अक्षर अनन्य
अक्षर अनन्य एक सन्तकवि एवं दार्शनिक थे। ये ज्ञानयोग, विज्ञानयोग, ध्यानयोग, विवेकदीपिका, ब्रह्मज्ञान, अनन्य प्रकाश, राजयोग, सिद्धांतबोध आदि ग्रंथों के ये प्रणेता माने जाते हैं। इनमें अद्वैत वेदांत के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। दुर्गा सप्तशती का हिंदी पद्यानुवाद भी इन्होंने किया है। ये संत कवि माने जाते हैं लेकिन संतों की सभी प्रवृतियाँ इनमें नहीं मिलतीं। इनके ग्रंथों में वैष्णव धर्म के साधारण देवताओं के प्रति आस्था के साथ-साथ कर्मकांड के प्रति झुकाव भी मिलता है। इनके काव्य ग्रंथों में दोहा, चौपाई, पद्धरि इत्यादि छंदों का प्रयोग हुआ है।
इनके विषय में प्रसिद्ध है कि ये सेनुहरा (दतिया) के महाराज पृथ्वीचंद के दीवान थे। हिंदी साहित्य के इतिहास लेखकों के अनुसार इनका जन्म सन् १७१० वि. (१६५३ ई.) में सेनुहरा के एक कायस्थ परिवार में हुआ। विरक्ति के कारण इन्होंने दीवान का पद त्याग दिया और पन्ना में रहने लगे। प्रसिद्ध महाराजा छत्रसाल इनके शिष्य बन गए थे।