कोमोडो ड्रैगन

एक विशाल छिपकली की प्रजाति

कोमोडो ड्रैगन (अंग्रेज़ी: Komodo dragon, वैज्ञानिक नाम: वारानस कोमोडोएनिस) या जिसे कोमोडो मॉनिटर भी कहते है, एक विशाल छिपकली की प्रजाति है जों इण्डोनेशियाई द्वीप कोमोडो, रिंका, फ्लोरेस, गीली मोटांग और गीली दासमी में पाए जाती है।[4] यह एक मॉनिटर छिपकली की प्रजाति (गिरगिट) है। कोमोडो ड्रेगन[मृत कड़ियाँ]आकार में छिपकलियों की प्रजाति में सबसे बड़े होते हैं. यह लंबाई में 3 मीटर तक बड़ सकता है व इनका  का वजन 70 किलो तक होता है. इनके बड़े आकार को ही द्वीप की विशालता का कारण माना जाता है क्योंकि कोई और मांसाहारी जानवर इनके सिवा उस द्विप पर नहीं रहता!

कोमोडो ड्रैगन[1]
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: प्राणी
संघ: रज्जुकी
वर्ग: सरीसृप
गण: Squamata
उपगण: Lacertilia
कुल: Varanidae
वंश: Varanus
उपवंश: V. (Varanus)
जाति: वि. कोमोदोएंसिस
द्विपद नाम
Varanus komodoensis
Ouwens, 1912[3]
Komodo dragon distribution

वर्तमान की शोध बताते हैं कोमोडो ड्रैगन का बड़ा आकार पर छिपकली के प्रतिनिधि के रूप में माना जाता है जो कभी इंडोनेशिया व ऑस्ट्रेलिया में रहा करते थे. ज्यादातर वह अन्य मेगाफोना के साथ मानव क्रिया के द्वारा मारे गए थे. उनके अवशेष v. Komodian से बहुत मिलते-जुलते हैं. यह 3.8 साल पहले ऑस्ट्रेलिया में मिले थे और इनका आकार flores द्विप पर 90000 सालों से एक जैसा बना हुआ है. इनके आकार की वजह से यह परिस्थतिय प्रणाली को प्रभावित करते हैं कोमोडो ड्रैगन घात लगाकर शिकार करते हैं यह अकशेरुकी चिड़िया व अन्य स्तनधारियों जीवों का शिकार करते हैं यह दावा किया गया है कि इनके पास एक जहरीले दांत होते हैं इनके निचले जबड़े में दो ग्रंथियां होती हैं जो जहर के कई जहरीले प्रोटीन को छुपाती हैं इनका जैविक महत्व विवादित है!

सरीसृप की दुनिया में कोमोडो ड्रैगन के समूह असाधारण शिकारियों को में आते हैं. एक बड़ा कोमोडो ड्रैगन एक timor हिरण को खाता. वह सड़ा हुआ खाना कमी खाते हैं वह इंसानों पर कभी-कभी ही हमला करते हैं!

प्रजनन मई से अगस्त के महीने में चालू होता है. वह अंडे सितंबर में देते हैं यह 20 अंडे एक बार में देते हैं. 1 मेगापोड  हौसला य  अपने खुद के खोदे हुए गड्ढे में अंडे देते हैं 7 से 8 महीने तक अपने अंडों की देखभाल करते हैं. अप्रैल में अंडे फूट जाते हैं छोटे komodo ड्रैगंस पेड़ों के नीचे छुप जाते हैं. अपना बचाव करते हैं मांस भक्षी जानवरों से बचने के लिए यह छुप जाते हैं. 8 से 9 साल के बीच यह जवान हो जाते हैं. वहीं इनकी औसतन आयु 30 साल होती है इनको सबसे पहले पश्चिमी विशेषज्ञों द्वारा 1910 में देखा गया था. इनके बड़े आकार में शरीर मानव गतिविधियों की वजह से इनकी कानून के द्वारा राष्ट्रीय उद्यान का गठन 1980 में हुआ!


