अनिल चौधरी (अंग्रेज़ी: Anil Chaudhary, जन्म- 7 सितम्बर, 1950, धौलपुर, राजस्थान) लेखक, नाट्य निर्माता तथा निर्देशकों में से एक हैं। इन्होंने दूरदर्शन, ज़ी टी.वी. और सोनी टी.वी. के लिए कई नाटकों और धारावाहिकों का सफल निर्माण तथा निर्देशन किया है। मुम्बई के प्रसिद्ध ‘पृथ्वी थिएटर’ का उद्घाटन अनिल चौधरी के ही नाटक 'उद्ध्वस्त धर्मशाला' से हुआ था, जिसमें मुख्य भूमिका प्रसिद्ध अभिनेता ओम पुरी ने निभाई थी। इन्होंने कई प्रसिद्ध नाटकों का निर्माण तथा निर्देशन किया, जिनमें 'नेहरू ने कहा था', 'फटीचर', 'माटी के रंग', 'काल कोठरी', 'कबीर', 'हैलो डॉक्टर' आदि प्रमुख हैं। 'करमचंद', 'रजनी', 'नुक्कड़' तथा 'ये जो है जिंदगी' आदि धारावाहिक इन्होंने ही लिखे थे। आप तीन वर्ष तक 'नेशनल फ़िल्म डवलपमेंट कॉरपोरेशन' की 'स्क्रिप्ट सलेक्शन कमिटी' के सदस्य भी रहे थे।

अनिल चौधरी
चित्र:अनिल चौधरी
अनिल चौधरी
जन्म 7 सितम्बर 1950
धौलपुर, राजस्थान
पेशा फ़िल्म निर्देशक, निर्माता एवं लेखक

जीवन परिचय

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अनिल चौधरी का जन्म 7 सितम्बर, 1950 को धौलपुर, राजस्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम 'विश्वनाथ सिंह' और माता का नाम 'प्रेम' था। जब ये मात्र 13 महीने के थे, तभी इनकी माता का देहावसान हो गया। बाद में इनके नाना चौधरी दिगम्बर सिंह इन्हें अपने साथ मथुरा ले आये। अनिल चौधरी की ज़्यादातर परवरिश नाना-नानी ने ही की, जिन्हें वे 'पिताजी' और 'माताजी' कहा करते थे। अनिल चौधरी की प्रारम्भिक शिक्षा अधिकतर मथुरा और कुरसंडा गाँव में हुई। तब तक इनके पिता विश्वनाथ सिंह ने दूसरा विवाह कर लिया और उन्होंने अनिल को पढ़ने के लिए अपने पास बुला लिया। जयपुर, पिलानी, कोटा और आगरा में पढ़ने के बाद ये वापस मथुरा आ गये और 'किशोरी रमण डिग्री कॉलेज' में दाखिला ले लिया। तब तक इनकी छोटी नानी ने भी एक पुत्र (आदित्य चौधरी) को जन्म दिया, जो आगे चलकर इनके घनिष्टतम मित्र बने। मार्क्सवादी गुरु 'सव्यसाची' का शिष्य बनने के बाद अनिल के कुछ बहुत अच्छे मित्र बने, उनमें से मुख्य हैं- अशोक चक्रधर और ‘पीस’ व ‘इंसाफ़’ नामक एन.जी.ओ. चलाने वाले इन्हीं के नामराशि अनिल चौधरी। एस.एफ़.आई. की मथुरा शाखा बनी, जन सांस्कृतिक मंच बना और कुछ नए दोस्त भी बने- दिनेश अग्रवाल, इशारत अली आदि।

