सोनार
सोना (स्वर्ण) चाँदी तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं से आभूषण आदि बनाने का कार्य करने वाले और बहुमूल्य रत्नों के व्यापार करने वाले तथा जैविक खेती के साथ ही क्रूरतामुक्त पशुपालन तथा कई प्रकार के औद्योगिक व्यापार करने वाले को सोनार कहते हैं। भारत में सोनार मूलतः "वीर क्षत्रिय" हैं । जिन्होंने जमींदारी के साथ ही आभूषण बनाना और उसका व्यापार शुरू किया।'सोनार' को सेठ, साहूकार, स्वर्णकार, सर्राफ, भामाशाह, सोनी, जौहरी, सुनार या वर्मा जी भी कहते हैं। दूसरे देशों में भी सोनार होते हैं जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सोनार जाति में अनेक उपजातियां हैं और ये दूसरी उपजाति से विवाह संबंध बनाते हैं तथा अन्य जातियों की श्रेष्ठ नारीयों को भी सुनार जाति में प्रवेश करने का सुनहरा अवसर देते हैं।
उपजातियां:- 1 कनौजिया (कान्यकुब्ज) स्वर्णकार (क्षत्रिय)। 2 मेर क्षत्रिय स्वर्णकार। 3 अयोध्यावासी सुनार। 4 मारवाड़ी स्वर्णकार। 5 श्रीमली स्वर्णकार। 6 माहौर स्वर्णकार(क्षत्रिय)।
व्यवसाय
संपादित करेंये सोने-चाँदी के आभूषण के निर्माता एवम् विक्रेता होते हैं। आभूषणों का निर्माण और बिक्री करना इनका पारम्परिक कार्य है। तथा यह दूसरे के पुराने सोने चांदी के जेवर की खरीदारी भी करते हैं और उनका सही मूल्य लगाकर ग्राहकों के जेवर के पैसे दे देते हैं
उपस्थिती
संपादित करेंसोनार जातियाँ मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश,जम्मू-कश्मीर,मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र और गुजरात के सभी क्षेत्रों में पायी जाती हैं। भारत के सभी क्षेत्रों में तथा भारत के बाहर के बहुत से क्षेत्रों में सोनार जातियों की बहुतायत देखी जा सकती है। भारत के उत्तरी, मध्य तथा दक्षिणी भाग मे भी सुनार बहुतायात में हैं।
प्रमुख व्यक्ति
संपादित करें- महाराजा मार्तंड वर्मा, त्रावणकोर के महाराजा, पद्मनाभ मंदिर के निर्माता।