प्रकाश-संश्लेषण

प्रकाश संश्लेषण में हरे पौधों द्वारा वातावरण से ली जाने वाली गैस का नाम

सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) को जल से बाहर निकालते और वायुमंडल में मुक्त कर देते हैं।

रासायनिक समीकरण

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6 CO2 +12H2O + प्रकाश + क्लोरोफिल → C6H12O6 + 6 O2 + 6 H2O + क्लोरोफिल[1]
कार्बन डाईआक्साइड + पानी + प्रकाश
भाग नहीं लेता है बल्कि इस अभिक्रिया के लिये प्रकाश की उपस्थिति आवश्यक है। इस रासायनिक क्रिया में कार्बनडाइऑक्साइड के ६ अणुओं और जल के १२ अणुओं के बीच रासायनिक क्रिया होती है जिसके फलस्वरूप ग्लूकोज के एक अणु, जल के ६ अणु तथा ऑकसीजन के ६ अणु उत्पन्न होते हैं। इस क्रिया में मुख्य उत्पाद ग्लूकोज होता है तथा ऑक्सीजन और जल उप पदार्थ के रूप में मुक्त होते हैं। इस प्रतिक्रिया में उत्पन्न जल कोशिका द्वारा अवशोषित हो जाता है और पुनः जैव-रासायनिक प्रतिक्रियाओं में लग जाता है। मुक्त ऑक्सीजन वातावरण में चली जाती है। इस मुक्त ऑक्सीजन का स्रोत जल के अणु है कार्बनडाइऑक्साइड के अणु नहीं। अभिक्रिया में सूर्य की विकिरण ऊर्जा का रूपान्तरण रासायनिक ऊर्जा में होता है। जो ग्लूकोज के अणुओं में संचित हो जाती है। प्रकाश-संश्लेषण में पौधों द्वारा प्रति वर्ष लगभग १00 टेरावाट की सौर्य ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में भोज्य पदार्थ के अणुओं में बाँध दिया जाता है।[2] इस ऊर्जा का परिमाण पूरी मानव सभ्यता के वार्षिक ऊर्जा खर्च से भी ७ गुणा अधिक है।[3] यह ऊर्जा यहाँ स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित रहती है। अतः प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को ऊर्जा बंधन की क्रिया भी कहते हैं। इस प्रकार प्रकाश-संश्लेषण करने वाले सजीव लगभग १0,00,00,00,000 टन कार्बन को प्रति वर्ष जैव-पदार्थों में बदल देते हैं।[4]

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

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स्टीफन हेलेस

बहुत प्राचीन काल से यह ज्ञात है कि पौधे अपना पोषण जड़ों द्वारा प्राप्त करते हैं। १७७२ में स्टीफन हेलेस ने बताया कि पौधों की पत्तियाँ वायु से भोजन ग्रहण करती हैं तथा इस क्रिया में प्रकाश की कुछ महत्वपूर्ण क्रिया है। प्रीस्टले ने १७७२ में पहले बताया कि इस क्रिया के दौरान उत्पन्न वायु में मोमबत्ती जलाई जाये तो यह जलती रहती है। मोमबत्ती जलने के पश्चात् उत्पन्न वायु में यदि अब एक जीवित चूहा रखा जाये तो वह मर जाता है। उसने १७७५ में पुनः बताया कि पौधों द्वारा दिन के समय में निकली गैस आक्सीजन होती है। इसके पश्चात इंजन हाउस ने १७७९ में बताया कि हरे पौधे सूर्य के प्रकाश में co2 ग्रहण करते हैं तथा आक्सीजन निकालते हैं। डी. सासूर ने १८०४ में बताया पौधे दिन और रात श्वसन मे तो ऑक्सीजन ही लेते है पर प्रकाश संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन मुक्त करते है। अत: ऑक्सीजन पूरे दिन काम मे आती है पर कार्बन डाइ-ऑक्साइड से ऑक्सीजन केवल प्रकाश संश्लेषण मे ही बनती है। सास ने १८८७ में बताया कि हरे पौधों के co2 ग्रहण करने तथा o2 निकालने से पौधों में स्टार्च का निर्माण होता है।

