हरीतकी
हरीतकी[2] (वानस्पतिक नाम:Terminalia chebula) एक ऊँचा वृक्ष होता है एवं भारत में विशेषतः निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल-आसाम तक पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है। हिन्दी में इसे 'हरड़' और 'हर्रे' भी कहते हैं। आयुर्वेद ने इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों से जाना जाता है। हरड़ का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है। [3] इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर लम्बे, डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे, पीताभ श्वेत लंबी मंजरियों में होते हैं। फल एक से तीन इंच तक लंबे और अण्डाकार होते हैं, जिसके पृष्ठ भाग पर पाँच रेखाएँ होती हैं। कच्चे फल हरे तथा पकने पर पीले धूमिल होते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। अप्रैल-मई में नए पल्लव आते हैं। फल शीतकाल में लगते हैं। पके फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल के मध्य किया जाता है।
टर्मिनेलिया चेब्यूला | |
---|---|
![]() | |
बक्सा बाघ अभयारण्य, जलपाइगुड़ी जिळा, पं.बं. में पत्ते-विहीन वृक्ष | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
विभाग: | मैग्नोलियोफाइटा |
वर्ग: | मैग्नोलियोप्सीडा |
गण: | Myrtales |
कुल: | Combretaceae |
वंश: | Terminalia |
जाति: | T. chebula |
द्विपद नाम | |
Terminalia chebula Retz. | |
पर्यायवाची[1] | |
Walp.
|
कहा जाता है हरीतकी की सात जातियाँ होती हैं। यह सात जातियाँ इस प्रकार हैं: 1. विजया 2. रोहिणी 3. पूतना 4. अमृता 5. अभया 6. जीवन्ती तथा 7. चेतकी।[4]
हर के सेवन से समस्त रोगों का नाश होता है इसके सेवन से रक्त मांस अस्थि ताकतवर होते हैं। वीर में वृद्धि होती है। इसके लगातार सेवन से बाल काले हो जाते हैं। सूंघने की क्षमता में वृद्धि होती है और आंखें जल्दी खराब नहीं होती है ।.
परिचय
संपादित करेंहरीतकी को वैद्यों ने चिकित्सा साहित्य में अत्यधिक सम्मान देते हुए उसे अमृतोपम औषधि कहा है। राज बल्लभ निघण्टु के अनुसार-
- यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी।
- कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी ॥
- (अर्थात् हरीतकी मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली है। माता तो कभी-कभी कुपित भी हो जाती है, परन्तु उदर स्थिति अर्थात् खायी हुई हरड़ कभी भी अपकारी नहीं होती। )
दो प्रकार के हरड़ बाजार में मिलते हैं - बड़ी और छोटी। बड़ी में पत्थर के समान सख्त गुठली होती है, छोटी में कोई गुठली नहीं होती, वैसे फल जो गुठली पैदा होने से पहले ही पेड़ से गिर जाते हैं या तोड़कर सुखा लिया जाते हैं उन्हें छोटी हरड़ कहते हैं। आयुर्वेद के जानकार छोटी हरड़ का उपयोग अधिक निरापद मानते हैं क्योंकि आँतों पर उनका प्रभाव सौम्य होता है, तीव्र नहीं। इसके अतिरिक्त वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार हरड़ के 3 भेद और किए जा सकते हैं- पक्व फल या बड़ी हरड़, अर्धपक्व फल पीली हरड़ (इसका गूदा काफी मोटा स्वाद में कसैला होता है।) अपक्व फल जिसे ऊपर छोटी हरड़ नाम से बताया गया है। इसका वर्ण भूरा-काला तथा आकार में यह छोटी होती है। यह गंधहीन व स्वाद में तीखी होती है। फल के स्वरूप, प्रयोग एवं उत्पत्ति स्थान के आधार पर भी हरड़ को कई वर्ग भेदों में बाँटा गया है पर छोटी स्याह, पीली जर्द, बड़ी काबुली ये 3 ही सर्व प्रचलित हैं।
