हृदय

रक्त परिसंचरण तंत्र में रक्त के संचलन के लिए अंग

हृदय वा हिया एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है।

कशेरुकियों का हृदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल हृदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव हृदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ अरब बार धड़कता है। मनुष्य का हिया १ बार मे ७० मिली लीटर रक्त पम्प करता है,१ दिन मे ७६०० लीटर(२००० gallons) तथा अपने जीवन काल मे २०० मिलियन लीटर रक्त पम्प करता है।इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है।[1]

प्रारंभिक विकास

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स्तनधारियों का हृदय भ्रूणीय मध्य जनन स्तर (mesoderm) से विकसित होता है जो गेसट्रुला भवन (gastrulation) के बाद मध्यकला (mesothelium), अंत: कला (endothelium) और हृदपेशी (myocardium) में विभेदित हो जाता है। मध्य कला का पेरीकार्डियम (pericardium) हृदय का भीतरी अस्तर बनता है। हृदय का बाहरी आवरण, लसिका और रक्त वाहिनियाँ अन्तः कला से विकसित होती है। हृदयपेशी वा मायोकार्डियम का विकास हृदय की पेशियों में होता है।[2]

मध्य जनन स्तर के आद्यशय (splachnopleuric mesoderm) उतक से, हृद जेनिक प्लेट का विकास, तंत्रिका प्लेट (neural plate) के पार्श्व में तथा केंद्र में होता है। हृद जनिक प्लेट में, भ्रूण के किसी पार्श्व में दो अलग वाहिका जनक कोशिका समूहों का निर्माण होता है। प्रत्येक कोशिका समूह संगलित हो कर एक अंतर हृदयी नलिका का निर्माण करती है जो एक पृष्ठीय महा धमनी और एक विटेलोम्बीलिकल शिरा के साथ सतत होती है। क्योंकि भ्रूणीय उतक लगातार वलयित होता रहता है, दो अंतर हृदयी नलिकाएं वक्ष गुहा में खिसक जाती हैं और एक दूसरे के साथ संगलित होना आरम्भ कर देती हैं और लगभग २१ दिनों में पूरी संगलित हो जाती हैं।[3]

 
गर्भाधान (conception) के २१ दिनों पर मानव हृदय प्रति मिनट ७० से ८० बार धडकना आरम्भ कर देता है, धड़कन के पहले माह के लिए अस्तरित रूप से त्वरित होने लगता है।

मानव भ्रूणीय (embryon) हृदय गर्भाधान के लगभग २३ दिन के बाद धडकना आरम्भ करता है, वा आखिरी सामान्य माहवारी (menstrual period) (एल एम पी) के पांचवें सप्ताह के बाद धड़कना आरम्भ करता है, इसी दिनांक को गर्भावस्था के दिनों की गणना के लिए काम में लिया जाता है। यह अज्ञात है कि मानव भ्रूण में पहले २१ दिनों तक एक क्रियात्मक हृदय की अनुपस्थिति में रक्त का प्रवाह कैसे होता है। मानव हृदय माँ के हृदय के धड़कन की दर, लगभग ७५-८० बार प्रति मिनट की दर से धड़कने लगता है। (बी पी एम)

भ्रूण हृदय दर (ई एच आर) अब धड़कन के पहले माह के लिए अस्तर के साथ त्वरित होने लगती है, जो प्रारंभिक ७ वें सप्ताह के दौरान १६५-१८५ धड़कन प्रति मिनट पहुँच जाती है। (प्रारंभिक ९ वां सप्ताह एल एम पी के बाद) यह त्वरण लगभग ३.३ धड़कन प्रति मिनट प्रति दिन होता है। वा १० धड़कन प्रति मिनट प्रति तीन दिन होता है, पहले माह में १०० धड़कन प्रति मिनट की वृद्धि होती है।[4] एल एम पी के बाद लगभग ९.१ सप्ताह पर, एल एम पी के बाद १५ वें सप्ताह के दौरान यह लगभग १५२ धड़कन प्रति मिनट तक कम वा संदमित (+/-२५ धड़कन प्रति मिनट) हो जाती है। १५ वें सप्ताह के बाद संदमन धीमा हो जाता है और यह औसतन १४५ धड़कन (+/-२५ धड़कन प्रति मिनट) प्रति मिनट की दर पर पहुँच जाता है। प्रतिगमन सूत्र जो भ्रूण के २५ मिली मीटर तक पहुँचने से पहले जो त्वरण का वर्णन करता है; शीर्ष से लेकर दुम तक की लम्बाई में वा दिनों में आयु ९.२ एल एम पी सप्ताह=ई एच आर (० .३)+६।

जन्म से पहले नर और मादा के हृदय दर में कोई अंतर नहीं होता है, यह १९९५ में डा.डायलन एंजियो लिलो के द्वारा पता लगाया गया।[5]

हृदय की संरचना जंतु जगत् (animal kingdom) की भिन्न शाखाओं में अलग अलग होती है। (देखिए परिसंचरण तंत्र (Circulatory system).)सिफेलोपोड़ (Cephalopod) में दो "गिल हृदय" और एक "सिस्टमिक हृदय " होता है।मछली में एक दो कक्षों का हृदय होता है, जो रक्त को गिल (gill) में पम्प करता है और वहां से रक्त शेष शरीर में जाता है।उभयचरों (amphibian) और अधिकांश रेप्टाइल्स में द्विक परिसंचरण तंत्र (double circulatory system) होता है, लेकिन हृदय हमेशा दो पम्पों में पृथक नहीं होता है। उभयचरों में तीन कक्षों से युक्त हृदय होता है।

 
मानव हृदय को ६४ साल के वृद्ध पुरुष में से हटाया गया.
 
सतह शारीरिकी हृदय की.हृदय निम्न के द्वारा चिन्हित है:
मध्य स्टरनल रेखा (midsternal line) के बायीं और ९ सेंटी मीटर पर एक बिंदु.(हृदय का शीर्ष)
-सातवीं दायीं उर : पर्शुकीय संधि (sternocostal articulation)
-दायीं स्टरनल रेखा (sternal line)
से १ सेमी तीसरी दायीं सीमा उपास्थि की उपरी सीमा. -बायीं पार्श्व स्टरनल रेखा से २.५ सेमी दूसरी बायीं सीमा उपास्थी का निचला छोर।[6]

पक्षी और स्तनधारी दो पम्पों में हृदय का पूर्ण पृथक्करण दर्शाते हैं, इनमें कुल चार हृदयी कक्ष (heart chamber) होते हैं; यह माना जाता है कि पक्षियों का चार कक्ष का हृदय स्वतंत्र रूप से स्तनधारियों से विकसित हुआ है।

मानव के शरीर में, सामान्यतया हृदय वक्ष (thorax) के मध्य में स्थित होता है, हृदय का सबसे बड़ा भाग कुछ बायीं और स्तन की अस्थि (breastbone) के नीचे होता है, (हालाँकि कभी कभी यह दायीं और होता है देखें डेक्सट्रो कार्डिया (dextrocardia)).हृदय सामान्यतया बायीं और महसूस होता है, क्योंकि बायाँ हृदय (left heart)(बायाँ निलय) अधिक प्रबल होता है (यह शरीर के सभी भागों में पम्प करता है) बायाँ फेफड़ा दायें फेफडे से छोटा होता है, क्योंकि हृदय बाएं अर्द्ध वक्ष (hemithorax) की अधिकांश जगह घेर लेता है.हृदय में रक्त कोरोनरी परिसंचरण (coronary circulation) के द्वारा पहुँचता है और यह एक थैली के द्वारा आवरित होता है जिसे पेरी कार्डियम (pericardium) कहते हैं, यह फेफड़ों से घिरा रहता है। पेरीकार्डियम दो भागों से बना होता है: तंतुमय पेरीकार्डियम जो सघन तंतुमय संयोजी उतक (dense fibrous connective tissue) से बना होता है; और एक दोहरी झिल्लीई कि संरचना (भित्तीय और अंतरंगी पेरीकार्डियम) जो एक सीरमी (serous) द्रव्य से युक्त होती है और हृदय के संकुचनों के दौरान घर्षण को कम करती है। हृदय वक्ष गुहा के केन्द्रीय विभाजन मध्य स्थानिका (mediastinum) में स्थित होता है। मध्य स्थानिका में अन्य संरचनाएं भी होती हैं, जैसे ग्रसनी और शवास नली और इसमें बायीं और दायीं फुफ्फुसीय गुहाएं होती हैं, जिसमें फेफडे (lung) होते हैं।[7]

