ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष ने सृष्टि बढाने के लिए वीरण प्रजापति की कन्या वीरिणी से विवाह करके मैथुनजनित सृष्टि प्रारम्भ की थी।

जब दक्ष की बनाई मानस सृष्टि में वृद्धि नही हुई तो ब्रह्म जी ने उन्हें मैथुनजनित सृष्टि की रचना करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार दक्ष ने असिक्नी से विवाह किया। असिक्नी के गर्भ से दस हजार पुत्र उत्पन्न हुए जो हर्यश्व कहलाए। पिता दक्ष ने उनको सृष्टि रचना करने की आज्ञा दी। वे सभी नारायण सरोवर के तट पर तपस्या करने लगे। परंतु नारद ने उन्हें भिक्षुओं के मार्ग पर चला दिया।

उक्त प्रसंग का शिवपुराण के पृष्ठ संख्या 175 पर वर्णन है। यह रुद्र संहिता दूसरे भाग के अध्याय 13 में वर्णित है।

यह भी देखो

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1 "संक्षिप्त शिवपुराण" , गीताप्रेस गोरखपुर