हरित अभिकलन (Green computing या Green ICT) से तात्पर्य सूचना प्रौद्योगिकी तथा अभिकलन के क्षेत्र में ऐसी नीतियों को प्रोत्साहित करने से है जो पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से अच्छी हैं। हरित अभिकलन के लक्ष्य भी वे ही हैं जो हरित रसायन के हैं (खतरनाक पदार्थों का उपयोग कम करना, किसी उत्पाद के जीवनकाल में ऊर्जा दक्षता को अधिक से अधिक करना, उत्पाद का जीवनकाल समाप्त होने पर वह पुनर्चक्रीय या जैवनिम्ननी (बायोडिग्रेडेबुल) हो)।

हरित अभिकलन सभी प्रकार के अभिकलित्रों के लिए महत्वपूर्ण है (हाथ में रखकर चलाये जाने वाली युक्तियों से लेकर बड़े-बड़े डेटा-केन्द्र तक)।

ग्रीन कंप्यूटिंग या ग्रीन आईटी, पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ कंप्यूटिंग या आईटी को संदर्भित करती है। (ग्रीन आई टी को बढ़ावा: सिद्धांत और व्यवहार) (Harnessing Green IT: Principles and Practices), नामक लेख में सैन मुरुगेसन ग्रीन कंप्यूटिंग के क्षेत्र को इस प्रकार परिभाषित करते हैं "कम्प्यूटरों, सर्वरों और संबंधित उपकरणों-जैसे कि मॉनिटर, प्रिंटर, स्टोरेज़ उपकरण और नेटवर्क तथा संचार संबंधी प्रणालियों की डिज़ाइनिंग, निर्माण, प्रयोग तथा निपटान, का अध्ययन तथा अभ्यास-जो कुशल व प्रभावशाली है तथा जिसका वातावरण पर पड़ने वाला प्रभाव न के बराबर या नगण्य है।"[1] ग्रीन कंप्यूटिंग के लक्ष्य ग्रीन कैमिस्ट्री (हरित रसायनशास्त्र) के समान हैं; खतरनाक पदार्थों के उपयोग को कम करना, उत्पाद की जीवन अवधि के दौरान ऊर्जा की बचत को अधिकतम करना, तथा मृत पदार्थों तथा कारखानों के कचरे की रीसाइक्लिंग प्रक्रिया या जैविक अपघटन को बढ़ावा देना. प्रमुख क्षेत्रों में अनुसन्धान अभी जारी है जैसे कि कम्प्यूटरों के प्रयोग को यथा संभव ऊर्जा के रूप में कुशल बनाना और ऊर्जा की बचत संबंधित कंप्यूटर प्रौद्योगिकियों के लिए एल्गोरिथ्म तथा प्रणालियां डिज़ाइन करना।

उत्पत्ति

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1992 में, अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने एनर्जी स्टार, एक स्वैच्छिक लेबलिंग कार्यक्रम जो मॉनीटरों, जलवायु नियंत्रक उपकरणों तथा अन्य प्रौद्योगिकियों में ऊर्जा की बचत को बढ़ावा देने और पहचानने के लिए डिजाइन किया गया है, की शुरुआत की। इसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक्स उपभोक्ताओं ने व्यापक रूप से स्लीप मोड (ऊर्जा की खपत को कम करने वाली प्रणाली) को अपनाया. एनर्जी स्टार प्रोग्राम के तुरंत बाद ही शायद "ग्रीन कंप्यूटिंग" शब्द गढ़ा गया था, 1992 के बाद से ही ऐसे कई यूज़नेट (USENET) उपलब्ध हैं जो शब्द का प्रयोग इस सन्दर्भ में करते हैं।[2] समवर्ती, स्वीडिश संगठन टीसीओ डेवलेपमेंट (TCO Development) ने सीआरटी (CRT) आधारित कंप्यूटर डिस्प्ले के बजाय कम चुम्बकीय तथा विद्युत् उत्सर्जन करने वाले डिस्प्ले को बढ़ावा देने के लिए टीसीओ सर्टिफिकेशन (TCO Certification) प्रोग्राम शुरू किया; बाद में इस प्रोग्राम का दायरा बढ़ा कर ऊर्जा की खपत, एर्गोनॉमिक्स तथा निर्माण सामग्री में खतरनाक पदार्थों के प्रयोग को इसमें शामिल किया गया।[3]