औषधि प्रयोग हेतु फल ही प्रयुक्त होते हैं एवं उनमें भी डेढ़ तोले से अधिक भार वाली भरी हुई, छिद्र रहित छोटी गुठली व बड़े खोल वाली हरड़ उत्तम मानी जाती है। भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार जो हरड़ जल में डूब जाए वह उत्तम है। हरड़ में ग्राही (एस्टि्रन्जेन्ट) पदार्थ है, टैनिक अम्ल (बीस से चालीस प्रतिशत) गैलिक अम्ल, चेबूलीनिक अम्ल और म्यूसीलेज। रेजक पदार्थ हैं एन्थ्राक्वीनिन जाति के ग्लाइको साइड्स। इनमें से एक की रासायनिक संरचना सनाय के ग्लाइको साइड्स सिनोसाइड 'ए' से मिलती जुलती है। इसके अलावा हरड़ में 10 प्रतिशत जल, 13.9 से 16.4 प्रतिशत नॉन टैनिन्स और शेष अघुलनशील पदार्थ होते हैं। वेल्थ ऑफ इण्डिया के वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लूकोज, सार्बिटाल, फ्रूक्टोस, सुकोस, माल्टोस एवं अरेबिनोज हरड़ के प्रमुख कार्बोहाइड्रेट हैं। 18 प्रकार के मुक्तावस्था में अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। फास्फोरिक तथा सक्सीनिक अम्ल भी उसमें होते हैं। फल जैसे पकता चला जाता है, उसका टैनिक एसिड घटता एवं अम्लता बढ़ती है। बीज मज्जा में एक तीव्र तेल होता है।
हरीतकी एक प्रभावी औषधि भी है| इसके गुणों का लाभ लेने के लिए विभिन्न ऋतुओं में ही इसका सेवन करना चाहिए:[5]
- वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ।
- शरद ऋतु में शकर के साथ।
- हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ।
- शिशिर ऋतु में पीपल के साथ।
- वसंत ऋतु में शहद के साथ।
हरीतकी पेट की बीमारियों के साथ और भी बहुत से बीमारियों में बेहद लाभ पहुंचाता है| हरड़ खाने के कुछ लाभ इस प्रकार है:-[6]
- हरड़ से बनी गोलियों का सेवन करने से भूख बढ़ती है।
- हरड़ का चूर्ण खाने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
- उल्टी होने पर हरड़ और शहद का सेवन करने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
- हरड़ को पीसकर आंखों के आसपास लगाने से आंखों के रोगों से छुटकारा मिलता है।
- भोजन के बाद अगर पेट में भारीपन महसूस हो तो हरड़ का सेवन करने से राहत मिलती है।
- हरड़ का सेवन लगातार करने से शरीर में थकावट महसूस नहीं होती और स्फूर्ति बनी रहती है।
- हरड़ का सेवन गर्भवती स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
- हरड़ पेट के सभी रोगों से राहत दिलवाने में मददगार साबित हुई है।
- हरड़ का सेवन करने से खुजली जैसे रोग से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
- अगर शरीर में घाव हो जांए हरड़ से उस घाव को भर देना चाहिए।
चित्रदीर्घा
संपादित करें-
-
हर्रे का फल
-
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "The Plant List: A Working List of All Plant Species". 11 सितंबर 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 7 August 2015.
- ↑ "Ayurvdic materia medica". 17 अक्तूबर 2013 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 16 अक्तूबर 2010.
{{cite web}}
: Check date values in:|access-date=
and|archive-date=
(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से से 8 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 1 फ़रवरी 2015.
{{cite web}}
: More than one of|archivedate=
and|archive-date=
specified (help); More than one of|archiveurl=
and|archive-url=
specified (help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से से 8 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 28 जनवरी 2015.
{{cite web}}
: More than one of|archivedate=
and|archive-date=
specified (help); More than one of|archiveurl=
and|archive-url=
specified (help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से से 8 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 28 जनवरी 2015.
{{cite web}}
: More than one of|archivedate=
and|archive-date=
specified (help); More than one of|archiveurl=
and|archive-url=
specified (help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से से 5 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 5 फ़रवरी 2015.
{{cite web}}
: More than one of|archivedate=
and|archive-date=
specified (help); More than one of|archiveurl=
and|archive-url=
specified (help)
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- हरड़ (टर्मिनेलिया चेब्यूला) (अखिल विश्व गायत्री परिवार)
- आयुर्वेद में हरीतकी
- बहुमूल्य हरड़
- हरड़ या हरीतकी