हरे पौधों में होने वाली प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पौधों एवं अन्य जीवित प्राणियों के लिये एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रिया है। इस क्रिया में पौधे सूर्य के प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक उर्जा में परिवर्तित कर देते हैं तथा CO2 पानी जैसे साधारण पदार्थों से जटिल कार्बन यौगिक कार्बोहाइड्रेट्स बन जाते हैं। इन कार्बोहाइड्रेट्स द्वारा ही मनुष्य एवं जीवित प्राणियों को भोजन प्राप्त होता है। इस प्रकार पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सम्पूर्ण प्राणी जगत के लिये भोजन-व्यवस्था करते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स प्रोटीन एवं विटामिन आदि को प्राप्त करने के लिये विभिन्न फसलें उगाई जाती हैं तथा इन सब पदार्थों का निर्माण प्रकाश संश्लेशण द्वारा ही होता है। रबड़, प्लास्टिक, तेल, सेल्यूलोज एवं कई औषधियाँ भी पौधों में प्रकाश संश्लेषण क्रिया में उत्पन्न होती है। हरे वृक्ष प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड को लेते हैं और ऑक्सीजन को निकालते हैं, इस प्रकार वातावरण को शुद्ध करते हैं। ऑक्सीजन सभी जंतुओं को साँस लेने के लिए अति आवश्यक है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए भी इस क्रिया का बहुत महत्व है।[5][6] मत्स्य-पालन के लिए भी प्रकाश संश्लेषण का बहुत महत्व है। जब प्रकाश संश्लेषण की क्रिया धीमी हो जाती है तो जल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इसका ५ सी0सी0 प्रतिलीटर से अधिक होना मत्स्य पालन हेतु हानिकारक है।[7] प्रकाश संश्लेषण जैव ईंधन बनाने में भी सहायक होता है। इसके द्वारा पौधे सौर ऊर्जा द्वारा जैव ईंधन का उत्पादन भी करते हैं। यह जैव ईंधन विभिन्न प्रक्रिया से गुज़रते हुए विविध ऊर्जा स्रोतों का उत्पादन करता है। उदाहरण के लिए पशुओं को चारा, जिसके बदले हमें गोबर प्राप्त होता है, कृषि अवशेष के द्वारा खाना पकाना आदि।[8] मनुष्य के अतिरिक्त अन्य जीव जन्तुओं में भी प्रकाश-संश्लेषण का बहुत महत्व है। मानव अपनी त्वचा में प्रकाश के द्वारा विटामिन डी का संश्लेषण करते हैं। विटामिन डी एक वसा में घुलनशील रसायन है, इसके संश्लेषण में पराबैंगनी किरणों का प्रयोग होता है। कुछ समुद्री घोंघे अपने आहार के माध्यम से शैवाल आदि पौधों को ग्रहण करते हैं तथा इनमें मौजूद क्लोरोप्लास्ट का प्रयोग प्रकाश-संश्लेषण के लिए करते हैं।[9] प्रकाश-संश्लेषण एवं श्वसन की क्रियाएं एक दूसरे की पूरक एवं विपरीत होती हैं। प्रकाश-संश्लेषण में कार्बनडाइऑक्साइड और जल के बीच रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप ग्लूकोज का निर्माण होता है तथा ऑक्सीजन मुक्त होती है। श्वसन में इसके विपरीत ग्लूकोज के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड बनती हैं। प्रकाश-संश्लेषण एक रचनात्मक क्रिया है इसके फलस्वरूप सजीव के शुष्क भार में वृद्धि होती है। श्वसन एक नासात्मक क्रिया है, इस क्रिया के फलस्वरूप सजीव के शुष्क भार में कमी आती है। प्रकाश-संश्लेषण में सौर्य ऊर्जा के प्रयोग से भोजन बनता है, विकिरण ऊर्जा का रूपान्तरण रासायनिक ऊर्जा में होता है। जबकि श्वसन में भोजन के ऑक्सीकरण से ऊर्जा मुक्त होती है, भोजन में संचित रासायनिक ऊर्जा का प्रयोग सजीव अपने विभिन्न कार्यों में करता है। इस प्रकार ये दोनों क्रियाए अपने कच्चे माल के लिए एक दूसरे के अन्त पदार्थों पर निर्भर रहते हुए एक दूसरे की पूरक होती हैं।