नियम और उद्योग द्वारा उठाये गये कदम

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आर्थिक सहयोग और विकास के लिए संगठन (ओईसीडी/OECD) ने "ग्रीन आईसीटीज़ (Green ICTs)" अर्थात सूचना तथा संचार प्रोद्योगिकियां, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर 90 से अधिक सरकारी तथा उद्योगों द्वारा किये गये प्रयासों का सर्वेक्षण प्रकाशित किया है। रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है ये प्रयास ग्लोबल वार्मिंग तथा पर्यावरण के क्षरण से निपटने के लिए अपने वास्तविक कार्यान्वयन की बजाए स्वयं आईसीटीज़ (ICTs) को हरित बनाने में अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। सामान्य तौर पर, ऐसे प्रयास जिनका लक्ष्य निर्धारित है, केवल 20% हैं जिनमें से ज्यादातर लक्ष्य व्यापार संगठनों की बजाए अक्सर सरकारी कार्यक्रमों में शामिल किये जाते हैं।[4]

 

कई सरकारी एजेंसियों ने उन मानकों और नियमों को लागू करना जारी रखा है जो ग्रीन कंप्यूटिंग को प्रोत्साहित करते हैं। एनर्जी स्टार प्रोग्राम को अक्टूबर 2006 में कंप्यूटर उपकरण के लिए और अधिक कुशल आवश्यकताओं को शामिल करने के लिए, स्वीकृत उत्पादों की श्रेणी रैंकिंग प्रणाली के साथ, संशोधित किया गया।[5][6]

कुछ पहल निर्माता पर इस बात की जिम्मेदारी डालते हैं कि ज़रुरत ख़त्म होने के पश्चात्, वे अपने उपकरणों का निपटान स्वयं करें : इसे विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी मॉडल (extended producer responsibility model) कहा जाता है। खतरनाक पदार्थों की कमी पर, यूरोपीय संघ के 2002/95/EC (खतरनाक पदार्थों पर प्रतिबंध के निर्देश) और बेकार बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर 002/96/EC (अपशिष्ट इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्देशक) निर्देशों के अनुसार 1 जुलाई 2006 से बाज़ार में रखे जाने वाले सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में भारी धातुओं और अग्नि प्रतिरोधकों जैसे पॉलीब्रोमिनेटेड बाईफिनाइल और पॉलीब्रोमिनेटेड डाईफिनाइल ईथर का प्रतिस्थापन आवश्यक है। निर्देशों के अनुसार पुराने उपकरणों को इकठ्ठा करने और रीसाइक्लिंग की जिम्मेदारी निर्माताओं पर है।[7]

वर्तमान में 26 अमेरिकी राज्य हैं जिन्होंने राज्य के अनुसार अप्रचलित कम्प्यूटरों और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के लिए रीसाइक्लिंग कार्यक्रम स्थापित किये हैं।[8] आधिकारिक नियम के अनुसार या तो रिटेल में बेचीं जाने वाली प्रत्येक यूनिट पर "अग्रिम रिकवरी फीस" ली जाती है, अथवा निर्माता द्वारा निपटान किये जाने वाले उपकरण को वापिस लेने की आवश्यकता होती है।