वर्गीकरण इतिहास -

इनको सबसे पहले 1910 में यूरोपियों द्वारा देखा गया. जब जमीनी मगरमच्छ की खबरें न्यूटन पेन स्टैंड तक पहुंची और  1912 में बहुत बदनामी हुई. जब जैविक संग्रहालय की निदेशक पीटर ओवेंस ने अखबार में खबर छापी जब लिटिन एंड से उसकी फोटो व खाल मिली और इकट्ठा करने वाले से दो और नमूने मिले पहले दो जिंदा कमोडो ड्रैगन जो यूरोप में reptile हाउस  में लंदन चिड़ियाघर में रखा गया. जब ये 1927 में आए थे तब Joan viyuchamp नाम के एक निरीक्षक ने कैद में पड़े इन जानवरों पर टिप्पणी लिखें और जैविक समिति लंदन में प्रदर्शित किया. 1928 में कोमोडो ड्रैगन एक अभियान के लिए जो कोमोडो आइलैंड पर चलाया गया 1926 में doglus bardan वर्णन के द्वारा 12 संरक्षित नमूने व दो जिंदा komodo ड्रैगन के साथ  इस अभियान से बनी फिल्म किंग कॉन्ग के प्रेरणा का स्रोत बना जिन्होंने इसे komodo ड्रैगन नाम दिया था. इसके तीन नमूने अमेरिका के प्राकृतिक संग्रहालय में रखे हुए हैं. डच लोगों को इनके सीमित संख्या का अनुभव होने लगा था इसके बारे में पता चलने पर उन्होंने शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया वर्ल्ड वॉर टू के कारण 1950 से 1960 तक नहीं चला जब अध्ययन में इसके खाने व्यवहार, प्रजनन, शरीर के तापमान के बारे में अध्ययन किया इस बार एक नए कोमोडो ड्रैगन के अध्ययन का अभियान auffen berg फैमिली को दिया गया जो कोमोडो आइलैंड पर 11 महीने रुकी 1959 में इसके दौरान वॉल्टर auffen berg और उनकी सहायक पुत्रा शस्त्रावन ने 50 से ज्यादा कोमोडो ड्रैगन को पकड़ा auffen berg के अभियान के द्वारा प्राप्त अनुसंधान अत्यंत प्रभावशाली हुआ और कमांडो को पकड़ने में इस अभियान के बाद कोमोडो ड्रैगन की व्यवहार पर प्रकाश डाला. जीव वैज्ञानिक claudio ciofi ने इसकी अध्ययन को जारी रखा!

हिंदी में विवरण -

एक कोमोडो ड्रैगन का वजन 70 किलो तक होता है. और औसतन वयस्क का वजन 80 से 90 किलो तक होता है. इसकी लंबाई 2. 5 9 मीटर होती है व मादा कोमोडो का वजन 70 से 72 किलो तक होता है. इसकी लंबाई 2.29 मीटर होती है इसमें अब तक का सबसे भारी 166 किलो वजनी में 10 फीट लंबा देखा गया है. इसकी पूछ इसके शरीर के हिसाब से लंबी होती है जिसको 60 बार हटा दिया जाता है. इनके दानेदार दांत होते हैं इनकी लंबाई लगभग 1 इंच तक होती है. इसकी लार में खून अक्सर पाया जाता है क्योंकि इसके दांत मसूड़ों के ऊतक से ढके हुए होते हैं इसे खाते वक्त लुंज हो जाते हैं. इसके पास लंबी पीली कांटेदार जीभ होती है. इसकी चमड़ी सख्त होती है इसमें छोटी हड्डियां होती हैं. इनको ओस्टियोडर्मस कहते हैं!

यह श्रंखला के रूप में व्यवस्थित रहती हैं यह उम्र के साथ संख्या और लंबाई में बढ़ती रहती हैं. यह ओस्टियोडर्मस हड्डियां नवजात व किशोरों में नहीं पाई जाती इनके प्राकृतिक कवच उम्र व आवश्यकता के मुताबिक और बेहतर होता जाता है जब ये खाने के लिए एक दूसरे से लड़ते रहते हैं व जब खुद को बचाने का प्रयास करते हैं!

यह हवा को महसूस करने के लिए अपनी जीभ का उपयोग करते हैं इसके पास केवल एक ही कान की हड्डी होती है जो कंपन को (the stapes) typmanic मेंब्रेन से cochlea तक पहुंचाता है यह 400 से 20000 हर्टज की ध्वनि सुन सकते हैं. जबकि मनुष्य केवल 20 से 20000 वर्ष की ध्वनि सुनता है. यह किसी वस्तु को 300 मीटर दूर से भी देख सकते हैं. पर यह रात में अच्छा देखने में सक्षम नहीं होते और रंगों में पहचान कर लेते हैं. पर अच्छी तरीके से नहीं और औरों की तरह वस्तु को पहचानने के लिए अपनी जीभ का इस्तेमाल करते हैं!