क्रिया विधि : विभिन्न मत

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प्रकाश संश्लेषण, जल को तोडकर O2 निकालता है एवं CO2 को शर्करा (sugar) के रूप में बदल देता है।

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया केवल हरे पौधों से होती है और समीकरण अत्यन्त साधारण है। फिर भी यह एक विवादग्रस्त प्रश्न है कि किस प्रकार CO2 एवं पानी जैसे सरल पदार्थ, कार्बोहाइड्रेट्स जैसे जटिल पदार्थों का निर्माण करते हैं। समय-समय पर विभिन्न पादप कार्यिकी विशेषज्ञों ने इस क्रिया को समझने के लिये विभिन्न मत प्रकट किये हैं। इनमें बैयर, विल्सटेटर तथा स्टाल तथा आरनोन के मत प्रमुख हैं। बैयर, विल्सटेटर तथा स्टाल के मतों का केवल ऐतिहासिक महत्व है। इनको बाद के परीक्षणों में सही नहीं पाया गया। 1968 में आरनोन ने बताया कि क्लोरोप्लास्ट में पायी जाने वाली प्रोटीन फैरोडोक्सिन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में मुख्य कार्य करती है। आधुनिक युग में सभी वैज्ञानिकों द्वारा यह मान्य है कि प्रकाश संश्लेषण में स्वतन्त्र आक्सीजन पानी से आती है। आधुनिक समय में अनेक प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया निम्न दो चरणों में सम्पन्न होती है| प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में दोनों प्रक्रियायें एक दूसरे के पश्चात होती है। प्रकाश प्रक्रिया अंधेरी प्रक्रिया की उपेक्षा अधिक तेजी से होती है।

प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पौधे के सभी क्लोरोप्लास्ट युक्त कोशिकाओं में होती है। अर्थात पौधे के समस्त हरे भागों में होती है। यह क्रिया विशेषतः पत्तियों के मीसोफिल ऊतक में होती है क्योंकि पत्तियों के मीसोफिल उतक की पेरेन्काइमा कोशिकाओं में अन्य कोशिकाओं की उपेक्षा क्लोरोप्लास्ट की मात्रा अधिक होती है।

प्रकाश प्रक्रिया, हिल प्रक्रिया अथवा फोटोकेमिकल प्रक्रिया

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क्लोरोप्लास्ट में होने वाली प्रकाश अभिक्रिया

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में जो प्रक्रिया प्रकाश की उपस्थिति में होती है उसे प्रकाश क्रिया के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। इस क्रिया को हिल आदि अन्य वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया गया। प्रकाश प्रक्रियाओं के समय अंधेरी प्रक्रियाएं सीमाबद्ध कारक का कार्य करती हैं। प्रकाश प्रक्रियायें दो चरणों में होती हैं, फोटोलाइसिस एवं हाइड्रोजन का स्थापन। फोटोलाइसिस की प्रक्रिया में प्रकाश क्लोरोफिल के अणु द्वारा फोटोन के रूप में अवशोषित की जाती है। जब क्लोरोफिल का अणु एक क्वान्टम प्रकाश शोषित कर लेता है उसके पश्चात् क्लोरोफिल का दूसरा अणु तब तक प्रकाश शोषित नहीं करता है जब तक कि पहली ऊर्जा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में प्रयोग नहीं हो जाती है। क्लोरोफिल द्वारा इस प्रकार शोषित प्रकाश का फोटोन उच्च ऊर्जा स्तर पर एक इलेक्ट्रान निकालती है तथा यह शक्ति फास्फेट के तीसरे बाँड पर स्थित होकर उच्च ऊर्जा वाले एडिनोसाइन ट्राइफास्फेट के रूप में प्रकट होते हैं। इस प्रकार क्लोरोपिल प्रकाश की उपस्थिति में एटीपी उत्पन्न करते हैं तथा इस प्रक्रिया को फोस्फोराइलेशन कहते हैं। इस प्रकार सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा एटीपी अर्थात् रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार क्लोरोफिल अणु में निर्मित एटीपी क्लोरोफिल अणु से पृथक होकर CO2 को शर्करा में अनाक्सीकृत होने आदि अनेक रासायनिक क्रियाओं में सहायक है। क्लोरोफिल इस एटीपी को स्वतन्त्र करने पर फिर अक्रिय हो जाता है। वान नील फ्रैंक, विशनिक के अनुसार पानी जब इस क्रियाशील क्लोरोफिल के सम्पर्क में आते हैं तब पानी अनाक्सीकृत H तथा तेज आक्सीकारक OH में विच्छेदित हो जाता है।

