स्लग स्लग बाग-बगीचों की नम मिट्टी खेतों तथा दलदली क्षेत्रों में पाया जाता हैं। स्लग पर मौसम का अधिक प्रभाव होता हैं। स्लग रात्रि या वर्षा के मौसम में बाहर निकलता है तथा बागवानी व खेती की फसलों को हानि पहुंचाता है। काली स्लग का प्रकोप मुख्यत की नर्सरी, पान की फसलों एवं सब्जियों पर होता है एवं उत्पादन पर विपरीत प्रभाव डालता हैं। इसकी दुसरी प्रजाति स्लेटी स्लग मक्का की फसल पर एवं भूरा स्लग कदं वाली सब्ज़ी की फसलों, खेतों व उद्यान के पौधों को नुक़सान पहुंचाती हैं। पहचान जिस जन्तु का शरीर लम्बा, पीछे से पतला, नुकीला है, सिर पर दो स्पर्शक तथा काले नैत्र दिखाई देते हैं और प्रावार संरचना है तो वह प्राणी स्लग है।[1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. डॉ. मनमोहन सुन्दरिया. स्लग (२०१८ संस्करण). राजस्थान राज्य पाठयपुस्तक मंडल २-२ए, झालाना डूंगरी, जयपुर. पपृ॰ १२६.