एच सी वर्मा
हरीश चन्द्र वर्मा (जन्म १९५२), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में कार्यरत एक भौतिकविज्ञानी एवं प्राध्यापक हैं। इसके पूर्व उन्होने पटना के विज्ञान महाविद्यालय में अध्यापन किया। उनके कार्य का क्षेत्र नाभिकीय भौतिकी है। उन्होने अनेक पुस्तकों की रचना की है जिनमें 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ फिजिक्स' अत्यन्त लोकप्रिय है। [1] उन्हें 2020 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
हरीश चन्द्र वर्मा | |
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जन्म |
3 अप्रैल, 1952 दरभंगा, बिहार |
क्षेत्र | परमाणु भौतिकी |
शिक्षा | पटना साइंस कॉलेज; भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर |
डॉक्टरी सलाहकार | प्रो॰ जी॰ एन॰ राव |
प्रसिद्धि | भौतिकी शिक्षण |
जन्म
संपादित करेंहरीश चन्द्र वर्मा का जन्म 3 अप्रैल 1952 को बिहार राज्य के दरभंगा जिले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता एक शिक्षक थे। [2] बचपन में वे पढ़ने में तेज नहीं थे। उनके पिताजी शिक्षक थे। प्रारम्भ में गणित और विज्ञान की शिक्षा उनके पिताजी ने ही दी। स्कूल के दिनों में इन्हे विज्ञान और गणित में ज्यादा रूचि नहीं थी। अपनी पुस्तकों में इन्होने अपने माता-पिता और भारतीय संस्कृति को अपने जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया है।
शिक्षा
संपादित करेंस्नातक करने के लिए हरीश चन्द्र वर्मा का दाखिला पटना विज्ञान महाविद्यालय में हुआ। यहाँ के फैकल्टी से प्रभावित होकर हरीश चन्द्र वर्मा के मन में विज्ञान और गणित विषय में रूचि बढ़ी। उनकी रूचि ऐसी बढ़ी की हाई स्कूल की परीक्षा में संघर्ष करने वाले लड़के ने पटना विश्वविद्यालय के BSc भौतिकी (ऑनर्स) में तीसरा स्थान ला दिया। स्नातक कम्पलीट करने के बाद हरीश चन्द्र वर्मा ने GATE की परीक्षा निकाली और आईआईटी कानपुर से MSc के लिए दाखिला लिया। आईआईटी कानपुर में हरीश चन्द्र वर्मा ने सभी लडको में टॉप किया और 10.0 में से 9.9 GPA हासिल किया। उसके बाद उन्होंने आईआईटी कानपुर से ही डॉक्टरेट की पढाई की और तीन वर्षो से भी कम समय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
करियर
संपादित करेंपटना साईंस कॉलेज
संपादित करेंसाईंस कॉलेज में बच्चों को पढ़ते हुए इन्होने देखा कि बच्चे भौतिक विज्ञान की पढाई का आनंद नहीं ले रहे हैं बल्कि पढ़ पढ़ कर उब रहे हैं। जितना एक्सपेरिमेंट हरीश चन्द्र वर्मा ने अपने पढाई के दिनों में फिजिक्स के किताबों (फिक्स्डमेंटल ऑफ़ फिजिक्स रेस्निक और हॉलिडे, जिसे उन्होंने एम.एस.सी. के दौरान पढ़ा था) के साथ किया था उतना एक्सपेरिमेंट तेज विद्यार्थी भी नहीं कर रहे थे। इसका कारण भाषा और सांस्कृतिक अंतर था। ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोग पुस्तक की भाषा में उलझ कर रह जाते थे और वे उसकी अवधारणा और निष्कर्ष तक पहुँचने से पहले ही अपनी रूचि खो बैठते थे।
कॉन्सेप्त्स ऑफ़ फिजिक्स की रचना
संपादित करेंइन सभी समस्याओ को दूर करने के लिए हरीश चन्द्र वर्मा ने एक किताब लिखने की सोची जो भाषा के इस कठिनाई को आसान कर सके। इसके लिए उन्होंने 8 साल तक कठिन परिश्रम किया और फलस्वरूप लोगों के बीच आया कॉन्सेप्त्स ऑफ़ फिजिक्स (Concepts of Physics) । यह पुस्तक भौतिक विज्ञान की सुन्दरता की उजागर करने में सफल रही। इस पुस्तक की सफलता का कारण था इसकी सरल भाषा ,दिलचस्प संख्यात्मक उदाहरण और भारतीय संस्कृति के साथ सम्बन्ध | यह पुस्तक आईआईटी-जेईई (संयुक्त प्रवेश परीक्षा) की तैयारी के लगभग सभी छात्रों द्वारा उपयोग की जाती है। यह हरीश चन्द्र वर्मा द्वारा भारतीय छात्रों, विज्ञान और समाज को दिए गए एक महान उपहार था। आईआईटी कानपुर आने से पहले वह लगभग 15 वर्षों तक पटना विज्ञान महाविद्यालय में रहे।
आई आई टी कानपुर
संपादित करेंडॉ एच सी वर्मा 1994 में सहायक प्रोफेसर के रूप में आईआईटी कानपुर में शामिल हुए। यहां, उन्होंने कई पाठ्यक्रमों के छात्रो को पढाया और “क्वांटम फिजिक्स” नामक एक पुस्तक भी लिखा। डॉ एच सी वर्मा ने प्रयोगात्मक परमाणु भौतिकी में अनुसंधान भी किया। आईआईटी कानपुर में नियमित कार्य के अलावा, उन्होंने शिक्षा और समाज के लाभ के लिए कई सामाजिक-शैक्षिक पहल भी की। इनमें से कुछ पहलुओं में स्कूल फिजिक्स परियोजना, शिक्षा सोपान शामिल हैं। उन्होंने 30 जून 2017 को औपचारिक रिटायरमेंट की घोषणा की। वे 38 सालो से लोगो को फिजिक्स की बारीकियो को समझा रहे थे। नेशनल अंवेशिका नेटवर्क ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक होने के साथ साथ वह देश भर के उत्साही भौतिकी शिक्षकों के लिए कार्यशाला का भी प्रति वर्ष आयोजन करते हैं, जिसके माध्यम से भौतिकी की आम समझ देश के कोने कोने तक पहुंच रही है।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "कैरियर प्रोफाइल ऑफ डॉ॰ एच॰ सी॰ वर्मा" (अंग्रेज़ी में). भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर. मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अक्तूबर 2015. Italic or bold markup not allowed in:
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(मदद) - ↑ "स्प्रेंडिंग दि लाइट ऑफ नौलेज" (अंग्रेज़ी में). दि ट्रिब्यून (चंडीगढ़). 31 अगस्त 2014. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अक्तूबर 2015. Italic or bold markup not allowed in:
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(मदद)