क्लोरोफिल + प्रकाश → सक्रिय क्लोरोफिल
H2O + सक्रिय क्लोरोफिल → H+ + OH-
इस फोटोलाइसिस प्रक्रिया में O2 पानी से स्वतन्त्र हो जाती है तथा हाइड्रोजन भी हाइड्रोजन ग्राहक पर चली जाती है।
2H2O + 2A → 2AH2 + O2
इस प्रकार पौधों की प्रकाश-संश्लेषण की क्रियायों से निकली समस्त आक्सीजन जल से प्राप्त होती हैं। हिल, रूबेन ने इसका समर्थन किया तथा O18 का प्रयोग करके इसको सिद्ध किया। पानी से आक्सीजन निकलने को क्लोरील्ला नामक शैवाल में CO2 की अनुपस्थिति में दिखाया गया। इसका अर्थ हुआ कि CO2 की अनुपस्थिति में आक्सीजन का उत्पादन हो सकता है, परन्तु इसमें हाइड्रोजन ग्राहक होना चाहिए। ऐसा देखा गया है कि पौधों में एनएडीपी (NADP) दो NADPH2 बनाता है।
2H2O+2NADP=2NADPH2+O2

फोस्फोरीलेशन

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आरनन के मतानुसार प्रकाश क्रिया मुख्य रूप से (एडिनोसाइन ट्राई फोस्फेट) निर्माण से सम्बन्धित है। NADPH2/NADP के अवकरण से बनता है। NADP को TPN भी कहते हैं। एटीपी एक प्रकाश ऊर्जा अणु है जो एडीपी में एक फास्फेट ग्रुप के जुड़नें से बनता है तथा इस क्रिया को फोस्फोरीलेशन कहते हैं। एडीपी के फोस्फोरीलेशन में प्रकाश ऊर्जा की आवश्यकता होती है अतः इसे फोटो-फोस्फोरीलेशन भी कहते हैं। यह भी एक जटिल क्रिया है तथा आरनन के अनुसार प्रकाश प्रक्रिया दो प्रक्रमों में होती है। अयुग्म फोटो-फोस्फोरीलेशन तथा युग्म फोटो-फोस्फोरीलेशन
अयुग्म फोटो-फोस्फोरीलेशन में पानी के अपघटन के कारण इलेक्ट्रोन निरन्तर प्राप्त होते है तथा फोटो-फोस्फोरीलेशन की क्रिया पर क्लोरोफिल में प्रकाश ऊर्जा से एटीपी का निर्माण होता रहता है। इस प्रकार क्लोरोफिल ‘a’ के सक्रिय होने पर फेरेडोक्सिन इलेक्ट्रान ग्राही का कार्य करती है जिसे एनएडीपी नामक coenzyme को देता है जिसमें एनएडी पानी द्वारा मुक्त की गई हाइड्रोजन को पकड़ कर NADPH2 में परिवर्तित हो जाता है।