यह अपनी गर्दन को एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर हिलाते हुए चलते हैं. इससे यह 5 से 9 किलोमीटर दूर से भी सड़ा हुआ खाना ढूंढ लेते हैं. इसके गले के नीचे बस कुछ ही स्वाद कलिका होती हैं यह जिनकी हड्डियां मजबूत होती हैं. इनके पास संवेदी टुकड़े होते हैं जो नर्वस सिस्टम से कनेक्ट रहते हैं जो इनको वस्तुओं महसूस करने में मदद करते हैं यह पैमाने कान, थोड़ी, पैरों के पंजे तीन व उस ज्यादा संवेदी अंग होते हैं!

व्यवहार -

ये गर्म व सूखे जगह पर रहते हैं. ज्यादातर सूखी जगह पर ही रहते हैं ओपन ग्रास, सवाना, वर्षावन जैसे ब्रह्माउष्मीय स्थानों पर यह अधिकतर रहते हैं. यह दिन के समय ज्यादा  सतर्क रहते हैं हालांकि यह रात्रि गतिविधियों को प्रदर्शित करता है कोमोडो अकेला ही रहते हैं. यह साथ केवल खाने व प्रजनन के लिए आते हैं. यह 20 किलोमीटर की रफ्तार से भागने में सक्षम होते हैं और 15 फीट तक तैर सकते हैं. अपने मजबूत पंजों की सहायता से पेड़ों पर भी अपने शिकार को पकड़ने के लिए चड सकते है.  यह अपने परिपक्व पंजों का इस्तेमाल हथियार के तौर पर करते हैं. यह रहने के लिए अपने हाथों में मजबूत पंजों के उपयोग से गहरे गड्ढे होते हैं यह गड्ढा एक से 3 मीटर तक होता है. इसके आकार ब सोने की आदत की वजह से. यह अपने शरीर का तापमान रात में दिन के हिसाब से संतुलित कर लेते हैं. यह दिन के समय शिकार पर निकलते हैं. पर ज्यादा गर्मी वाले दिन ये शिकार नहीं निकलती. यह रहने के लिए पेड़ों के आसपास अपना बसेरा डालते हैं. वह ऐसी जगहों पर अपना घोंसला या गड्ढा खोदते हैं. जहां पर इनको आसानी से हिरणों को ढूंढने में आसानी हो!

