सोमदेव सूरि १०वीं शताब्दी के एक जैन सन्त थे। उनके द्वारा रचित नीतिवाक्यामृतम् नीति का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यशस्तिलक इनके द्वारा रचित दूसरा प्रमुख ग्रन्थ है। इसके अलावा उन्होने "उपासकाद्ययन" नामक एक ग्रन्थ रचा जो दिगम्बर जैन सम्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है।

उनका जन्म सम्भवतः बंगाल में हुआ था किन्तु कार्य क्षेत्र दक्षिण भारत रहा।

सोमदेव सूरि ने भारतीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनके द्वारा रचित ‘नीतिवाक्यामृतम्’ जैन राजनीतिक परम्परा का ग्रन्थ है। ये दक्षिण भारतीय राजा कृष्णदेव के आश्रित कवि थे। राजाश्रय के फलस्वरूप ही राजनीतिक ज्ञान ‘नीतिवाक्यमृत’ के रूप में सामने आया। यद्यपि ‘नीतिवाक्यामृत’ में इसके रचयिता के विषय में स्पष्ट रूपसे उल्लेख नहीं किया गया परन्तु यशस्तिलकचम्पू के रचनाकार को ही नीतिवाक्यमृत का रचनाकार कहा गया है।

नीतिवाक्यामृतम्

संपादित करें

नीतिवाक्यामृत, कौटिल्य के अर्थशास्त्र और कामन्दक के नीतिसार की श्रेणी का एक नीति-ग्रन्थ है। इसमें राजनीतिक सिद्धान्तों को सरल एवं सुबोध रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें राजा, मन्त्री, कोषाध्यक्ष, तथा शासन-संचालन के मौलिक सिद्धान्तों का समावेश है। इसमें 32 समुद्देश (अध्याय) हैं जिनमें पुरुषार्थ, आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता, दण्डनीति, मन्त्रिमण्डल, पुरोहित, सेनापति, दूत, गुप्तचर, व्यसन, स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोश, सेना, मित्र, राजरक्षा, व्यवहार, विवाद, षाड्गुण्य आदि का सूत्र शैली में वर्णन है। नीतिवाक्यामृत में अपने नाम के अनुरूप लोकव्यवहार से प्रारम्भ करके राजनीति के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का विद्वतापूर्ण वर्णन किया गया है। धर्म, अर्थ, काम, दण्ड, स्वामी सेना, गुप्तचर, जनपद, अमात्य जैसे विषयों को सरलता से वर्णित कर दिया गया है। यह ग्रन्थ अपनी विशिष्ट सूत्रशैली, अर्थगाम्भीर्य और अनुभवपूर्ण उक्तियों के कारण बहुत ही उपादेय ग्रन्थ है।

इस ग्रन्थ के ३२ समुद्देश्दों के नाम क्रमशः ये हैं-

(१) धर्मसमुद्देश्य, (२) अर्थसमुद्देश्य, (३) कामसमुद्देश्य, (४) अरिषड्वर्गसमुद्देश्य, (५) विद्यावृद्धसमुद्देश्य, (६) आन्वीक्षिकीसमुद्देश्य, (७) त्रयीसमुद्देश्य, (८) वार्तासमुद्देश्य, (९) दण्डनीतिसमुद्देश्य, (१०) मन्त्रीसमुद्देश्य, (११) पुरोहितसमुद्देश्य, (१२) सेनापतिसमुद्देश्य, (१३) दूतसमुद्देश्य, (१४) चारसमुद्देश्य, (१५) विचारसमुद्देश्य, (१६) व्यसनसमुद्देश्य, (१७) स्वामिसमुद्देश्य, (१८) अमात्यसमुद्देश्य, (१९) जनपदसमुद्देश्य, (२०) दुर्गसमुद्देश्य, (२१) कोषसमुद्देश्य, (२२) बलसमुद्देश्य, (२३) मित्रसमुद्देश्य, (२४) राजरक्षासमुद्देश्य, (२५) दिवसानुष्ठानसमुद्देश्य, (२६) सदाचारसमुद्देश्य, (२७) व्यवहारसमुद्देश्य, (२८) विवादसमुद्देश्य, (२९) षाड्गुण्यसमुद्देश्य, (३०) युद्धसमुद्देश्य, (३१) विवाहसमुद्देश्य (३२) प्रकीर्णसमुद्देश्य

ग्रन्थकार ने धर्मसमुद्देश्य के अन्तर्गत मंगलाचरण के बाद 'राज्य' को नमस्कार करते हुए इस ग्रन्थ का आरम्भ किया है।

अथ धर्मार्थकामफलाय राज्याय नमः ( उस राज्य को नमस्कार है जो धर्म, अर्थ, काम का फल देने वाला है।)

नीतिवाक्यामृत की दो उपलब्ध टीकाएँ हैं। एक प्राचीन संस्कृत टीका है जिसके लेखक का नाम और जीवनकाल ज्ञात नहीं है, किन्तु इसके मंगलाचरण से लगता है कि इसके रचयिता काम 'हरिबल' है।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें