हृदय चक्र मानव हृदय का कार्य है जिसमें एक धड़कन की शुरुआत से लेकर अगली धड़कन की शुरुआत तक की सभी क्रियाएँ शामिल हैं।

हृदय चक्र: वाल्व स्थिति, रक्त प्रवाह और ईसीजी

इसमें दो पल शामिल होते हैं: पहला हृत्प्रसार। हृत्प्रसार में हृदय की माँस-पेशियाँ शिथिल होती हैं और हृदय में रक्त भर जाता है। इसके अगले क्षण में हृदय का प्रकुंचन शुरु होता है। इसमें हृदय की माँस-पेशियाँ सिकुड़ती हैं और रक्त धमनियों में चला जाता है। इसके बाद हृदय खाली हो जाता है और फिर से रक्त भरने के लिए तैयार होता है। सामान्य रूप से कार्य करने वाले हृदय में रक्त भरने से पहले उसका पूरी तरह से फैलना आवश्यक है। एक स्वस्थ हृदय को प्रति मिनट 70 से 75 धड़कनों की सामान्य दर से एक हृदय चक्र को पूरा करने में लगभग 0.8 सैकेंड लगते हैं।[1]

हृदय के अनुभाग का कार्य

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हृदय के दो आलिंद तथा दो निलय होेते हैं। वे बाएँ हृदय तथा दाएँ हृदय का जोड़ा होते हैं। जैसे-बायाँ आलिंद बाएँ निलय के साथ, दायाँ आलिंद दाएँ निलय के साथ। वे लगातार हृदय चक्र को दोहराने के लिए मिलकर काम करते हैं। चक्र की शुरुआत में हृदय रक्त प्रवाह के दौरान दोनों प्रकोष्ठ के द्वारा दोनों निलय में शिथिल होता है तथा फैलता है।[2] माइट्रल और ट्राइकसपिड वॉल्व को आलिंदनिलय के रूप में भी जाना जाता है। माइट्रल और त्रिकपर्दी वॉल्व, भरण की अनुमति देने के लिए गुहा हृत्प्रसार के दौरान खुलते हैं।

  1. गर्श, बर्नार्ड जे (2000). मेयो क्लीनिक हार्ट बुक. न्ययॉर्क: विलियम मोरो. पपृ॰ 6–8. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-688-17642-9.
  2. तोपोल, ऐरिक जे (2000). क्लेवेलैंड क्लीलिक हार्ट बुक. न्यूयॉर्क: हाईपैरियन. पपृ॰ 4–5. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7868-6495-8.