  • जलवायु बचाने के लिए कम्प्यूटिंग पहल (Climate Savers Computing Initiative) (सीएससीआई/CSCI) एक पीसी (PC) के सक्रिय और निष्क्रिय अवस्था में बिजली की खपत को कम करने का प्रयास है।[9] सीएससीआई (CSCI) अपने सदस्य संगठनों के द्वारा ग्रीन उत्पादों का कैटालॉग और पीसी (PC) की ऊर्जा खपत को कम करने के लिए जानकारी प्रदान करता है। इसे 2007-06-12 में शुरू किया गया था। नाम विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund) के जलवायु बचाने के कार्यक्रम से उपजा, जो 199 में शुरू किया गया था।[10] डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (WWF) भी कम्प्यूटिंग पहल का एक सदस्य है।[9]
  • ग्रीन इलेक्ट्रॉनिक्स परिषद ग्रीन कंप्यूटिंग प्रणालियों की खरीद में मदद करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद पर्यावरण आकलन उपकरण (ईपीईएटी/EPEAT) प्रदान करती है। परिषद 28 मानदंडों के आधार पर कम्प्यूटिंग उपकरणों का मूल्यांकन करती है जो उत्पाद की कार्यकुशलता और स्थिरता की विशेषताओं को मापते हैं। 2007-01-24 को, राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने एग्जीक्युटिव आर्डर 13423 जारी किया, जिसके अनुसार कंप्यूटर सिस्टम खरीदते समय संयुक्त राज्य अमेरिका की सभी संघीय एजेंसियों को ईपीईएटी (EPEAT) का प्रयोग करने की आवश्यकता है।[11][12]
  • द ग्रीन ग्रिड एक वैश्विक संघ है जो डाटा केन्द्रों तथा व्यापर कम्प्यूटिंग पारिस्थितिकियों में ऊर्जा की बचत को बढ़ावा देने के प्रति समर्पित है। इसे फरवरी 2007 में उद्योग की कई प्रमुख कंपनियों - एएमडी (AMD), एपीसी (APC), डेल (Dell), एचपी (HP), आईबीएम (IBM), इंटेल (Intel), माइक्रोसिस्टम (Microsoft), रैकेबल सिस्टम (Rackable Systems), स्प्रेकूल (SprayCool), सन माइक्रोसिस्टम (Sun Microsystems) तथा वीएमवेयर (VMware) द्वारा स्थापित किया गया था। इसके बाद से ही ग्रीन ग्रिड में अंतिम उपयोगकर्ता तथा सरकारी संगठनों सहित सैकड़ों सदस्य जुड़े हैं, सभी डाटा केन्द्रों की दक्षता में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • ग्रीन 500 (Green500) सूची मेगाफ्लॉप्स/वॉट के आधार पर सुपर कम्प्यूटरों की रेटिंग करती है, तथा केवल प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय दक्षता पर करती है।
  • ग्रीन कॉम चैलेंज (Green Comm Challenge) एक संगठन है जो सूचना और प्रौद्योगिकी तकनीक (आईसीटी/ICT) के क्षेत्र में ऊर्जा बचाने की तकनीकों तथा अभ्यासों को बढ़ावा देता है। ग्रीन कॉम चैलेंज की दुनिया भर में बदनामी हुई, जब अमेरिका कप के 33वें संस्करण में इसने स्वयं को एक प्रतिस्पर्धी के रूप में सूचीबद्ध कर लिया, जो यह दिखाने का एक प्रयास था कि कैसे दुनिया भर के शोधकर्ता, प्रौद्योगिकीविद और उद्यमी एक रोमांचक दृष्टिकोण के साथ इकठ्ठे किये जा सकते हैं: जिसमें एक अक्षय ऊर्जा मशीन, एक प्रतिस्पर्धी अमेरिका कप नाव का निर्माण करना था।

ग्रीन कंप्यूटिंग के प्रति दृष्टिकोण

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ग्रीन आईटी को बढ़ावा: सिद्धांत और व्यवहार (Harnessing Green IT: Principles and Practices) नामक लेख में, सैन मुरुगेसन ग्रीन कम्प्यूटिंग के क्षेत्र को इस प्रकार परिभाषित करते हैं "कम्प्यूटरों, सर्वरों और संबंधित उपकरणों-जैसे कि मॉनिटर, प्रिंटर, स्टोरेज़ उपकरण और नेटवर्क तथा संचार संबंधी प्रणालियों की डिज़ाइनिंग, निर्माण, प्रयोग तथा निपटान, का अध्ययन तथा अभ्यास-जो कुशल व प्रभावशाली है तथा जिसका वातावरण पर पड़ने वाला प्रभाव न के बराबर या नगण्य है।"[1] मुरुगेसन चार तरीके बताते हैं जो कि उनके अनुसार कम्प्यूटिंग के पर्यावरणीय प्रभाव को परिलक्ष्यित करते हैं[1]: हरित उपयोग, हरित निपटान, हरित डिजाइन और हरित निर्माण.

आधुनिक आईटी सिस्टम लोगों, नेटवर्क और हार्डवेयर के जटिल मिश्रण पर निर्भर हैं; इसलिए ग्रीन कम्प्यूटिंग प्रयास के रूप में इन सभी क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए। अंतिम उपयोगकर्ता की संतुष्टि, प्रबंधन पुनर्गठन, विनियामक अनुपालन और निवेश पर प्रतिफल (आरओआई/ROI) को परिलक्ष्यित करने वाले समाधान की भी आवश्यकता है।[13] कंपनियों के लिए अपनी ऊर्जा की खपत पर नियंत्रण भी महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रेरणा है; "उपलब्ध ऊर्जा प्रबंधन उपकरणों में सबसे अधिक शक्तिशाली अभी भी साधारण, आम तथा व्यवहारिक हो सकता है।"[14]

