हिमालय की गोद में
हिमालय की गोद में १९६५ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसके निर्देशक विजय भट्ट और निर्माता शंकरभाई भट्ट हैं। फ़िल्म में मुख्य भूमिका मनोज कुमार, माला सिन्हा और शशि कला ने निभाई है। इस फ़िल्म को १९६५ में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था। बॉक्स ऑफ़िस पर यह फ़िल्म "सुपर हिट" और १९६० के दशक की २० सबसे बड़ी फ़िल्मों में से एक घोषित हुयी।
हिमालय की गोद में | |
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हिमालय की गोद में का पोस्टर | |
निर्देशक | विजय भट्ट |
लेखक | वीरेन्द्र सिन्हा (कहानी, पटकथा एवं संवाद) |
निर्माता | शंकरभाई भट्ट |
अभिनेता |
मनोज कुमार, माला सिन्हा, शशि कला |
छायाकार | प्रवीण भट्ट |
संपादक | प्रताप दवे |
संगीतकार |
कल्याणजी-आनन्दजी (संगीतकार) आनन्द बख़्शी, इन्दीवर एवं क़मर जलालाबादी (गीतकार) |
निर्माण कंपनी |
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वितरक | श्री प्रकाश पिक्चर्स |
प्रदर्शन तिथि |
१९६५ |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
संक्षेप
संपादित करेंसुनील मेहरा (मनोज कुमार) लंदन से अपनी डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर अपनी साथी नीता (शशिकला) के साथ हवाई जहाज़ से भारत वापस आ रहा है कि तभी एक मुसाफ़िर को दिल का दौरा पड़ जाता है। सुनील हवाई जहाज़ के चालक को कहीं नज़दीक ही उतरवाने की सलाह देता है और हवाई जहाज़ हिमालय में एक छोटी सी हवाई पट्टी पर उतार दिया जाता है। सुनील उतर कर आस-पास अस्पताल की तलाश में निकलता है तो उसे लाखन (जयंत) के डाकुओं का गिरोह मिलता है जो उसे लूटकर खाई में फेंक देता है। उस गांव की एक लड़की फुलवा (माला सिन्हा) जब अपनी दोस्तों के साथ कहीं जा रही थी तो उसे ज़ख़्मी हालत में पड़ा हुआ सुनील मिलता है जिसे वह अपने घर ले आती है और गांव के घोघड़ बाबा (कन्हैया लाल) से इलाज करवाती है जो उसे यह सलाह देता है कि अगर वह दवाई खायेगी तो मरीज़ ठीक हो जायेगा। धीरे-धीरे अपने आप सुनील ठीक हो जाता है लेकिन फुलवा इसका श्रेय घोघड़ बाबा को देती है।
ठीक होने के बाद सुनील वापस शहर चला जाता है और एक दिन फुलवा अपने बापू (डेविड अब्राहम) को लेकर शहर पहुँचती है क्योंकि उसके गांव में भयंकर बीमारी फैली हुयी है। सुनील उसके बापू को ठीक कर देता है और फिर उसे पता चलता है कि उनके गांव में तो कोई डॉक्टर है ही नहीं। सुनील उसके गांव में जाकर एक अस्पताल खोलने का मन बना लेता है तो उसके पिता (डी के सप्रू), जो उस रेंज के डी आय जी हैं उसे सचेत करते हैं कि वह कई सालों से एक डाकू लाखन (जयंत) के पीछे पड़े हैं, इसलिए गांव में वह यह न बताये कि वह किसका बेटा है।
गांव में आकर शुरु में घोघड़ बाबा (कन्हैया लाल) के ग़ुर्गे उसे गांव वालों के सामने बेइज़्ज़त करते हैं लेकिन जैसे ही वह गांव के लोगों का उपचार शुरु करता है तो सब उसके साथ हो लेते हैं। उसकी फ़िक्र में उसके माता-पिता नीता (जिसको उन्होंने सुनील का मंगेतर मान लिया है) को गांव में भेजते हैं कि शायद वह उसको वापस रिझा लाये लेकिन सुनील नीता से भी उसके साथ काम करने का प्रस्ताव रखता है। कुछ दिन तो नीता उसके साथ काम करती है लेकिन वहाँ के बुरे हालात को देखकर नीता वापस चली जाती है और उनका रिश्ता भी टूट जाता है। वह फुलवा से प्रेम भी करने लगता है। फ़िल्म के अंत में सुनील और फुलवा का मिलन दिखाया गया है।
मुख्य कलाकार
संपादित करें- मनोज कुमार - सुनील मेहरा
- माला सिन्हा - फुलवा
- शशि कला - नीता
- जयंत - लाखन (एक डाकू और फुलवा का असली पिता)
- अचला सचदेव - सुनील की माँ
- डेविड अब्राहम - दयाल (लाखन का बड़ा भाई जिसने फुलवा को अपनी बेटी की तरह पाला है)
- मुकरी - बुद्धिमान (घोघड़ बाबा का चेला)
- कन्हैया लाल - घोघड़ बाबा
- डी के सप्रू - पुलिस में डी आय जी और सुनील का पिता
संगीत
संपादित करेंइस फ़िल्म का संगीत दिया है कल्याणजी-आनन्दजी ने और उनके सहायक हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। इस फ़िल्म के तीन गीतकार हैं आनन्द बख़्शी, इन्दीवर एवं क़मर जलालाबादी।
गीत | गायक/गायिका | गीतकार | |
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१ | एक तू जो मिला | लता मंगेशकर | इन्दीवर |
२ | एक तू न मिला | लता मंगेशकर | इन्दीवर |
३ | मैं तो एक ख़्वाब हूँ | मुकेश | क़मर जलालाबादी |
४ | ऊँचे हिमालय के नीचे | लता मंगेशकर | आनन्द बख़्शी |
५ | कंकड़िया मार के जगाया | लता मंगेशकर | आनन्द बख़्शी |
६ | तू रात खड़ी थी छत पे | मोहम्मद रफ़ी, उषा टिमथी | आनन्द बख़्शी |
७ | चांद सी महबूबा हो | मुकेश | आनन्द बख़्शी |
नामांकन और पुरस्कार
संपादित करें- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - शंकरभाई भट्ट