कार्यक्षेत्र

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एन.एस.डी. में द्वितीय वर्ष का विद्यार्थी नाटक का निर्देशन नहीं कर सकता, लेकिन अनिल चौधरी से एक नाटक निर्देशित करने को कहा गया। उन्होंने अशोक चक्रधर की मदद से मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ पर आधारित एक नाटक लिखा और उसका ऐसा मंचन हुआ कि उसकी समीक्षा अमेरिका की ‘टाइम्स’ मैगज़ीन में छपी। यहीं पर इनके पंकज कपूर, रॉबिन दास और रंजीत कपूर जैसे मित्र बने और अतिया बख़्त से भी दोस्ती हुई। वर्ष 1976 में कोर्स ख़तम हुआ और उसके बाद अनिल चौधरी का नाट्य निर्देशन का सिलसिला शुरू हुआ। अनिल चौधरी ने कई विदेशी नाटकों का रूपांतरण किया, जैसे- 'कैप्टेन ऑफ़ क्योपैनिक', 'बुर्जुआ जेंटलमैन', 'लक्स इन टेनेब्रिस', 'मिस्टर पुंटिला ऐंड हिज़ मैन मैटी'। उन्होंने देश भर में बहुत-से नाटक निर्देशित किए, जिनमें 'अंधेरे में', 'निशाचर', 'नौटंकी लैला मजनूं', 'उद्ध्वस्त धर्मशाला', 'बकरी', 'कौआ चला हंस की चाल', 'इन्ना की आवाज़' और 'रुस्तम सोहराब' प्रमुख हैं।

थिएटर वर्कशॉप

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बहुत-से थिएटर वर्कशॉप भी इन्होंने किए, जिनमें मथुरा स्थित वर्कशॉप इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें सभी ऐसे लोगों ने हिस्सा लिया था, जिन्होंने नाटक करना तो दूर, कभी नाटक देखा भी नहीं था। इनके साथ अनिल ने ‘बकरी’ नाटक निर्देशित किया था, जिसे एन.एस.डी. में जर्मन निर्देशक फ्रिट्ज़ बेनेविट्स ने देखा तो उन्हें इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इन्हें साथ में नाटक करने का न्योता दे डाला। इस तरह उनके लिए अनिल चौधरी ने 'मिस्टर पुंटिला ऐंड हिज़ मैन मैटी' का 'चोपड़ा कमाल नौकर जमाल' नाम से रूपांतरण किया और सह निर्देशन भी किया। एक ‘पत्र कथा’ सारिका में और नाटक ‘अंधेरे में’ नटरंग में प्रकाशित हुए। इसी दौरान अनिल के तीन नाटक- ‘नौटंकी लैला मजनूं’, ‘रुस्तम - सोहराब’ और ‘इन्ना की आवाज़’ आकाशवाणी से प्रसारित हुए।

धारावाहिक निर्देशन-लेखन

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  • दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘नेहरू ने कहा था’ का निर्माण, निर्देशन व लेखन किया।
  • दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘फटीचर’ का लेखन व निर्देशन किया।
  • दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘माटी के रंग’ का लेखन व निर्देशन किया।
  • ज़ी टीवी के लिए धारावाहिक ‘सब चलता है - टेक इट ईज़ी’ का निर्माण, निर्देशन व लेखन किया।
  • दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘काल कोठरी’ का निर्माण, निर्देशन व लेखन किया।
  • दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘हैलो डॉक्टर’ का निर्माण, निर्देशन व लेखन किया।
  • ज़ी टीवी के लिए धारावाहिक ‘फ़िलिप्स टॉप टेन’ लिखा।
  • धारावाहिक ‘महायज्ञ’ का निर्माण, निर्देशन व लेखन किया। ये धारावाहिक ‘सोनी’ पर दो साल चला।
  • दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘अभय चरन’ का निर्माण, निर्देशन व लेखन किया।
  • ज़ी टीवी के लिए मनी गेम शो ‘सवाल दस करोड़ का’ का लेखन किया।
  • ज़ी टीवी के लिए ‘आवाज़ - दिल से दिल तक’ का लेखन व निर्देशन किया।
  • दूरदर्शन के लिए एक मराठी धारावाहिक ‘चला बनुया रोडपति’ का निर्माण किया
  • सब टीवी के लिए धारावाहिक ‘गनवाले दुल्हनियां ले जाऐंगे’ का लेखन व निर्देशन किया।


बाहरी कड़ियाँ

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