उत्पाद की आयु

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गार्टनर कहते हैं कि एक पीसी (PC) के जीवन चक्र में प्रयुक्त होने वाले 70% प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पीसी (PC) निर्माण प्रक्रिया में होता है।[15]. इसलिए, ग्रीन कंप्यूटिंग के लिए सबसे बड़ा योगदान उपकरणों के जीवनकाल को लम्बा करके किया जा सकता है। गार्टनर की एक और रिपोर्ट "उत्पाद को उन्नत करने की क्षमता तथा प्रतिरूपकता के साथ उसकी दीर्घायु की तलाश" करने की सिफारिश करती है। [16] उदाहरण के लिए, अपग्रेड करने के लिए एक नए पीसी (PC) का निर्माण एक नए रैम मॉड्यूल की तुलना में पर्यावरण पर अधिक प्रभाव डालता है, एक आम अपग्रेड जिससे उपयोगकर्ता को नया कंप्यूटर नहीं खरीदना पड़ता.[उद्धरण चाहिए]

एल्गोरिथ्म दक्षता

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किसी भी कंप्यूटिंग कार्य के लिए कंप्यूटर संसाधनों की मात्रा पर एल्गोरिथ्म की दक्षता का प्रभाव पड़ता है और लेखन प्रोग्रामों में कई दक्षताएं मौजूद हैं। अब जबकि कंप्यूटर विपुल संख्या में उपलब्ध हैं और ऊर्जा की लागत की तुलना में हार्डवेयर की कीमतों में गिरावट आई है, ऊर्जा में बचत और कंप्यूटिंग प्रणालियों और प्रोग्रामों के पर्यावरणीय प्रभाव ने अधिक ध्यान आकर्षित किया है। हार्वर्ड के एक सकल-भौतिक विज्ञानी, एलेक्स विस्नर ग्रॉस द्वारा किये गये एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि औसत गूगल खोज 7 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) छोड़ती हैं।[17] लेकिन गूगल (Google) के अनुसार यह आंकड़ा विवादास्पद है, यह कहते हुए कि एक विशिष्ट खोज केवल 0.2 ग्राम CO₂ ही उत्पन्न करती है।[18]

संसाधन का आवंटन

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एल्गोरिथ्म, रूट डाटा से डाटा केन्द्रों पर भी प्रयोग में लाई जा सकती हैं, जहां बिजली कम खर्चीली है। एमआईटी (MIT), कर्निज मेलोन विश्वविद्यालय और अकामई के शोधकर्ताओं ने एक ऊर्जा आबंटन एल्गोरिथ्म का परीक्षण किया है जो सबसे सस्ती ऊर्जा लागत के साथ ट्रैफिक को निर्दिष्ट स्थान (लोकेशन) पर भेजती है। शोधकर्ताओं के अनुसार उनकी प्रस्तावित एल्गोरिथ्म को लागू करने पर ऊर्जा लागत में 40 प्रतिशत की बचत की जा सकती है। साफ़ शब्दों में कहें तो, यह दृष्टिकोण वास्तव में प्रयोग की जा रही ऊर्जा की मात्रा को कम नहीं करता है; यह केवल इसका प्रयोग करने वाली कंपनी के लिए लागत कम कर देता है। हालांकि, ऊर्जा पर निर्भर एक समान रणनीति का प्रयोग ट्रैफिक को नियंत्रित करने में किया जा सकता था जिसका उत्पादन पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल या कुशल तरीके से किया गया है। एक समान दृष्टिकोण का प्रयोग गर्मी अनुभव करने वाले डाटा केन्द्रों से ट्रैफिक को परे हटा कर ऊर्जा के प्रयोग में कमी लाने के लिए किया गया है, जिसकी वजह से एयर कंडीशनिंग (वातानुकूलन) के इस्तेमाल से बचने के लिए कंप्यूटर बंद हो जाते हैं।[19]

आभासीकरण

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कंप्यूटर वर्चुअलाइजेशन (आभासीकरण) कंप्यूटर संसाधनों को कम करने से संबंधित है, जैसे - भौतिक हार्डवेयर के एक सेट पर दो या अधिक तार्किक (लॉजिकल) कंप्यूटर सिस्टम चलाने की प्रक्रिया. अवधारणा 1960 के दशक में आईबीएम (IBM) मेनफ्रेम ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ अस्तित्व में आई, लेकिन इसका व्यवसायीकरण 1990 के दशक में केवल x86-अनुकूल कम्प्यूटरों के लिए ही किया गया। आभासीकरण के साथ, एक सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर एक अकेले शक्तिशाली सिस्टम की आभासी मशीनों पर मूल हार्डवेयर को निकाल कर कई भौतिक सिस्टम जोड़ सकता था, जिसके कारण ऊर्जा तथा कूलिंग खपत में कमी आई. कई वाणिज्यिक कम्पनियां और मुक्त-स्रोत परियोजनाएं अब आभासी कम्प्यूटिंग में परिवर्तन को सक्षम बनाने के लिए सॉफ्टवेयर पैकेज उपलब्ध कराते हैं। इंटेल कॉर्पोरेशन (Intel Corporation) और एएमडी (AMD) ने भी आभासी कम्प्यूटिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए, X86 अनुदेश सेट के अनुसार अपनी प्रत्येक सीपीयू (CPU) लाइन के लिए प्रोपराइटरी वर्चुअलाइजेशन एन्हांसमेंट बनाये हैं।

टर्मिनल सर्वर

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टर्मिनल सर्वरों का भी ग्रीन कंप्यूटिंग में प्रयोग किया गया है। इस प्रणाली का उपयोग करते समय, एक टर्मिनल पर उपयोगकर्ता केंद्रीय सर्वर से संपर्क करते हैं, सम्पूर्ण वास्तविक गणना सर्वर पर की जाती है, लेकिन उपयोगकर्ता को ऑपरेटिंग सिस्टम के टर्मिनल पर होने का आभास होता है। इन्हें थिन क्लाइंट के साथ जोड़ा जा सकता है, जो कि एक सामान्य वर्कस्टेशन की तुलना में ऊर्जा के 1/8 भाग की खपत करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा की लागत तथा खपत में कमी आती है।[उद्धरण चाहिए] आभासी प्रयोगशालाओं को बनाने के लिए थिन क्लाइंट युक्त टर्मिनल सेवाओं में वृद्धि हुई है। टर्मिनल सर्वर सॉफ्टवेयर के उदाहरणों में विन्डोज़ (Windows) के लिए टर्मिनल सेवाएं और लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम (Linux operating system) के लिए लिनक्स टर्मिनल सर्वर प्रोजेक्ट (Linux Terminal Server Project) (एलटीएसपी/LTSP) शामिल हैं।

बिजली प्रबंधन

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उन्नत विन्यास एवं शक्ति अंतराफलक (एडवांस्ड कॉन्फ़िगरेशन एण्ड पॉवर इंटरफेस) (एसीपीआई/ACPI), एक खुला उद्योग मानक है, जो ऑपरेटिंग सिस्टम को सीधे इसके अंतर्निहित हार्डवेयर में बिजली बचाने के पहलुओं को नियंत्रित करने की की अनुमति देता है। यह एक निश्चित अन्तराल की निष्क्रियता के बाद स्वतः ही सिस्टम के घटकों जैसे कि मॉनिटर तथा हार्ड ड्राइव को बंद करने की अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त, सिस्टम हाइबरनेट (hibernate) की अवस्था में हो सकता है, जिसमें ज्यादातर घटक (सीपीयू (CPU) व सिस्टम की रैम (RAM) सहित) बंद हो जाते है। एसीपीआई (ACPI), इंटेल-माइक्रोसॉफ्ट (Intel-Microsoft) का एडवांस्ड पावर मैनेजमेंट (Advanced Power Management) नामक मानक का एक उत्तराधिकारी है, जो कंप्यूटर के बायस (BIOS) को बिजली प्रबंधन कार्यों को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।[उद्धरण चाहिए]

कुछ प्रोग्राम उपयोगकर्ता को सीपीयू (CPU) को होने वाली आपूर्ति को मैन्युअल रूप से समायोजित करने की अनुमति देते हैं, जिससे कि उत्पन्न होने वाली गर्मी की मात्रा तथा बिजली की खपत, दोनों में कमी आती है। इस प्रक्रिया को अंडरवोल्टिंग (undervolting) कहा जाता है। कुछ सीपीयू (CPU), प्रोसेसर को काम के बोझ के अनुसार स्वचालित रूप से अंडरवोल्ट कर सकते हैं; इस तकनीक को इंटेल (Intel) के प्रोसेसरों पर "स्पीडस्टेप" (SpeedStep), एएमडी (AMD) के चिप्स पर "पॉवरनाउ!" (PowerNow!) / "कूल'एन'क्वाइट" (Cool'n'Quiet), वीआईए (VIA) के सीपीयू (CPU) पर लाँगहॉल (LongHaul) और ट्रांसमेटा (Transmeta) के प्रोसेसरों के साथ लाँगरन (LongRun) कहा जाता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम सपोर्ट

