हरिराय
हरिराय एक कृष्ण भक्त सन्त एवं ब्रजभाषा के साहित्यकार थे। 'भावप्रकाश' नमक टीकाग्रन्थ उनकी ही रचना मानी जाती है।
हरिराय गोस्वामी विट्ठलनाथ के द्वितीय पुत्र गोविन्दराय के पौत्र और कल्याणरायजी के पुत्र थे। उनका जन्म सं. १६४७ की भाद्रपद कृष्ण ५ को हुआ था। वह गोस्वमी गोकुलनाथजी के बड़े भाई के पौत्र होने के कारण उनके निकट संबंधी और शिष्य थे। आरम्भ से ही हरिरायजी गोकुलनाथजी के संपर्क में रहे, अतः वे उनके ग्रंथों के अभ्यासी और उनके सांप्रदायिक सिद्धांतों के रहस्योदघाटक थे।
हरिराय, गोकुलनाथजी द्वारा वचनामृत रुप से कही हुई मौखिक वार्ताओं के आदि संपादक और प्रचारक थे। वह संस्कृत, गुजराती और ब्रजभाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। उन्होंने इन तीनों भाषाओं में गद्य-पद्यात्मक अनेक ग्रंथों की रचना की है। उनका सबसे महत्त्वपूर्व कार्य 'वार्ता साहित्य' का संकलन और संपादन है। उन्होंने चौरासी वैष्णवन की वार्ता और 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता' पुस्तकों के संपादन के अतिरिक्त "निज वार्ता', "घरु वार्ता' आदि कई वार्ता-पुस्तकों की रचना भी की थी। इस प्रकार वे ब्रजभाषा गद्य के बड़े भारी लेखक थे।[1]