एपेक्स नीचली दिशा में स्थित एक भौंटा बिंदु होता है। (जो नीचे और बायीं और मुँह किये होता है)। धडकनों की गणना करने के लिए एक परिश्रावक (stethoscope) को सीधे एपेक्स के ऊपर लगाया जाता है। यह बायीं मध्य क्लेविकल की रेखा के ५ वें अंतर मध्य स्थान के पृष्ठ भाग में स्थित होता है। सामान्य वयस्कों में, हृदय का द्रव्यमान २५०-३०० ग्राम (९-१२ ऑउंस) होता है, वा यह आकर में बंद मुट्ठी का दोगुना होता है। (बच्चों में यह लगभग बंद मुट्ठी के आकर का होता है), लेकिन अतिवृद्धि (hypertrophy) के कारण रोगी हृदय का द्रव्यमान १००० ग्राम (२ lb) हो सकता है। इसमें चार कक्ष होते हैं, उपरी दो आलिंद (एकवचन : एट्रियम ) और नीचले दो निलय . मिकेल्

स्तनधारियों में, हृदय के दायें भाग का कार्य (देखें दायां हृदय (right heart)) है शरीर से (पृष्ठीय और अधर महा शिरा के द्वारा) आये हुए ऑक्सीजन विहीन रक्त को दायें आलिंद (right atrium) में एकत्रित करना और इसे दायें निलय (right ventricle) से होकर फेफडों में पम्प करना (फुफ्फुसीय परिसंचरण (pulmonary circulation)) ताकि कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त करके ऑक्सीजन (गैस मुद्रा) को एकत्रित किया जा सके (गैस विनिमय (gas exchange))। यह प्रसरण (diffusion) की निष्क्रिय प्रक्रिया के द्वारा होता है। बायाँ भाग (देखें बायाँ हृदय (left heart))फुफ्फुस (lung) से ऑक्सीजन युक्त रक्त को बाएं आलिंद (left atrium) में एकत्रित करता है। बाएं आलिंद से रक्त बाएं निलय (left ventricle) में स्थान्तरित होता है जो इसे (महाधमनी) के माध्यम से शरीर में पम्प करता है। दोनों ओर, निचले निलय उपरी आलिंदों से अधिक मोटे ओर प्रबल होते हैं। बाएं निलय की पेशीय दीवार, दायें निलय की दीवार की तुलना में अधिक मोटी होती है, क्योंकि सिस्टेमिक परिसंचरण (systemic circulation) के माध्यम से रक्त को पम्प करने के लिए अधिक बल की जरुरत होती है।