आहार -

कोमोडो ड्रैगन एक मांसाहारी होते हैं. हालांकि वह हमेशा सड़ा हुआ ही खाते हैं. यह अपने शिकार पर बार-बार हाथ लगाते हैं. जैसे ही कोई शिकार इनके खास स्थल तक आता है. यह अपनी पूरी ताकत व रफ्तार से उस पर हमला कर देते हैं. और अपने गले से दवा लेते हैं यह ज्यादा घायल सरकार को अपने हाथ से जाने नहीं देते और उसे नुकसान पहुंचाकर में खून की कमी के कारण मारने का प्रयास करते हैं. इनको जंगली सूअरों को कुछ पल में मारते हुए देखा गया है यह घायल सूअर व हिरण को मारने के लिए अपने मजबूत नाखूनों का उपयोग करते हैं. यह जानवरों के शवों को 9 किलोमीटर दूर से ढूंढने में भी सक्षम होते हैं. यह अपने शिकार को फाड़ कर खाते हैं वे छोटे शिकार जैसे बकरी का बच्चा कुछ सबूत निकल जाता है. इसका चेतन मुखर झगड़ा और लचीली खोपड़ी में बड़ा पेड़ शिकार को साबुत निकलने में मदद करता है. यह अपने खाने को चिकना बनाने के लिए अपनी लाल लाल का प्रयोग करते हैं पर निकलने में 15 से 20 मिनट तक का समय लगता है. इसकी जीत के अंदर एक पतली नली होती है. जो फेफड़ों से जुड़ी होती है. जो निकलते समय उनको सांस लेने में मदद करती है. ऐसी पर्सेंट खाना खाने के बाद अपने आप को धूप में ले जाते हैं. इससे खाना पचने की प्रक्रिया जल्दी-जल्दी होने लगती है. अगर खाना सड़ा हो तो पचने में समय लगता है. उसके दी में पासिंग के लिए कारण एक बड़े ड्रैगन साल में 12 शिकार से ही जिंदा रहते हैं. खाना पचने के बाद यह दांत बालों को बाहर निकाल देते हैं. जो बदबूदार बलगम की तरह होता है. खाना पकने के बाद अपने मुंह को धूल में रखते हैं. बलगम को हटाने के लिए यह खुद की खुशबू को पहचान नहीं पाते सबसे बड़ा कोमोरो पहले खाता है. और छोटा अपनी बारी का इंतजार करता है. अपने शरीर से बड़े और छोटे कोमोडो अपने प्रभाव को दर्शाते हैं. जो बड़े को आपस में लड़ते हैं जो हारता है उसे पीछे हटना पड़ता है. जो जीतेगा वह पहले खाएगा कॉमेडी छोटे कचोरी की अन्य सही सर अब चिड़िया बंदर बकरी हिरण घोड़े पानी की भैंस को खाते हैं. मैं युवा कोमोडो अन्य छिपकली तीनों के अंडे छोटे स्तनधारियों को खाते हैं. इंसानों पर कम ही हमला करते हैं पर कभी उनकी कब्रों को पहुंचकर उनको खा जाते हैं. इनकी इस आदत की वजह से वहां रहने वाले लोगों को कब्रिस्तान को किसी अन्य जगह पर लगाना पड़ता है. यहां पर यह नहीं जा पाते यह स्टीगाडोन हाथी को खाने को विकसित हुए थे जो कि फ्लोर्स में रहता था!

प्रजनन-

संगम मई से अगस्त के बीच होता है. सितंबर महीने में देते हैं इस समय यह आपस में लड़ते हैं. वे जीतने पर एक दूसरे से जूझने पर अपने पिछले पैरों से पकड़ लेते हैं. वह हारने वाला जमीन में गिर जाता है. यह लड़ाई की तैयारी से पहले उल्टी करते हैं. मैं जीतने वाला मादा को जीभ से चाट कर बातचीत बढ़ाता है. यह मादा प्रेमालाप से पहले अपने पंजों का दांतो से विरोध करते हैं वह नर मादा को कैसे अपने बस में कर देता है अपनी थोड़ी को मादा की पीठ पर घिसता है. नर संभोग के लिए अपना आधा लिंग मादा को देता है. कोमोडो ड्रैगन पत्निक व प्रपत्र जोड़ी के  रूप में है यह छिपकलियों की सबसे दुर्लभ विशेषताएं है  मादा कोमोडो अपने अंडे अगस्त से सितंबर में देती है कई तरीके के इलाकों में अपने अंडे रखते हैं. अंडे मेघापोड में रहते हैं. इस धरती पर 20 परसेंट पहाड़ी इलाकों में देते हैं अपनों को बचाने के लिए अनेक शब्द गड्ढे में पढ़ाती है कि अभी के समय अधिकतर 20 अंडे देती है इनको 7 से 8 महीने की अवधि के लिए सेना पड़ता है. से बाहर आना नवजात बच्चों के लिए काफी मेहनत बड़ा काम होता है. यह अपने दांतो से अपने अंडों के परत को तोड़ते हैं बाहर आ जाते हैं. बाहर निकलने के वक्त से यह बहुत कमजोर होते हैं. जिससे इनको अन्य मांसाहारी जानवरों द्वारा खाए जाने का खतरा बना रहता है. यह अपने शुरुआती कुछ साल पेड़ों में ही बताते हैं. जहां शिकारियों से सुरक्षित रहते हैं मध्य शिकार बहुत ही कम देखने मिलता है. 9 साल में यह जवान हो जाते हैं मैं 30 साल इनकी अधिकतम आयु होती है!

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; itis नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. साँचा:IUCN2011.1
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; ouwens नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. Ciofi, Claudio (2004). Varanus komodoensis. Varanoid Lizards of the World. Bloomington & Indianapolis: Indiana University Press. पपृ॰ 197–204. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-253-34366-6.