सौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (सोहो)

सौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (सोहो) (अंग्रेज़ी: Solar and Heliospheric Observatory (SOHO)) यूरोप के एक औद्योगिक अल्पकालीन संघटन ऐस्ट्रियम द्वारा निर्मित एक अंतरिक्ष यान है। इस वेधशाला को लॉकहीड मार्टिन एटलस २ एएस रॉकेट द्वारा २ दिसम्बर १९९५ को अंतरिक्ष में भेजा गया। इस प्रयोगशाला का लक्ष्य सूर्य और सौरचक्रीय परिवेश का अध्ययन करना और क्षुद्रग्रहों की उपस्थिति संबंधित आँकड़े उपलब्ध कराना है। सोहो द्वारा अब तक कुल २३00 से अधिक क्षुद्रग्रहों का पता लगाया जा चुका है।[1] सोहो, अंतरराष्ट्रीय सहयोग से संबद्ध, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा की संयुक्त परियोजना है। हालांकि सोहो मूल रूप से द्विवर्षीय परियोजना थी, लेकिन अंतरिक्ष में १५ वर्षों से अधिक समय से यह कार्यरत है। २00९ में इस परियोजना का विस्तार दिसंबर २0१२ तक मंज़ूर कर लिया गया है।.[2]

सूर्य के नज़दीक सोहो का चित्र

सोहो २३३३

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सोहो २३३३ एक क्षुद्रग्रह है जिसका पता हाल ही में लगाया गया है। इसकी सौरचक्रीय अवस्थिति की खोज दिल्ली के एक छात्र प्रफुल्ल शर्मा ने की है।[3] सोहो २३३३ क्षुद्रग्रह सौरमंडल की लैंगरेंजी बिंदु की एल-१ (अंग्रेज़ी: Langrangian Point/ L1) कक्षा में चक्कर लगा रहा है। एल-१ कक्षा वह अवस्थिति है जहाँ सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्व बल एक दूसरे को शून्य कर देते हैं।[4]

  1. About the SOHO Mission Archived 2012-08-13 at the वेबैक मशीन इसा का आधिकारिक जालघर
  2. Mission extensions approved for science missions Archived 2013-05-02 at the वेबैक मशीन, इसा, ७ अक्टूबर २00९
  3. Delhi student discovers a comet Archived 2012-08-12 at the वेबैक मशीन टाइम्स ऑफ इण्डिया में १२ अगस्त २0१२ को प्रकाशित
  4. Cornish, Neil J. "The Lagrangian Points" (PDF). Montana State University - Department of Physics. मूल (PDF) से 7 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १३ अगस्त २0१२.