स्वरमेळकलानिधि १६वीं शताब्दी में विजयनगरम के संगीतज्ञ राममात्य द्वारा रचित एक अत्यन्त प्रसिद्ध संगीत ग्रंथ हैं। सन १५५० में रचित यह ग्रन्थ कर्नाटक संगीत के नवरत्नों में गिना जाता है। इस ग्रन्थ का महत्व इस तथ्य में निहित है कि इससे पहले लिखे गए संगीत ग्रन्थों की तुलना में यह ग्रन्थ अधिक प्रासंगिक और संगीत के आधुनिक व्यवहार के निकट है। इसमें पाँच अध्याय हैं जिनमें मुख्य रूप से राग के सिद्धान्त का वर्णन है। इसमें रागों के वर्गीकरण के लिए मेलकर्ता का वर्णन है।

पुण्डरीक विठ्ठल और सोमानन्त आदि अन्य प्रसिद्ध समकालीन लोगों ने भी इसी तरह के विषयों पर संगीतग्रन्थ लिखे हैं। किन्तु इन ग्रन्थों में छोटे-मोटे अन्तर भी हैं।