स्थानांग सूत्र
स्थानांग सूत्र जैन ग्रंथ है जो प्रथम ग्यारह आगमों में से एक है। इसमें प्रयुक्त भाषा अर्धमागधी है। इसके मूल सूत्रों को टीका के बिना समझना बहुत कठिन है। इसलिये ११वीं शताब्दी में अभयदेवसूरी जी ने स्थानांग सूत्र पर संस्कृत में एक पारिभाषिक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ जैन तत्वमीमांसा का 'अंग-ग्रन्थ' है। किन्तु इसमें गणित के बहुत से विषय, विधियाँ और संक्रियाएँ दी गयी हैं।
भारतीय गणित में योगदान
संपादित करेंस्थानांग सूत्र में गणित के उन विषयों की सूची विद्यमान है जो ईसा की दूसरी शताब्दी से भारतीय समाज में अध्ययन की जातीं थी।
स्थानांग सूत्र ७४७ के अनुसार गणित के १० विषय हैं-
- परिकर्म (चार आधारभूत संक्रियाएँ)
- व्यवहार (subjects of treatment),
- रज्जु (ज्यामिति)
- राशि (ठोस ज्यामिति)
- कलासवर्ण (भिन्न)
- यावत्-तावत् (सरल समीकरण)
- वर्ग (वर्ग समीकरण)
- घन (त्रिघात समीकरण)
- वर्गवर्ग (biquadratic equation), तथा
- विकल्प (सांयोजिकी या 'permutation and combination').