24H2O → 24OH + 24H
12NADP + 24H → 12NADPH2
24OH → 12H2O + 6O2

इस प्रकार पानी में विघटन में हुए मुक्त इलेक्ट्रॉन क्लोरोफिल ‘b’ को उत्तेजित कर उच्च ऊर्जा स्तर पर पहूँच जाते हैं तथा ये इलेक्ट्रॉन फिर कस प्रकार क्लोरोफिल ‘a’ को प्राप्त होते हैं, पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं है लेकिन ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्लास्टोकविनोन नामक इलेक्ट्रोन ग्राही इन इलेक्ट्रोनों को पकड़ लेता है जो साइटोक्रोम द्वारा पुनः क्लोरोफिल ‘a’ में पहुँच जाते हैं। इसमें साथ-साथ एटीपी का भी निर्माण होता है।
युग्म फोटो-फोस्फोरीलेशन की क्रिया में सूर्य के प्रकाश से क्लोरोफिल ‘a’ सक्रिय होकर इलेक्ट्रॉन को बाहर की ओर फैंकता है जो क्लोरोफिल में उपस्थित फैरीडाक्सीन द्वारा पकड़ लिये जाते हैं। यही इलेक्ट्रोन मुक्त होकर प्लास्टोक्वीनोन नामक इलेक्ट्रोन ग्राही द्वारा पकड़ लिया जाता है। इस क्रिया के मध्य में एडीपी, एटीपी में परिवर्तित हो जाता है तथा इलेक्ट्रोन पुनः मुक्त होकर साइटोक्रोम विकर से होकर क्लोरोफिल ‘a’ में वापिस पहुँच जाता है। इस क्रिया में भी एडीपी, एटीपी में परिवर्तित हो जाता है। इस क्रिया में बाहरी इलेक्ट्रोन प्रयोग नहीं होता तथा क्लोरोफिल से इलेक्ट्रोन निकलकर पुनः वहीं वापिस आ जाता है। इस प्रकार अयुग्म व युग्म प्रक्रियाओं द्वारा पानी विघटित हो जाता है जिससे ऑक्सीजन गैस स्वतन्त्र हो जाती है तथा हाइड्रोजन, हाइड्रोजन ग्राही एनएडीपी द्वारा पकड़ ली जाती है तथा साथ ही साथ ऊर्जा भी वर्गीकृत हो जाती है जिसका प्रयोग रासायनिक प्रक्रिया या अप्रकाशीय प्रतिक्रिया में होता है।
ऑक्सीजन तथा प्रकाश-संश्लेषण

  • पौधों में श्वसन की क्रिया दिन-रात हर समय होते रहती है। श्वसन की क्रिया में पौधे अन्य सजीवों की ही तरह ऑकसीजन का प्रयोग करके कार्बनडाइऑक्साइड उत्पन्न करते हैं परन्तु दिन के समय श्वसन के साथ-साथ प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया भी होती रहती है। पौधे दिन के समय ऑक्सीजन मुक्त करते हैं क्योंकि प्रकाश-संश्लेषण में उत्पन्न ऑक्सीजन गैस का परिमाण श्वसन में खर्च होने वाली ऑक्सीजन से अधिक होती है।
  • प्रकाश-संश्लेषण में मुक्त होने वाली ऑक्सीजन गैस प्रकाशीय अभिक्रिया में उत्पन्न होती है। यह कार्वन के स्वांगीकरण में उत्पन्न नहीं होती है अतः ऑक्सीजन का स्रोत जल है कार्बनडाइऑक्साइड नहीं।

अंधेरी प्रक्रिया, ब्लेकमैन प्रक्रिया या प्रकाशहीन प्रक्रिया

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केल्विन चक्र या अंधेरी प्रक्रिया को दर्शाता चित्र

इस प्रक्रिया के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रक्रिया में प्रायः कार्बनडाइऑक्साइड का अवकरण होता है। इस प्रक्रिया में पत्ती के स्टोमेटा द्वारा ग्रहण की गई कार्बनडाइऑक्साइड, पानी से निकली हाइड्रोजन (प्रकाश प्रक्रिया के अन्तर्गत) प्रकाश की ऊर्जा (जो क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश क्रिया में प्राप्त की गई है) के कारण मिलकर एक स्थायी द्रव्य बनाता है।