दायें आलिंद में आरम्भ होकर, रक्त त्रिकपर्दी कपाट (tricuspid valve) के माध्यम से दायें निलय में प्रवाहित होता है। यहाँ यह फुफ्फुसीय अर्द्ध चंद्रकार कपाट में से होकर बाहर की ओर पम्प होता है, ओर फुफ्फुसीय धमनी (artery) के माध्यम से फेफडों में प्रवाहित होता है। वहाँ से, रक्त फुफ्फुसीय शिरा (vein) के माध्यम से बाएं आलिंद में लौट जाता है। अब यह मिट्रल कपाट (mitral valve) के माध्यम से बाएं निलय में जाता है, जहाँ से यह महाधमनी अर्द्ध चंद्रकार कपाट के माध्यम से महाधमनी (aorta) में पम्प किया जाता है। महा धमनी की शाखाएं ओर रक्त मुख्य धमनियों में विभाजित हो जाता है, जो शरीर के उपरी ओर निचले हिस्से में रक्त की आपूर्ति करता है। रक्त धमनियों से छोटी धमनिकाओं में प्रवाहित होता है और अंत में सूक्ष्म केशिकाओं को स्थानांतरित होता है जो प्रत्येक केशिका को पोषण देती हैं। (अपेक्षाकृत) ऑक्सीजन विहीन रक्त अब शिरिकाओं में जाता है, जो संयुक्त होकर शिराएँ बन जाती हैं, ओर फिर पृष्ठ व अधर महा शिरा में से होते हुए, अंततः दायें आलिंद में पहुच जाता है जहां से प्रक्रिया पुनः आरम्भ हो जाती है।

हृदय प्रभावी रूप से एक सिनसाईटियम (syncytium) होता है, जिसमें हृद पेशियों की कोशिका झिल्लियों के संगलन के फलस्वरूप कोशिका द्रव्य मिल कर एक हो जाते हैं। यह विद्युत आवेग के एक कोशिका से दूसरी पडौसी कोशिका तक प्रसार से सम्बंधित है।

प्राथमिक चिकित्सा

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हृदय

हृदय एक जंतु के शरीर के जटिल (critical) अंगों में से एक है, क्योंकि यह पूरे शरीर की जैविक क्रियाओं के लिए ऑक्सीजन युक्त रक्त उपलब्ध करता है। हृदय की धड़कन का रुकना, कार्डियक अरेस्ट (cardiac arrest) कहलाता है जो एक गंभीर आपात काल की स्थिति है। यदि इस पर ध्यान न दिया जाये तो कार्डियक अरेस्ट के कुछ मिनटों के अन्दर मृत्यु हो सकती है क्योंकि मस्तिष्क (brain) को ऑक्सीजन की सतत आपूर्ति की आवश्यकता होती है, यदि यह आपूर्ति लम्बे समय तक रुक जाये तो मृत्यु हो सकती है।

यदि एक व्यक्ति को कार्डियक अरेस्ट हो गया है, तो तुंरत हृद-फुफुस्सीय पुनर् जीवन (cardiopulmonary resuscitation) आरम्भ कर देना चाहिए ओर सहायता दी जानी (help called) चाहिए। यदि उपलब्ध हो तो हृदय के विकम्पन को रोकने वाले उपकरण (defibrillator) को प्राथमिकता दी जाती है और उसके द्वारा सामान्य हृदय धड़कन बहाल करने का प्रयास किया जाता है; अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्रों में ऐसी आपात काल की स्थिति के लिए पोर्टेबल डीफिब्रीलेटर उपकरण (portable defibrillators) उपलब्ध होते हैं। आम तौर पर यदि पर्याप्त समय हो तो, व्यक्ति को जल्दी से अस्पताल पहुँचाया जाना चाहिए, जहाँ उसे आपात काल विभाग में पुनर्जीवन देने की प्रयत्न की जाती है।

दो निकट संबंधी अंतर सम्बंधित प्रणालियों के द्वारा स्वास्थ्य में हृदय के विद्युतीय अंतर्वेशन की आपूर्ती की जाती है। पहली प्रणाली विद्युत कुंडलनी सिस्टोल में भली प्रकार से प्रदर्शित की जाती है, (इसे क्यू आर एस के रूप में इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम के द्वारा पता लगाया जा सकता है) चूँकि एक व्यक्तिगत पेशी हृदयी विद्युतीय वृक्ष सैनो एटरियल नोड वा शिरा अलिंदी पर्व के द्वारा बनने लगता है। द्वितीयक डायसटोल का विद्युतीय नियंत्रण, वेगस तंत्रिका और कार्डियक शाखाओं और वक्षीय गुचछिका से स्वायत्त पुनः कुंड lanii नियंत्रण का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है।

