प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक

प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है। इसके कुछ कारक बाह्य होते हैं तथा कुछ भीतरी। इसके अतिरिक्त कुछ सीमाबद्ध कारक भी होते हैं। बाह्य कारण वे होते है जो प्रकृति और पर्यावरण में स्थित होते हुए प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करते हैं जैसे प्रकाश, कार्बनडाई ऑक्साइड, तापमान तथा जल। आंतरिक कारण वे होते हैं जो पत्तियों में स्थित होते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं जैसे- पर्ण हरिम, प्ररस, भोज्य पदार्थ का जमाव, पत्तियों की आंतरिक संरचना और और पत्तियों की आयु। इसके अतिरिक्त प्रकाश संश्लेषण को इन सभी वस्तुओं की गति भी प्रभावित करती है। जब प्रकाश संश्लेषण की एक क्रिया विभिन्न कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है तब प्रकाश संश्लेषण की गति सबसे मन्द कारक द्वारा नियंत्रित होती है। प्रकाश, कार्बनडाइऑक्साइड, जल, क्लोरोफिल इत्यादि में से जो भी उचित परिमाण से कम परिमाण में होता है, वह पूरी क्रिया की गति को नियन्त्रित रखता है। यह कारक समय विशेष के लिए सीमाबद्ध कारक कहा जाता है।

कार्बन चक्र

बाह्य कारक

संपादित करें
  1. प्रकाश: प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला कारक प्रकाश है चूँकि सूर्य के प्रकाश से पौधा इस क्रिया के लिए ऊर्जा प्राप्त करता है तथा अंधेरे से यह क्रिया सम्भव ही नहीं है। ऐसा देखा गया है कि प्रकाश की प्रखरता, प्रकाश की किस्म तथा प्रकाश का समय प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं। प्रकाश की प्रखरता एक निश्चित सीमा तक प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पर प्रभाव डालती है। कम प्रकाश की प्रखरता में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया गति कम तथा अधिक प्रकाश की प्रखरता में अधिक हो जाती है। यदि पौधे निरन्तर प्रकाश में रखे जाए तो ये सोलराइजेशन के कारण पौधे चोटिल हो जाते हैं। यह भी देखा गया है कि एक विशेष प्रकाश प्रखरता पर प्रकाश-संश्लेषण की दर श्वसन की दर के साथ पूर्ण रूप से संतुलन रखता है जिससे श्वसन क्रिया में निकली CO2 तुरंत ही प्रकाश-संशलेषण की क्रिया में प्रयोग हो जाती है इस प्रकाश की प्रखरता पर हरी कोशिकाओं तथा वायुमंडल के मध्य वात-विनिमय नहीं होता है। इस प्रकाश प्रखरता को पौधे का संतुलित विंदू कहते हैं। यदि एक पौधा जो पहले से अंधेरे में रखा हो तथा उसको अचानक प्रकाश में लाया जाए दो पहले प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया की दर तेजी से बढ़ती है परंतु फिर धीरे-धीरे कम होकर अंत में एक सामान्य स्तर पर पहुंच जाती है। इस समय अथवा अवकाश को जिसमें प्रकाश-संशलेषण की दर सामान्य दर से अधिक होती है उसे इन्डक्शन पिरियड कहते हैं। प्रकाश की किस्म भी प्रकाश-संशलेषण की क्रिया को काफी प्रभावित करती है। सूर्य के प्रकाश में सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानीबैंगनी होते हैं। इनमें सर्वाधिक प्रकाश-संश्लेषण लाल रंग के प्रकाश में, इसके बाद कुछ कम बैंगनी रंग के प्रकाश में तथा अन्य रंगो के प्रकाश में और अधिक कम प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया होती है। प्रकाश का समय भी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पर निश्चित प्रभान डालता है।
  2. कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) : वायुमंडल में सामान्य रूप से लगभग .03% CO2 की मात्रा होती है तथा यह देखा गया है कि यदि अन्य सभी कारक पौधे को इच्चतम मात्रा में प्राप्त हों तथा वायुमंडल में CO2 की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जाये तो प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ जाती है। परन्तु जब CO2 वायुमंडल में 0.1% से अधिक हो जाती है तब यह CO2 हानिकारक हो जाती है तथा प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम हो जाती है। प्रकृति में कार्बन चक्र को चित्र में दिखाया गया है।
  3. तापमान: पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के लिये एक निश्चित तापक्रम की भी आवश्यकता होती है। सामान्य पौधे में २० C से 350C तापमान पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की उच्चतम दर के लिए आवश्यक होता है। सामान्य रूप से यह देखा गया है कि तापमान बढ़ने पर प्रकाश-संश्लेषण क्रिया की दर अधिक तथा तापमान कम होने पर कम हो जाती है। सामान्य रूप से 490C से ऊपर तथा 00C से नीचे पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया रूक जाती है।
  4. जल: जल प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के लिए अत्यन्त आवश्यक है चूँकि यह स्वयं एक कच्चा पदार्थ है। पानी फोटोकेमिकल प्रक्रियाओं के समय अनेक रासायनिक परिवर्तन ला देता है। पानी कोशाओं की आशीनता के लिए आवश्यक है तथा इसके द्वारा स्टोमेटा का खुलना व बन्द होना निर्भर करता है जो कि वात विनिमय के लिए आवश्यक है। इस प्रकार पानी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
  5. आक्सीजन: वायु में आक्सीजन की मात्रा 20%-21% के लगभग होती है। आक्सीजन की मात्रा बढ़ने पर प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है। क्योंकि प्रकाश-संश्लेषण में भाग लेने वाले इन्जाइम आक्सीजन के बढ़ने की स्थिति में अक्रियशील हो जाते हैं।

