हिन्दुत्व: हिन्दू कौन है?
हिन्दुत्व: हिन्दू कौन है? (अंग्रेज़ी: Hindutva: Who is a Hindu?) वीर सावरकर द्वारा १९२३ में लिखा गया एक आदर्शवादी पर्चा है। यह पाठ शब्द हिन्दुत्व (संस्कृत का त्व प्रत्यय से बना, हिन्दू होने के गुण) के कुछ आरम्भिक उपयोगों में अनुर्भूक्त है। यह हिन्दू राष्ट्रवाद के कुछ समकालीन मूलभूत पाठों में उपस्थित है।
लेखक | वीर सावरकर |
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भाषा | अङ्ग्रेज़ी |
प्रकाशक | हिन्दी साहित्य सदन |
प्रकाशन तिथि | 1923 |
प्रकाशन स्थान | भारत |
आई.एस.बी.एन | 9-788-188-38825-7 |
ओ.सी.एल.सी | 0670049905 |
सावरकर ने यह पर्चा रत्नगिरि जेल में क़ेद के दौरान लिखा। इसे जेल से बाहर तस्करी करके ले जाया गया तथा सावरकर के समर्थकों द्वारा उनके छद्म नाम "महरत्ता" से प्रकाशित किया गया।
सावरकर जो कि एक नास्तिक थे, हिन्दुत्व को एक सजातीय, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक पहचान मानते थे। सावरकर के अनुसार हिन्दू भारतवर्ष के देशभक्त वासी हैं जो कि भारत को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानते हैं। [1]
- आसिन्धुसिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः।
- पितृभूपुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः॥
- (अर्थ: प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु से समुद्र तक फैली भारतभूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है।)
सावरकर सभी भारतीय धर्मों को शब्द "हिन्दुत्व" में अनुर्भूक्त करते हैं तथा हिन्दू राष्ट्र का अपना दृष्टिकोण पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले अखण्ड भारत के रूप में प्रस्तुत करते हैं। [2]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "A Hindu is one for whom India is both Fatherland and Holyland.", दीन धनञ्जय वीर सावरकर (पृष्ठ 162)
- ↑ "The Aryans who settled in India at the dawn of history already formed a nation, now embodied in the Hindus. Hindus are bound together not only by the tie of the love they bear to a common fatherland and by the common blood that courses through their veins and keeps our hearts throbbing and our affection warm but also by the tie of the common homage we pay to our great civilisation, our Hindu culture." (पृष्ठ 108)