खोजों का इतिहास

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एक गन शोट के साथ हृदय की तस्वीर

हृदय के कपाटों की खोज चौथी सदी में हिप्पोक्रेटन स्कूल के एक चिकित्सक के द्वारा की गयी। हालाँकि तब इन के कार्य को ठीक प्रकार से समझा नहीं गया था। क्योंकि मृत्यु के बाद रक्त, शिराओं में संचित हो जाता है, धमनियां खाली हो जाती हैं। प्राचीन शारीरिकी विज्ञानी मानते थे कि ये हवा से भर जाती हैं और वायु का परिवहन करती हैं।

दार्शनिकों (Philosophers) ने शिराओं को धमनियों से विभेदित किया लेकिन सोचा कि पल्स वा नाड़ी धमनियों का ही एक लक्षण है।इरेसिसट्रेट्स (Erasistratos) ने अवलोकन किया कि धमनियां ही जीवन रक्त स्राव के दौरान कट जाती हैं। उन्होंने बताया कि एक धमनी से मुक्त होने वाली वायु रक्त के द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है, जो शिरों और धमनियों के बीच बहुत छोटी केशिकाओं के द्वारा प्रवेश करता है। इस प्रकार उन्होंने जाहिर तौर पर केशिकाओं (capillaries) की अवधारणा डी लेकिन रक्त के उलट प्रवाह के साथ।

दूसरी शताब्दी ई. में, यूनानी चिकित्सक गलेनोस (गालन (Galen)) जानते थे कि रक्त वाहिनियाँ रक्त को प्रवाहित करती हैं और उन्होंने शिरीय (गहरा रक्त) और धमनिय (चमकीला और पतला) रक्त की पहचान की और बताया कि दोनों के कार्य अलग अलग हैं। वृद्धि और ऊर्जा की उत्पत्ति यकृत में काइल (chyle) से शिरीय रक्त के द्वारा होती है. जबकि धमनियों का रक्त जो न्युमा (वायु) से युक्त होता है जीवन देता है और हृदय में उत्पन्न होता है। रक्त दोनों निर्माणात्मक अंगों से शरीर के सभी भागों में प्रवाहित होता है, जहां इसका उपभोग किया जाता है और हृदय से यकृत को रक्त लौट कर नहीं आता है। हृदय रक्त को चारों और पम्प नहीं करता है, हृदय की गति डायसटोल के दौरान रक्त को अपने अन्दर ले लेती है और रक्त धमनियों के स्पंदन के कारण गति करता है।

गालन का मानना था कि धमनीय रक्त का निर्माण शिरीय रक्त के बाएं निलय से दायें निलय में स्थानांतरण के द्वारा होता है, यह स्थानांतरण अंतर निलयी पट के 'छिद्रों' के द्वारा होता है, वायु फेफडों से फुफ्फुसीय धमनी के माध्यम से हृदय के बायीं और पहुंचती है। चूँकि धमनीय रक्त 'मलिन' वाष्प उत्पन्न करता है और निष्कासित किये जाने के लिए फुफ्फुसीय धमनी के माध्यम से फेफडों को भी प्रवाहित होता है।

