हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
हिन्दुस्तान समाजवादी गणतंत्रवादी संगठन भारतीय स्वतन्त्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश राज को समाप्त करने के उद्देश्य को लेकर गठित एक क्रान्तिकारी संगठन था।। 1928 तक इसे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के रूप में जाना जाता था।।[1]
स्थापना
संपादित करेंहिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की स्थापना अक्टूबर 1924 में भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चन्द्र चटर्जी, चंद्रशेखर आजाद और शचींद्रनाथ सान्याल आदि ने कानपुर में की थी।। पार्टी का उद्देश्य सशस्त्र क्रान्ति को व्यवस्थित करके औपनिवेशिक शासन समाप्त करने और संघीय गणराज्य संयुक्त राज्य भारत की स्थापना करना था।।[1] काकोरी काण्ड के पश्चात् जब इस दल के चार क्रान्तिकारियों को फाँसी दे दी गयी तथा सोलह अन्य को कैद की सजायें देकर जेल में डाल दिया गया तब इसी दल के एक प्रमुख सदस्य चन्द्र शेखर आज़ाद ने भगत सिंह, विजय कुमार सिन्हा, कुन्दन लाल गुप्त, भगवती चरण वोहरा, जयदेव कपूर व शिव वर्मा आदि से सम्पर्क किया। इस नये दल के गठन में पंजाब, संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, राजपूताना, बिहार एवं उडीसा आदि अनेक प्रान्तों के क्रान्तिकारी शामिल थे।[2]. 8 व 9 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक करके भगत सिंह की भारत नौजवान सभा के सभी सदस्यों ने सभा का विलय हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में किया और काफी विचार-विमर्श के बाद आम सहमति से ऐसोसिएशन को एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन।।[3]
दल का उद्देश्य और विभाग
संपादित करेंहिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन का उद्देश्य व अन्तिम लक्ष्य स्वाधीनता प्राप्त करना और समाजवादी राज्य की स्थापना था। दल की ओर से बम का दर्शन नाम से प्रकाशित एक लघु पुस्तिका में क्रान्तिकारी आन्दोलन की समस्या के बारे में अपने विचार खुलकर प्रकट किये गये थे।[2].
दल के तीन विभाग रखे गये थे - संगठन, प्रचार और सामरिक संगठन विभाग। संगठन का दायित्व विजय कुमार सिन्हा, प्रचार का दायित्व भगत सिंह और सामरिक विभाग का दायित्व चन्द्र शेखर आजाद को सौंपा गया था।। इस घटना के बाद ही कांग्रेस ने मौलिक अधिकार स्वीकारा था HSRA संगठन की जानकारी भगौती चरण बोरा की पुस्तक philosphy of the Burn से मिलती है। इस घटना का उद्देश्य सामाजिक अर्थिक आजादी पाता था[3]
दल के प्रमुख कार्य
संपादित करेंपहले दिसम्बर 1927 में राजेन्द्र लाहिडी, अशफाक उल्ला खाँ, राम प्रसाद 'बिस्मिल' तथा रोशन सिंह - चार को एक साथ फाँसी उसके बाद नवम्बर 1928 में लाला लाजपत राय की पुलिस के लाठी-प्रहार से हुई मृत्यु ने आग में घी का काम किया। इस दल ने एक माह के अन्दर ही स्कॉट को दिन दहाड़े मारने की तैयारी की लेकिन स्कॉट की जगह साण्डर्स मारा गया। भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु तीनों फरार हो गये। इतने में ही सेण्ट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ तो इन युवकों ने बहरी सरकार को अपना विरोध दर्ज कराने की गर्ज से संसद में ही बम विस्फोट कर दिया। गिरफ्तारियाँ हुईं और क्रान्तिकारियों पर लाहौर षड्यन्त्र एवं असेम्बली बम काण्ड का मुकदमा चलाया गया। मार्च 1931 में सुखदेव, राजगुरु व भगत सिंह को लाहौर जेल में फाँसी दे दी गयी।।[3]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ सान्याल, जतिन्दरनाथ; यादव, कृपाल चंद्र; सिंह, भगत व सिंह, बाबर (2006). Bhagat Singh: a biography (अंग्रेज़ी में). लॉरेंस: पिनेक्ल टैकनोलजी. पपृ॰ 40–44. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8178710595.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
- ↑ अ आ सिंह, अयोध्या (2003). भारत का मुक्ति संग्राम (3 संस्करण). दिल्ली: ग्रन्थ शिल्पी. पृ॰ 483. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7917-033-0 (PB)
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के मान की जाँच करें: invalid character (मदद). - ↑ अ आ इ क्रान्त, मदनलाल वर्मा (2006). स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास. 1 (1 संस्करण). नई दिल्ली: प्रवीण प्रकाशन. पृ॰ 329. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-119-4. मूल से 14 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित.