२०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर

2010 से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर

मध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में श्रृखंलाबद्ध विरोध-प्रदर्शन एवं धरण-प्रदर्शन का दौर २०१० मे आरंभ हुआ। इस विद्रोह को अरब जागृति, अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह कहतें हैं। अरब स्प्रिंग क्रान्ति की एक ऐसी लहर थी जिसने धरना-प्रदर्शन, विरोध-प्रदर्शन, दंगा तथा सशस्त्र संघर्ष की बदौलत पूरे अरब जगत के संग समूचे विश्व को हिला कर रख दिया था।

अरब स्प्रिंग
स्थान अरब देश
कारण
विधि

इसकी शुरूआत ट्यूनीशिया[1] में १८ दिसम्बर २०१० को मोहम्मद बउज़ीज़ी (Md. Bouazizi) के आत्मदाह के साथ हुई। इसकी आग की लपटें पहले-पहले अल्जीरिया, मिस्र[2], जॉर्डन[3] और यमन[4] पहुँची जो शीघ्र ही पूरे अरब लीग एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में फैल गई। इन विरोध प्रदर्शनो के परिणाम स्वरूप कई देशों के शासकों को सत्ता की गद्दी से हटने पर मजबूर होना पड़ा। बहरीन, सीरिया, अल्जीरिया, ईरक, सुडान, कुवैत, मोरक्को, इजरायल में भारी जनविरोध हुए, तो वही मौरितानिया, ओमान, सऊदी अरब, पश्चिमी सहारा[5] तथा पलीस्तिन भी इस विरोध प्रदर्शन से सुरक्षित नहीं रह सकें।

हालाँकि यह क्रान्ति अलग-अलग देशों में हो रही थी, परंतु इनके विरोध प्रदर्शनो के तौर-तरीकों में हड़ताल, धरना, मार्च एवं रैली जैसी कई समानताएं थी। अमूमन, शुक्रवार (जिसे आक्रोश का दिन भी कहा जाता) को विशाल एवं संगठित भारी विरोध प्रदर्शन होता, जब जुमे की नमाज़ अदा कर सड़कों पर आम नागरिक इकठ्ठित होते थे। सोशल मीडिया[6][7] का अरब क्रांति में अनोखा एवं अभूतपूर्व योगदान था। एक बेहद ही ढ़ाँचागत तरीके से दूर-दराज के लोगों को क्रांति से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल हुआ।

अरब सप्रिङ के क्रान्तिकारियों को सरकार, सरकार-समर्थित हथियारबंद लड़ाके एवं अन्य विरोधियों से दमन का सामना करना पड़ा, लेकिन ये अपने नारे 'Ash-sha`b yurid isqat an-nizam' (अंग्रेज़ी में - "the people want to bring down the regime"; हिन्दी में - 'जनता की पुकार-शासन का खात्मा हो') के साथ आगे बढ़ते रहें।

अरब क्रांति ने पूरी दुनिया का आकर्षण अपनी ओर खींचा। तवाकोल करमान (Tawakkol Karman), यमनवासी, अरब स्प्रिङ के प्रमुख योद्धाओं में एक, २०११ शान्ति नोबल पुरस्कार विजेता थी। दिसमबर २०११ में 'टाईम' पत्रिका ने अरब विरोधियों को 'द परसन ऑफ द ईयर' (The Person of the Year) की खिताब से नवाजा।

विशेषज्ञों के मुताबिक अरब स्प्रिङ की मुख्य वजह आम जनता की वहाँ की सरकारों से असंतोष एवं आर्थिक असमानता थीं।[8] इनके अलावा तानाशाही, मानवाधिकार उल्लंघन, राजनैतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बदहाल अर्थ-व्यवस्था एवं स्थानीय कारण भी प्रमुख थे।[9][10] कुछ जानकरों - जैसे स्लोवेनियाई दार्शनिक, Slavoj Žižek के मुताबिक '२००९-२०१० ईरान के चुनाव पर विरोध प्रदर्शन' को भी एक कारण माना जाता है। संभवतः '२०१० की किरगिज़ क्रांति' ने अरब स्प्रिङ को सुलगाने का काम किया।