हृदय की शारीरिकी के बारे में आधुनिक विचार हृद विज्ञानी डा. फ्रांसिस्को टोरेंट -गास्प (Francesco Torrent-Guasp) ने दिए, जिन्होंने १९९७ में हृदय के दर्शन और कार्य के बारे में अपने सिद्धांत को, अध्ययन के ४० से भी अधिक सालों के बाद, प्रकाशित किया। डा. टोरेंट का माॅडल बताता है कि हृदय पेशी का एक मात्र बंद है, जो फुफ्फुसीय धमनी पर आरम्भ होकर महाधमनी निकास के नीचे समाप्त होता है। यह बेंड खुद भी दोहरी कुंडलनी में बंद है, जो दोनों निलायी गुहाओं को एक दीवार से घेरते हैं, जो उन्हें अलग करती है। उनका माॅडल यह भी बताता है कि, यह बेंड कैसे संकुचित होकर रक्त के अवशोषण और निकास के लिए उत्तरदायी है। जब से इसे व्यापक रूप से जाना जाता है, इस माॅडल की एक मुख्य उपलब्धि रही है, कि नीला रक्त बाएं निलय में अप्रत्यक्ष रूप से प्रवेश करता है। इससे कई नयी शल्य तकनीकों का भी विकास हुआ है।

स्वस्थ हृदय

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मोटापा, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) हृदय रोग (heart disease) के जोखिम को बढ़ाते हैं। हालांकि, हृदयाघात के आधे मामले उन लोगों में होते हैं जिनमें कोलेस्ट्रोल का स्तर सामान्य होता है।शोथ (Inflammation) को अब कुल कोलेस्ट्रोल के स्तर से अधिक विचारणीय माना जाता है।[तथ्य वांछित]हृदय रोग मृत्यु का मुख्य कारण है, पश्चिमी विश्व में अधिकांश मृत्युओं का एक मुख्य कारण)

इन सुझावों पर भी ध्यान दें कि विशेष प्रकार की राता मदिरा पीना हृदय रोग के खतरे को कम करता है। यह इसका मुख्य कारण है कि फ्रांस में लोग ऐसे अच्छे भोजन का आनंद उठाते हैं और उन्हें हृदय की समस्याएं कम होती हैं। बेशक अन्य कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए, जैसे जीवन शैली, समग्र स्वास्थ्य (मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भौतिक वा शारीरिक)।[8][9][10][11]

खाद्य उपयोग

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मवेशी (cattle), भेड़ (sheep), सूअर (pig) और विशेष पक्षियों (chicken) और मुर्गों (fowl) के हृदय कई देशों में खाए जाते हैं। उन्हें मगज या ओफ्फल (offal) कहा जाता है, लेकिन एक माँस होने की वजह से हृदय का स्वाद सामान्य माँस के समान का ही होता है। यह संरचना और स्वाद में हिरन के मांस (venison) से मिलता जुलता होता है।

इन्हें भी देखें

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  1. कुमार, अब्बास, फास्तो: रोग का रोबिनसन और कोटरान रोग विज्ञान आधार , ७ वन संस्करण पी.५५६
  2. "जंतु उतक". मूल से 5 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जून 2009.
  3. "मुख्य फ़्रेम ह्रदय विकास>". मूल से 16 नवंबर 2001 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जून 2009.
  4. "OBGYN.net "भ्रूणीय ह्रदय दर की तुलना सहायता प्राप्त और सहायता अप्राप्त गर्भावास्थाओं में"". मूल से 30 जून 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  5. टेरी जे ड्यू बोस लिंग, हृदय गति और आयु Archived 2012-06-15 at the वेबैक मशीन
  6. "मानव शरीर की ग्रे की शारीरिकी-६ वक्ष का सतही चिन्हीकरण". मूल से 30 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जून 2009.
  7. Maton, Anthea (1993). Human Biology and Health. Englewood Cliffs, New Jersey: Prentice Hall. OCLC 32308337. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-13-981176-1. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  8. "Eating for a healthy heart". MedicineWeb. मूल से 14 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जून 2009.
  9. Division of Vital Statistics (21 अगस्त 2007). "Deaths: Final data for 2004" (PDF). National Vital Statistics Reports. United States: Center for Disease Control. 55 (19): 7. मूल से 25 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 30 दिसंबर 2007. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद); |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  10. White House News, American Heart Month, 2007, मूल से 3 जुलाई 2009 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2007
  11. राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रेस रिलीज़ २५ मई २००६

बाहरी सम्बन्ध

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