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प्रमुख डेस्कटॉप ऑपरेटिंग सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज़ (Microsoft Windows) ने विन्डोज़ 95 (Windows 95) के बाद से सीमित पीसी (PC) ऊर्जा प्रबंधन वाली सुविधाएं शामिल की हैं।[20] शुरूआत में इन्हें अतिरिक्त (रैम (RAM) को रोक कर) और कम ऊर्जा की खपत करने वाले मॉनीटरों के लिए बनाया गया था। इसके अलावा के संस्करणों में विन्डोज़ (Windows) में हाइबरनेट (hibernate) (डिस्क को रोकना) तथा एसीपीआई (ACPI) मानकों के लिए सुविधा दी गयी। ऊर्जा प्रबंधन का प्रयोग करने वाली विन्डोज़ 2000 (Windows 2000) पहली एनटी (NT) आधारित ऑपरेशन प्रणाली थी। इसके लिए अंतर्निहित ऑपरेटिंग सिस्टम के ढांचे तथा नए हार्डवेयर ड्राइवर मॉडल में बड़े बदलाव किए गए। विन्डोज़ 2000 (Windows 2000) ने समूह नीति (ग्रुप पॉलिसी), एक तकनीक जो एडमिनिस्ट्रेटर को विन्डोज़ (Windows) की ज्यादातर सुविधाओं को एक केंद्र से कॉन्फ़िगर करने की अनुमति देती है, की भी शुरुआत की। हालांकि, बिजली प्रबंधन उन सुविधाओं में से एक नहीं था। यह शायद इसलिए हैं क्योंकि बिजली प्रबंधन सेटिंग्स के डिजाइन प्रति-उपयोगकर्ता कनेक्टेड सेट और प्रति-मशीन बाइनरी रजिस्ट्री वैल्यू पर निर्भर करते हैं[21], जिससे प्रत्येक उपयोगकर्ता प्रभावशाली ढंग से अपनी पावर सेटिंग्स कॉन्फ़िगर कर सकता है।

इस दृष्टिकोण, जो विन्डोज़ (Windows) समूह नीति के साथ मेल नहीं खाता, को विन्डोज़ एक्सपी (Windows XP) में दोहराया गया। माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) द्वारा इस डिजाइन का निर्णय लेने के कारण ज्ञात नहीं हैं और परिणामस्वरूप इसकी भारी आलोचना हुई[22] माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) ने विन्डोज़ विस्ता (Windows Vista)[23] में बिजली प्रबंधन प्रणाली को दोबारा डिजाइन करके ग्रुप पॉलिसी द्वारा इसमें मूल कॉन्फिगरेशन कर के काफी सुधार किया है। प्रदान की गयी सुविधा प्रति-कंप्यूटर-एक पॉलिसी तक सीमित है। सबसे हाल ही में रिलीज, विन्डोज़ 7 (Windows 7) इन सीमाओं को बरकरार रखती है लेकिन ऑपरेटिंग सिस्टम टाइमर, प्रोसेसर पावर मैनेजमेंट[24][25] और डिस्प्ले पैनल की चमक द्वारा अधिक कुशल उपयोगकर्ताओं के लिए इसे परिष्कृत करने की सुविधा प्रदान करती है। विन्डोज़ 7 (Windows 7) में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन उपयोगकर्ता का अनुभव है। डिफ़ॉल्ट उच्च निष्पादन बिजली योजना की प्रमुखता, उपयोगकर्ताओं को बिजली बचाने के उद्देश्य से प्रोत्साहित करने तक सीमित हो गई है।

थर्ड पार्टी पीसी बिजली प्रबंधन सॉफ्टवेयर का भी एक महत्वपूर्ण बाजार है जो विन्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम से इतर सुविधाएं प्रदान करता है। अधिकांश उत्पाद एक्टिव डाइरेक्ट्री इंटीग्रेशन और प्रति-उपयोगकर्ता/पार्टी-मशीन सेटिंग्स के साथ, एकाधिक उन्नत बिजली योजनाएं, नियोजित बिजली योजनाएं, एंटी-इनसोम्निया सुविधाएं और उद्यम द्वारा बिजली के उपयोग की सूचना, प्रदान करते हैं।

पावर सप्लाई (बिजली की आपूर्ति करने वाला उपकरण)

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डेस्कटॉप कंप्यूटर पावर सप्लाई (पीएसयू/PSU), आम तौर पर 70-75% कुशल हैं,[26] जो शेष ऊर्जा को गर्मी के रूप में नष्ट कर देते हैं। 80 प्लस (80 PLUS) नामक एक उद्योग उपक्रम उन पीएसयू (PSU) को प्रमाणित करता है जो कम से कम 80% तक बचत करते हैं, विशेषकर ये मॉडल इसी प्रकार के पुराने, कम कुशल पीएसयू (PSU) का स्थान लेते हैं।[27] 20 जुलाई 2007 तक सभी नये एनर्जी स्टार 4.0-प्रमाणित डेस्कटॉप पीएसयू (PSU) का कम से कम 80% तक ऊर्जा की बचत करने वाले होना आवश्यक है।[28]