आंतरिक कारण

संपादित करें
  1. पर्णहरिम: क्लोरोफिल भी प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करने वाला मुख्य कारक है चूँकि इसी के द्वारा प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है। वे पौधे या पौधों के वे भाग जिनमें क्लोरोफिल नहीं होता है, प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया करने में असमर्थ होते हैं। विल्सटेटर ने क्लोरोफिल का प्रकाश-संश्लेषण की दर पर प्रभाव ज्ञात किया तथा उन्होंने विभिन्न आयु के पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण का अध्ययन किया तथा क्लोरोफिल की प्रति इकाई के लिए प्रकाश-संश्लेषण की मात्रा ज्ञात की तथा उन्होंने उनको परिचयाक अंक कहा।
  2. प्ररस: प्रोटोप्लाज्म में पाए जाने वाले विकर प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं। प्रोटोप्लाज्म के चोटिल होने पर भी प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है।
  3. भोज्य पदार्थ का जमाव: प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में बना भोजन यदि स्थानीय कोशिकाओं में एकत्रित होता रहे तो प्रकाश-संश्लेषण की दर धीमी हो जाती है। यह भोजन इन कोशिकाओं से दूसरे स्थानों पर स्थान्तरित होता रहे तब प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।
  4. पत्तियों की आन्तरिक संरचना: प्रकाश-संश्ले
  5. षण की दर पत्तियों में उपस्थित स्टोमेटा की संख्या तथा उनके बंद एवं खुलने के समय पर निर्भर करती है। पत्ती में जितने अधिक रन्ध्र होगे तथा वे जितने अधिक देर तक खुले रहेंगे उतनी ही अधिक कार्बनडाइऑक्साइड बाह्य वातावरण से पत्ती में विसरित होगी। इसके अलावा पत्ती की कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट की व्यवस्था भी प्रकाश-संश्लेषण की दर को प्रभावित करती है।
  6. पत्तियों की आयु: नई पत्तियों में पुरानी पत्तियों की अपक्षा प्रकाश-संश्लेषण की दर अधिक होती है। पत्ती की उम्र बढ़ने के साथ प्रकाश-संश्लेषण की दर कम होने लगती है।

सीमाबद्ध कारक

संपादित करें

जब एक क्रिया विभिन्न कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है तब प्रकाश संश्लेषण की गति सबसे मन्द कारक द्वारा सीमित होती है। एफ. ई. ब्लैकमैन ने १९०५ ई. में प्रकाश-संश्लेषण के सम्बन्ध में अपने शोध प्रपत्र में इस जानकारी को लिखा था। बाद में यह एक नियम बन गया जिसका महत्व केवल प्रकाश-संश्लेषण ही नहीं सभी जैव-रसायनिक क्रियायों के लिए है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया की गति प्रकाश, कार्बनडाइऑक्साइड, जल, क्लोरोफिल इत्यादि कारकों द्वारा नियंत्रित होती है। इनमें से जो भी उचित परिमाण से कम परिमाण में होता है, वह पूरी क्रिया की गति को नियन्त्रित रखता है एवं उसी उस समय के लिए सीमाबद्ध कारक कहा जाता है।