक इनमें पुनः व्यापक सिकुड़ाव देखा जा रहा है।

वास्तव में प्लायोसीन के बाद के काल से ही हिमनदों के फैलाव में उठते-गिरते प्रतिरूप दिखाई पड़ते हैं और हिमनद युग (ग्लेशियल पीरियड) और आन्तरा-हिमनदीय युग (इंटर-ग्लेशियल पीरियड) का आवागमन लगा रहा है। वर्तमान अन्तरा-हिमनद युग (होलोसीन) तकरीबन 11,700 वर्षों से जारी रहा है। भूवैज्ञानिक इतिहास के इन युगों में कक्षीय विचलनों के कारण हिमनदों के फैलाव क्षेत्र में यह चक्रीय विषमता देखने को मिलती है, हालाँकि, कुछ ऐसी प्रक्रियाओं का पता भी चलता है जिनके कारण बिना कक्षीय विचलनों के भी जलवायु में परिवर्तन संभव होने के प्रमाण मिले हैं।

हिमनदों द्वारा, इनके निवर्तन (पीछे लौटने) के बाद छोड़े गए पदार्थों से मोरेन का निर्माण होता है। इन मोरेन निक्षेपों में विविध प्रकार के पदार्थ होते हैं जिनके अध्ययन से ग्लेशियरों के निवर्तन के समय के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है।

आर्कटिक समुद्री हिम का क्षय

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पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में जमा बर्फ़ के विस्तार और मोटाई के आँकड़ें भी यह प्रमाणित करते हैं कि पिछले कुछ दशकों में पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन आया है। आर्कटिक सागर में जमी बर्फ़ समुद्री खारा जल है जो जमी हुई अवस्था में है और समुद्र में तैरता रहता है, इसमें ऋतुओं के साथ बदलाव आता है और इसकी मोटाई और फैलाव बदलता रहता है। उत्तरी ध्रुव के पास, आर्कटिक सागर में हर वर्ष कुछ मात्र में बर्फ़ स्थाई रूप से रहती है और गर्मियों में भी यह चादर पूरी तरह पिघल कर समाप्त नहीं होती, जबकि दक्षिणी महासागर में (अंटार्कटिका के चारों ओर) यह हर साल पूरी तरह समाप्त हो जाती है, और जाड़ों में पुनः बनती है। उपग्रह से प्राप्त आँकड़े यह बताते हैं कि उत्तरी ध्रुव की समुद्री हिमचादर 1981-2010 के औसत की तुलना में, वर्तमान में प्रतिदशक लगभग 13.3% की दर से घट रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले वर्ष इस चादर अभूतपूर्व पिघलाव दर्ज किया गया।[14]

इन्हें भी देखें

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  1. "जलवायु परिवर्तन - विकासपीडिया पर". 9 जून 2015 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 24 जून 2014.
  2. "जलवायु परिवर्तन के कारण - विकासपीडिया पर". 9 जून 2015 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 24 जून 2014.
  3. बेकाबू हो जाएगा जलवायु परिवर्तन Archived 2014-07-28 at the वेबैक मशीन रेडियो दायेच विले (जर्मन रेडियो प्रसारण सेवा)।
  4. Kasting, J. F.; Siefert, JL (2002). "Life and the Evolution of Earth's Atmosphere". Science. 296 (5570): 1066–8. बिबकोड:2002Sci...296.1066K. डीओआई:10.1126/science.1071184. पीएमआईडी 12004117. {{cite journal}}: Invalid |ref=harv (help)
  5. Mora, C. I.; Driese, S. G.; Colarusso, L. A. (1996). "Middle to Late Paleozoic Atmospheric CO2 Levels from Soil Carbonate and Organic Matter". Science. 271 (5252): 1105–1107. बिबकोड:1996Sci...271.1105M. डीओआई:10.1126/science.271.5252.1105. {{cite journal}}: Invalid |ref=harv (help)
  6. Zachos, J. C.; Dickens, G. R. (2000). "An assessment of the biogeochemical feedback response to the climatic and chemical perturbations of the LPTM". GFF. 122: 188–189. डीओआई:10.1080/11035890001221188. {{cite journal}}: Invalid |ref=harv (help)
  7. Speelman, E. N.; Van Kempen, M. M. L.; Barke, J.; Brinkhuis, H.; Reichart, G. J.; Smolders, A. J. P.; Roelofs, J. G. M.; Sangiorgi, F.; De Leeuw, J. W.; Lotter, A. F.; Sinninghe Damsté, J. S. (2009). "The Eocene Arctic Azolla bloom: Environmental conditions, productivity and carbon drawdown". Geobiology. 7 (2): 155–70. डीओआई:10.1111/j.1472-4669.2009.00195.x. पीएमआईडी 19323694.
  8. Retallack, Gregory J. (2001). "Cenozoic Expansion of Grasslands and Climatic Cooling". The Journal of Geology. 109 (4): 407–426. बिबकोड:2001JG....109..407R. डीओआई:10.1086/320791. {{cite journal}}: Invalid |ref=harv (help)
  9. Dutton, Jan F.; Barron, Eric J. (1997). "Miocene to present vegetation changes: A possible piece of the Cenozoic cooling puzzle". Geology. 25: 39. बिबकोड:1997Geo....25...39D. डीओआई:10.1130/0091-7613(1997)025<0039:MTPVCA>2.3.CO;2.
  10. "संग्रहीत प्रति". 11 फ़रवरी 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 10 फ़रवरी 2017.
  11. Brown, Dwayne; Cabbage, Michael; McCarthy, Leslie; Norton, Karen (20 January 2016). "NASA, NOAA Analyses Reveal Record-Shattering Global Warm Temperatures in 2015". NASA. 2 मई 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 21 January 2016.
  12. Petit, J. R.; Jouzel, J.; Raynaud, D.; Barkov, N. I.; Barnola, J.-M.; Basile, I.; Bender, M.; Chappellaz, J.; Davis, M.; Delaygue, G.; Delmotte, M.; Kotlyakov, V. M.; Legrand, M.; Lipenkov, V. Y.; Lorius, C.; Ritz, C.; Saltzman, E. (1999-06-03). "Climate and atmospheric history of the past 420,000 years from the Vostok ice core, Antarctica". Nature. 399 (1): 429–436. बिबकोड:1999Natur.399..429P. डीओआई:10.1038/20859. {{cite journal}}: Invalid |ref=harv (help)
  13. Demenocal, P. B. (2001). "Cultural Responses to Climate Change During the Late Holocene" (PDF). Science (journal). 292 (5517): 667–673. बिबकोड:2001Sci...292..667D. डीओआई:10.1126/science.1059827. पीएमआईडी 11303088. 17 दिसंबर 2008 को मूल से पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी 2017. {{cite journal}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  14. "संग्रहीत प्रति". 12 फ़रवरी 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी 2017.