छोटे आकार (उदाहरण 2.5 इंच) हार्ड डिस्क ड्राइव अक्सर आकार में बड़ी ड्राइवों से प्रति गीगाबाइट कम बिजली की खपत करती हैं।[29][30] हार्ड डिस्क ड्राइव के विपरीत, सॉलिड स्टेट ड्राइव डाटा को फ्लैश मेमोरी या डीरैम (DRAM) में स्टोर करती हैं। हिलने डुलने वाले पुर्ज़ों के न होने के कारण, कम क्षमता वाले फ्लैश आधारित उपकरणों की मदद से बिजली की खपत को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।[31][32]

हाल ही में हुए एक ताज़ा अध्ययन में, फ्यूज़न-आयो (Fusion-io), जो कि दुनिया के सबसे तेज़ सॉलिड स्टेट स्टोरेज उपकरण निर्माता हैं, ने माईस्पेस (MySpace) डाटा केन्द्रों में कार्बन फुटप्रिंट और संचालन लागत को 80% तक कम करने में सफलता पाई है जबकि गति प्रदर्शन इससे कहीं अधिक रखा है जिसे रेड 0 में मल्टिपल हार्ड ड्राइव के माध्यम से प्राप्त किया गया।[33][34] परिणामस्वरूप, माईस्पेस (MySpace) अपने भारी भरकम लोड वाले सर्वरों सहित कई अन्य सर्वरों को स्थाई रूप से सेवामुक्त करने में सक्षम था, जिससे उनका कार्बन फुटप्रिंट और अधिक कम हुआ।

अब जबकि हार्ड ड्राइव की कीमतें कम हो गई हैं, स्टोरेज फार्म और अधिक डाटा को ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिए क्षमता बढ़ाने की दिशा में अग्रसर हैं। इसमें संरक्षित और बैकअप डाटा शामिल है जिसे पूर्व में टेप या दूसरी ऑफ़लाइन स्टोरेज पर सेव किया गया था। ऑनलाइन स्टोरेज में वृद्धि से बिजली की खपत बढ़ गई है। ऑनलाइन स्टोरेज के लाभ प्रदान करने के साथ ही बड़ी स्टोरेज ड्राइवों के समूह द्वारा की जाने वाली बिजली की खपत को कम करना, एक अनुसंधान का विषय है।[35]

वीडियो कार्ड

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एक तेज़ जीपीयू (GPU) शायद कंप्यूटर में बिजली की सबसे ज्यादा खपत करता है।[36]

कम ऊर्जा की खपत वाले डिस्प्ले के विकल्पों में शामिल हैं:

  • वीडियो कार्ड का प्रयोग न करना - साझे (शेयर्ड) टर्मिनल, शेयर्ड थिन क्लाइंट या डिस्प्ले की आवश्यकता पड़ने पर डेस्कटॉप शेयरिंग सॉफ्टवेर.
  • मदरबोर्ड वीडियो आउटपुट करें - आम तौर पर कम 3 डी प्रदर्शन और कम शक्ति युक्त.
  • औसत वॉटेज या प्रति वाट प्रदर्शन के आधार पर जीपीयू (GPU) चुनें।

डिस्प्ले

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एलसीडी (LCD) मॉनिटर आम तौर पर डिस्प्ले के लिए प्रकाश उत्पन्न करने के लिए कोल्ड कैथोड फ्लोरोसेंट बल्ब का इस्तेमाल करते हैं। कुछ नए डिस्प्ले, फ्लोरोसेंट बल्ब की जगह लाईट एमिटिंग डायोड (एलईडी/LED) की एक सरणी का इस्तेमाल करते हैं जो डिस्प्ले द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली बिजली की मात्रा को कम कर देता है।[37]