CO2 + 2AH2 → CH2O + 2A + H2O

CH2O, यह एक कार्बोहाइड्रेट्स की इकाई अणु है। केल्विन व बैनसन ने रेडियो आइसोटोपिक तकनीक का प्रयोग कर बताया कि प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में पहला स्थाई यौगिक एक ३ कार्बन वाला 3-फोस्फोग्लिसेरिक अम्ल (पीजीए) बनता है। क्लोरोल्ला एवं सिनडेसमस नामक शैवालों में रेडियो एक्टिव C14O2 की उपस्थिति में कुछ समय के लिए प्रकाश-संश्लेषण कराया गया तथा इनमें भी पहला स्थाई द्रव्य फोस्फोग्लिसेरिक अम्ल बना। यह फोस्फोग्लिसेरिक अम्ल बाद में ग्लूकोज बनाता है। इस प्रकार केल्विन तथा उसके सहकर्मियों के कार्यों से यह सिद्ध हो गया कि प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया में CO2 ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाती है। उन्होंने इस प्रयोग में कार्बन के समस्थानिक (C14) का प्रयोग किया। क्लोरोफिल में राइबुलोज-1,5 विसफास्फेट उपस्थित रहता है। अब वायुमण्डलीय CO2 पत्ती के स्टोमेटा द्वारा प्रवेश कर अन्दर पहुँचती है तथा तुरन्त ही (४/१0000000 सेकेण्ड में) राइबुलोज-1,5 विसफास्फेट के साथ मिलकर एक अस्थाई यौगिक का निर्माण कती है। इस प्रकार बना अस्थाई यौगिक जो ५-कार्बन सुगर है शीघ्र ही फास्फोग्लाइसेरिक एसिड (PGA) के २ अणुओं में टूट जाता है। अब यहां पर NADPH2 द्वारा हाइड्रोजन मुक्त किये जाने पर पीजीए को पीजीएएल (phosphoglyceric aldehyde) में परिवर्तित कर देता है। इस क्रिया में ऊर्जा एटीपी से प्राप्त होती है। इस प्रकार CO2 से कार्बोहाइड्रेट्स निर्माण हो जाते हैं।

 
C4 पौधों में कार्बन का स्थिरीकरण

प्रकाश-संश्लेषण की अंधेरी प्रक्रिया में जिन पौधों में पहला स्थाई यौगिक फास्फोग्लिसरिक अम्ल बनता है उन्हें C3 पौधा कहते हैं। फास्फोग्लिसरिक अम्ल एक ३ कार्बन वाला योगिक है इसलिए इन पौधों का ऐसा नामकरण है। जिन पौधों में पहला स्थाई यौगिक ४ कार्बन वाला यौगिक बनता है उनको C4 पौधा कहते हैं। साधारणतः 4 कार्बन वाला यौगिक ओक्सैलोएसिटिक अम्ल (ओएए) बनता है। पहले ऐसा विश्वास किया जाता था कि प्रकाश-संश्लेषण में कार्बनडाइऑक्साइड के स्थिरीकरण या यौगिकीकरण के समय केवल C3 या केल्विन चक्र ही होता था अर्थात पहला स्थाई यौगिक फास्फोग्लिसरिक अम्ल ही बनता है। लेकिन १९६६ में हैच एवं स्लैक ने बताया कि कार्बनडाइऑक्साइड के स्थिरीकरण का एक दूसरा पथ भी है। उन्होंने गन्ना, मक्का, अमेरेन्थस आदि पौधों में अध्ययन कर बताया कि फोस्फोइनोल पाइरूविक अम्ल जो कि ३ कार्बन विशिष्ठ यौगिक है कार्बनडाइऑक्साइड से संयुक्त होकर 4 कार्बन विशिष्ठ यौगिक ओक्सैलोएसिटिक अम्ल बनाता है। इस क्रिया में फोस्फोइनोल पाइरूवेट कार्बोक्सिलेज इन्जाइम उत्प्रेरक का कार्य करता है।

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अवयव, उनके स्रोत और कार्य

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क्लोरोफिल, प्रकाश-संश्लेषण का एक अवयव