उत्तरी अफ्रीका एवं खाड़ी के देशों में दशकों से सत्ता पे काबिज निरंकुश शासक अकूत संपत्ति जमा किए हुए थे तथा सरकार में व्यापक स्तर पर भ्रष्टचार फैली हुई थी जो वहाँ के नौजवानों को नागवार गुजर रहा था।[11] इन सबके बीच आसमान छूती खाद्य मूल्य एवं तुरंत-तुरंत आती अकाल ने जन-असंतोष को चरम पर पहुँचा दिया।[12][13]

ट्यूनीशिया में मोहम्मद बउज़िज़ी (Md. Bouazizi) ने पुलिस भ्रष्टाचार एवं दुर्व्यव्हार से त्रस्त हो आत्मदाह कर लिया। इनकी मृत्यु ने सरकार से असंतुष्ट वर्गों को एक करने का काम किया और सरकार विरौधी प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया, जिसमें समाज का हर तबका शामिल था।[14][15] ट्यूनीशिया की इस घटना के बाद अरब जगत में अपनी-अपनी सरकारों के खिलाफ जन-विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं

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अरब स्प्रिंग से प्रभावित देशों में विरोध प्रदर्शनों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का काफ़ी ध्यान अपनी ओर खींचा है, जबकि कठोर प्रशासनिक प्रतिक्रियाओं की निंदा की गई है। बहरैनी, मोरक्कन और सीरियाई विरोध प्रदर्शनों के सन्दर्भ में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया काफ़ी सूक्ष्म रही है। कुछ आलोचकों ने फ्रांस, ब्रिटेन, अमरीका सहित कई पश्चिमी सरकारों पर अरब स्प्रिंग पर नकली प्रतिक्रियाओं के आरोप लगाये हैं। नोआम चोम्स्की ने ओबामा प्रशासन पर क्रान्तिकारी लहर को ढंकने और मध्य-पूर्व में लोकतंत्रीकरण के प्रयासों को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में अशांति की वज़ह से तेल की कीमतें पूर्वानुमानित कीमतों से अधिक होने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि ये क्षेत्र तेल उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण है। दिसंबर २०१० से वैश्विक निवेशकों ने MENA क्षेत्र की कंपनियों में अपना निवेश काफ़ी घटा दिया है जिसके कारण क्षेत्र के शेयर सूचकांक में भारी गिरावट आई है।

केनन इंजिन नाम के एक जर्मन-कुर्दिश राजनीतिज्ञ ने लातिन अमरीका में १९७० और १९८० के दशकों की "लोकतंत्र की तीसरी लहर" से स्पष्ट रूप से मिलती-जुलती गुणात्मक विशेषताओं के कारण अरब और इस्लामी देशों में उठे विद्रोह को "लोकतंत्र की तीसरी लहर" के रूप में पहचाना है।

मिस्र में विरोध प्रदर्शन 25 जनवरी 2011 को शुरू हुआ और 18 दिनों तक चला। 28 जनवरी की मध्यरात्रि से शुरू होकर, मिस्र की सरकार ने कुछ हद तक सफलतापूर्वक प्रयास किया, ताकि देश की इंटरनेट पहुंच को समाप्त किया जा सके, प्रदर्शनकारियों की सोशल मीडिया के माध्यम से संगठित होने के लिए मीडिया की सक्रियता का उपयोग करने की क्षमता को बाधित करने के लिए। उस दिन बाद में, मिस्र के प्रमुख शहरों की सड़कों पर हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया, राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने अपनी सरकार को खारिज कर दिया, बाद में एक नया मंत्रिमंडल नियुक्त किया। मुबारक ने भी लगभग 30 वर्षों में पहला उपराष्ट्रपति नियुक्त किया।

अमेरिकी दूतावास और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों ने जनवरी के अंत के पास एक स्वैच्छिक निकासी शुरू की, क्योंकि हिंसा और हिंसा की अफवाहें बढ़ गईं थी।

10 फरवरी को, मुबारक ने उपराष्ट्रपति उमर सुलेमान को राष्ट्रपति पद की सभी शक्ति प्रदान की, लेकिन इसके तुरंत बाद उन्होंने घोषणा की कि वह अपने कार्यकाल के अंत तक राष्ट्रपति बने रहेंगे। हालांकि, विरोध प्रदर्शन अगले दिन भी जारी रहा और सुलेमान ने तुरंत घोषणा की कि मुबारक ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया और मिस्र के सशस्त्र बलों को सत्ता हस्तांतरित कर दी। सेना ने तुरंत मिस्र की संसद को भंग कर दिया, मिस्र के संविधान को निलंबित कर दिया, और देश के तीस वर्षीय "आपातकालीन कानूनों" को उठाने का वादा किया। एक नागरिक, एस्साम शराफ, को 4 मार्च को मिस्र के प्रधान मंत्री के रूप में तहरीर स्क्वायर में मिस्रियों के बीच व्यापक अनुमोदन के लिए नियुक्त किया गया था। हालांकि 2011 के अंत तक हिंसक विरोध जारी रहा, क्योंकि कई मिस्रियों ने सशस्त्र बलों की सर्वोच्च परिषद में सुधारों और सत्ता पर उनकी पकड़ को बढ़ाने में कथित सुस्ती के बारे में चिंता व्यक्त की।

होस्नी मुबारक और उनके पूर्व आंतरिक मंत्री हबीब अल-आदिली को 2011 की मिस्र की क्रांति के पहले छह दिनों के दौरान हत्याओं को रोकने में उनकी विफलता के आधार पर जेल में जीवन की सजा सुनाई गई थी। उनके उत्तराधिकारी मोहम्मद मुर्सी ने सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय में न्यायाधीशों से पहले मिस्र के पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। मिस्र में 22 नवंबर 2012 को ताजा विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। 3 जुलाई 2013 को, सेना ने प्रतिस्थापन सरकार को उखाड़ फेंका और राष्ट्रपति मोर्सी को सत्ता से हटा दिया गया।

  1. "Tunisia's Ben Ali flees amid unrest". अल जज़ीरा. 15 January 2011. मूल से 19 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2014.
  2. Peterson, Scott (11 February 2011). "Egypt's revolution redefines what's possible in the Arab world". The Christian Science Monitor. मूल से 23 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 June 2011.
  3. "Thousands protest in Jordan". अल जज़ीरा. 28 January 2011. मूल से 17 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 June 2011.
  4. Bakri, Nada; Goodman, J. David (28 January 2011). "Thousands in Yemen Protest Against the Government". दि न्यू यॉर्क टाइम्स. मूल से 22 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2014.
  5. "New clashes in occupied Western Sahara". Afrol. 27 February 2011. मूल से 7 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 June 2011.
  6. "Opening Closed Regimes: What Was the Role of Social Media During the Arab Spring?". Ictlogy.net. 2012-05-22. मूल से 31 जुलाई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-05-30.
  7. "The Arab Spring and the impact of social media". Albanyassociates.com. 2012-03-23. मूल से 12 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-05-30.
  8. *The Arab Spring—One Year Later: The CenSEI Report analyzes how 2011's clamor for democratic reform met 2012's need to sustain its momentum. Archived 2013-04-26 at the वेबैक मशीन The CenSEI Report, 13 February 2012
  9. Cockburn, Alexander (18–20 February 2011). "The Tweet and Revolution". मूल से 27 फ़रवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2014.
  10. "Egyptian Revolution: A Demographic Structural Analysis". Entelequia. Revista Interdisciplinar. 13: 139–165. 2011. मूल से 27 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2014. पाठ "Korotayev A, Zinkina J" की उपेक्षा की गयी (मदद)
  11. "Demographics of the Arab League, computed by Wolfram Alpha". मूल से 2 मार्च 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2014.
  12. Perez, Ines (4 March 2013)."Climate Change and Rising Food Prices Heightened Arab Spring" Archived 2014-10-17 at the वेबैक मशीन. Scientific American.
  13. Friedman, Thomas (7 April 2012)."The Other Arab Spring" Archived 2014-12-16 at the वेबैक मशीन. दि न्यू यॉर्क टाइम्स.
  14. "Tunisia suicide protester Mohammed Bouazizi dies". बीबीसी न्यूज़. 5 January 2011. मूल से 24 जनवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2014.
  15. "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 जनवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2014.