पदार्थों की रीसाइक्लिंग

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कंप्यूटिंग उपकरण की रीसाइक्लिंग से हानिकारक पदार्थों जैसे कि सीसा, पारा और हेक्सावेलेंट क्रोमियम को जमीन में दबाने से (लैंडफिल्स) से बचा जा सकता है और ये उन उपकरणों का स्थान भी ले सकते हैं जिनके निर्माण में इनकी आवश्यकता है, जिससे ऊर्जा तथा उत्सर्जन में और बचत होगी। कंप्यूटर प्रणालियां जो अपना विशेष उद्देश्य प्राप्त कर चुकी हैं, को पुनः उपयोग में लाया जा सकता है, या फिर इन्हें विभिन्न धर्मार्थ संस्थाओं और लाभ-निरपेक्ष संगठनों को दान किया जा सकता है।[38] हालांकि, कई धर्मार्थ संस्थाओं ने हाल ही में दान दिए जाने वाले उपकरणों के लिए न्यूनतम सिस्टम आवश्यकताएं निर्धारित की हैं।[39] इसके अलावा, पुराने सिस्टम के कुछ पुर्ज़ों को बचाया जा सकता है और इन्हें कुछ रिटेल आउटलेट और नगर निगम अथवा निजी रीसाइक्लिंग केन्द्रों की सहायता से रीसाइकल किया जा सकता है।[40][41] कंप्यूटिंग आपूर्तियां जैसे कि प्रिंटर कार्ट्रिजों, पेपर और बैटरियों को भी रीसाइकल किया जा सकता है।[42]

इनमें से अधिकतर योजनाओं में एक दोष यह है कि रीसाइक्लिंग अभियानों के माध्यम से एकत्रित किये गये कंप्यूटर अक्सर विकासशील देशों में भेज दिए जाते हैं जहां पर्यावरण के मानक उत्तरी अमेरिका व यूरोप की तुलना में कम सख्त हैं।[43] सिलिकॉन वैली टॉक्सिक्स गठबंधन का अनुमान है कि रीसाइक्लिंग के लिए एकत्रित किया जाने वाला 80% पोस्ट-कंज्यूमर ई-वेस्ट (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) विदेशों में जैसे कि चीन और पाकिस्तान में भेज दिया जाता है।[44]

पुराने कंप्यूटर की रीसाइक्लिंग एक गोपनीयता संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे उठाती है। पुराने स्टोरेज उपकरणों में निजी जानकारियां हो सकती हैं जैसे कि ईमेल, पासवर्ड और क्रेडिट कार्ड नंबर, जिन्हें कोई भी इंटरनेट पर उपलब्ध मुफ्त सॉफ्टवेयर की सहायता से आसानी से पुनः प्राप्त कर सकता है। एक फाइल को डिलीट करने से यह वास्तव में हार्ड डिस्क से नहीं हटती. कंप्यूटर की रीसाइक्लिंग से पहले, उपयोगकर्ताओं को पहले हार्ड ड्राइव, या हार्ड ड्राइव्स, यदि एक से अधिक हैं, हटानी चाहिए और इसे पूर्णतया नष्ट कर देना चाहिए या कहीं सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए। कुछ अधिकृत हार्डवेयर रीसाइक्लिंग कम्पनियां भी हैं जहां कंप्यूटर को रीसाइक्लिंग के लिए दिया जा सकता है और वे आमतौर पर एक गैर प्रकटीकरण (नॉन-डिस्क्लोज़र) समझौते पर हस्ताक्षर करती हैं।[45]

टेलीकम्यूटिंग

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ग्रीन कंप्यूटिंग पहलों में अक्सर टेलीकांफ्रेंसिंग और टेलीप्रेजेंस प्रोद्योगिकियां शामिल की जाती हैं। इसके कई फायदे हैं, कार्यकर्ता के संतोष में वृद्धि, यात्रा संबंधित ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी और कार्यालय में ऊपरी लागत, गर्मी, प्रकाश के कम होने के कारण लाभ में बढ़ोत्तरी, इत्यादि बचत प्रभावशाली है; एक अमेरिकी कार्यालय भवन की औसत वार्षिक ऊर्जा खपत प्रति वर्ग फुट 23 किलोवाट प्रति घंटे से अधिक है, जिसमें से सम्पूर्ण ऊर्जा का 70% गर्मी, वातानुकूलन तथा प्रकाश व्यवस्था के लिए खर्च होता है।[46] अन्य संबंधित पहलें जैसे कि होटलों में प्रति कर्मचारी वर्ग फुट कम करना ताकि केवल ज़रुरत पड़ने पर ही कर्मचारी जगह का प्रयोग करें। [47] कई प्रकार की नौकरियां जैसे कि सेल्स, परामर्श और फील्ड सेवाएं इस तकनीक के साथ अच्छी तरह से एकीकृत होती हैं।

वॉयस ओवर आईपी (वोआईपी/VoIP) मौजूदा ईथरनेट कॉपर को साझा करके टेलीफोनी वायरिंग के बुनियादी ढांचे को कम करती है। VoIP और फोन एक्सटेंशन मोबिलिटी ने भी काम करने के स्थान (हॉट डेस्किंग) को अधिक व्यावहारिक बना दिया है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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