प्रकाश-संश्नेषण की क्रिया में चार मुख्य अवयव हैं, जल, कार्बनडाइऑक्साइड, प्रकाश एवं पर्ण हरित। इन चारों की उपस्थिति इस क्रिया के लिए अति आवश्यक है। इनमें से जल एवं कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश-संश्लेषण का कच्चा माल कहते हैं क्योंकि इनके रचनात्मक अवयवों द्वारा ही प्रकाश-संश्लेषण के मुख्य उत्पाद कार्बोहाइड्रेट की रचना होती है। इन अवयवो को पौधा अपने आस-पास के वातावरण से ग्रहण करता है।

कार्बनडाइऑक्साइड प्रकाश-संश्लेषण का एक मुख्य अवयव तथा कच्चा पदार्थ है। वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड गैस श्वसन, दहन, किण्वन, विघटन आदि क्रियाओं के द्वारा मुक्त होती है। वायु में इसकी मात्रा 0.03

% से 0.04 % होती है। स्थलीय पौधे इसे सीधे ही वायु से ग्रहण कर लेते हैं। इन पौधों की पत्तियों में छोटे छिद्र होते हैं जिन्हे पर्णरन्ध्र कहते हैं। कार्बनडाइऑक्साइड इन्हीं पर्णरन्ध्रों से पौधे की पत्तियों में प्रवेश करती है। जलमग्न पौधे जल में घुली कार्बनडाइऑक्साइड को अपनी शारीरिक सतह से विसरण द्वारा ग्रहण करते हैं। जल में कार्बनडाइऑक्साइड का स्रोत जलीय जन्तु हैं, जिनके श्वसन में यह गैस उत्पन्न होती है। जल के भीतर चट्टानों में उपस्थित कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट के विघटन से भी कार्बनडाइऑक्साइड उत्पन्न होती है जिसको जलीय पौधे प्रकाश-संश्लेषण में ग्रहण करते हैं। प्रकाश-संश्लेषण में ग्लूकोज (C6H12O6) नामक कार्बोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इसमें कार्बन (C) तथा ऑक्सीजन (C) तत्व के परमाणु कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) से ही प्राप्त होते हैं।

क्लोरोफिल क्लोरोफिल एक प्रोटीनयुक्त जटिल रासायनिक यौगिक है। यह प्रकाश-संश्लेषण का मुख्य वर्णक है। क्लोरोफिल ए तथा क्लोरोफिल बी दो प्रकार का होता है। यह सभी स्वपोषी हरे पौधों के क्लोरोप्लास्ट में पाया जाता है। क्लोरोफिल के अणु सूर्य के प्रकाशीय ऊर्जा को अवशोषित कर उसे रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित करते हैं। सूर्य के प्रकाशीय ऊर्जा को अवशोषित करके क्लोरोफिल का अणु उत्तेजित हो जाते हैं। ये सक्रिय अणु जल के अणुओं को H+ तथा OH- आयन में विघटित कर देते हैं। इस प्रकार क्लोरोफिल के अणु प्रकाश-संश्लेषण की जैव-रसायनिक क्रिया को प्रारम्भ करते हैं।

प्रकाश सूर्य का प्रकाश प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक है। बल्ब आदि के तीव्र कृत्रिम प्रकाश में भी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया होती है। लाल रंग के प्रकाश में यह क्रिया सबसे अधिक होती है। लाल के बाद बैगनी रंग के प्रकाश में यह क्रिया सबसे अधिक होती है। ये दोनों रंग क्लोरोफिल द्वारा सर्वाधिक अधिक मात्रा में अवशोषित किए जाते हैं। हरे रंग को क्लोरोफिल पूरी तरह परावर्तित कर देते हैं अतः हर रंग के प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पूरी तरह रूक जाती है।

जल जल प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया का कच्चा माल है। स्थलीय पौधे इसे मिट्टी से जड़ के मूलरोमों द्वारा अवशोषित करते हैं। जलीय पौधे अपने जल के सम्पर्क वाले भागों की बाह्य सतह से जल का अवशोषण करते हैं। ऑर्किड जैसे उपररोही पौधे अपने वायवीय मूलों द्वारा वायुमंडलीय जलवाष्प को ग्रहण करते हैं। प्रकाश-संश्लेषण के प्रकाशीय अभिक्रिया में जल के प्रकाशीय विघटन से ऑक्सीजन उत्पन्न होता है। यही ऑक्सीजन उपपदार्थ के रूप में वातावरण में मुक्त होता है। अधेरी अभिक्रिया में बनने वाली ग्लूकोज के अणुओं में हाइड्रोजन तत्व के अणु जल से ही प्राप्त होते हैं। प्रकाश-संश्लेषण के समय जल अप्रत्यक्ष रूप से भी कई कार्य करता है। यह जीवद्रव्य की क्रियाशीलता तथा इनजाइम की सक्रियता को बनाए रखता है।

प्रभावित करने वाले कारक

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प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है। इसके कुछ कारक बाह्य होते हैं तथा कुछ आंतरिक। इसके अतिरिक्त कुछ सीमाबद्ध कारक भी होते हैं। बाह्य कारण वे होते है जो प्रकृति और पर्यावरण में स्थित होते हुए प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करते हैं जैसे प्रकाश, चूँकि सूर्य के प्रकाश से पौधा इस क्रिया के लिए ऊर्जा प्राप्त करता है तथा अंधेरे से यह क्रिया सम्भव ही नहीं है। कार्बनडाई ऑक्साइड, क्यों कि ऐसा देखा गया है कि यदि अन्य सभी कारक पौधे को उच्चतम मात्रा में प्राप्त हों तथा वायुमंडल में CO2 की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जाये तो प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ जाती है। तापमान, क्यो कि देखा गया है कि पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के लिये एक निश्चित तापक्रम की भी आवश्यकता होती है तथा जल, पानी फोटोकेमिकल प्रक्रियाओं के अत्यन्त आवश्यक है और यह इस क्रिया के समय अनेक रासायनिक परिवर्तनों में सहयोग करता है। आंतरिक कारण वे होते हैं जो पत्तियों में स्थित होते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं जैसे- पर्णहरित या क्लोरोफ़िल जिसके द्वारा प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है। प्ररस/जीवद्रव्य/पुरस या प्रोटोप्लाज्म जिसमें पाए जाने वाले विकर प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं। भोज्य पदार्थ का जमाव, क्यों कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में बना भोजन यदि स्थानीय कोशिकाओं में एकत्रित होता रहे तो प्रकाश-संश्लेषण की दर धीमी हो जाती है। पत्तियों की आंतरिक संरचना क्यों कि प्रकाश-संश्लेषण की दर पत्तियों में उपस्थित स्टोमेटा या रंध्रों की संख्या तथा उनके बंद एवं खुलने के समय पर निर्भर करती है। पत्तियों की आयु, क्यों कि नई पत्तियों में पुरानी पत्तियों की अपक्षा प्रकाश-संश्लेषण की दर अधिक होती है। इसके अतिरिक्त प्रकाश संश्लेषण को इन सभी वस्तुओं की अलग-अलग गति भी प्रभावित करती है। जब प्रकाश संश्लेषण की एक क्रिया विभिन्न कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है तब प्रकाश संश्लेषण की गति सबसे मन्द कारक द्वारा नियन्त्रित होती है। प्रकाश, कार्बनडाइऑक्साइड, जल, क्लोरोफिल इत्यादि में से जो भी उचित परिमाण से कम परिमाण में होता है, वह पूरी क्रिया की गति को नियन्त्रित रखता है। यह कारक समय विशेष के लिए सीमाबद्ध कारक कहा जाता है।

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  8. "जैव ईंधन". भारत विकास प्रवेशद्वार. मूल से 14 मार्च 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २२ दिसंबर २००८. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  9. Muscatine L, Greene RW (1973). "Chloroplasts and algae as symbionts in molluscs". Int. Rev. Cytol. 36: 137–69. PMID 4587388.

बाहरी कड़ियाँ

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