अरविन्द त्रिपाठी ( जन्म- 31 दिसम्बर, 1959) हिन्दी साहित्य में मुख्यतः आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय प्रगतिशील विचारधारा सम्पन्न आलोचक हैं।

जीवन-परिचय

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अरविन्द त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक गाँव कोहड़ाभाँवर में 31 दिसंबर, 1959 ई० को हुआ। उनके पिता साहित्यिक संस्कार संपन्न व्यक्ति थे और स्वभावतः उन्हें आरंभिक शिक्षा और साहित्यिक संस्कार अपने पिता से विरासत में ही मिला। गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर से हिन्दी विषय में एम० ए० किया और वहीं से 'नयी कविता का विचार-दर्शन' विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि पायी। उन्होंने गोरखपुर में ही लम्बे समय तक युवा रचनाकारों की संस्था 'गतिविधि' का संयोजन भी किया।[1]

सन् 1985 में वे श्रीकान्त वर्मा के आमंत्रण पर दिल्ली आये और उन्हीं के संपादन में पहले 'प्रेक्षा' (साप्ताहिक) और फिर 'वर्णिका' (मासिक) पत्र में सहायक संपादक रहे। सन् 1987-88 में पीडीएफ (पोस्ट डॉक्टरल फेलो) के रूप में भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 'आजादी के बाद हिन्दी उपन्यास का समाजशास्त्र' विषय पर शोध कार्य किया। उसी दौरान 'प्रगतिशील लेखक संघ' जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इकाई के अध्यक्ष चुने गये।

अनेक वर्षों से वे युवा रचनाकारों के बीच बहुचर्चित 'श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार' के मानद सचिव और संयोजक हैं। पिछले दो दशकों से देश के अनेक विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं द्वारा आयोजित संगोष्ठियों में वे काव्य-पाठ, व्याख्यान, आलेख-पाठ और बहसों में सक्रिय हिस्सेदारी निभाते रहे हैं। एक तेजस्वी वक्ता के रूप में उनकी पहचान है। सन् 1988 में उन्होंने आकाशवाणी सेवा में प्रवेश किया। वहाँ रहते हुए रेडियो को साहित्य और विचार की मुख्यधारा से जोड़ने का अथक उद्यम किया।[2]

लेखन एवं सम्पादन

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अरविन्द त्रिपाठी के लेखन एवं संपादन का भी एक मुख्य हिस्सा श्रीकांत वर्मा से संबद्ध रहा है; हालांकि वे मार्क्सवादी विचारधारा संपन्न लेखक हैं एवं उनके आलोचनात्मक आलेखों में इसकी सहज अभिव्यक्ति भी हुई है। मार्क्सवाद से प्रेरित होने के बावजूद उनके लेखन में कट्टरता का अभाव है। 'कवियों की पृथ्वी' में संकलित आलेखों में उन्होंने साठोत्तरी कविता के अधिकांश प्रमुख प्रगतिशील कवियों के काव्य-संग्रहों की समीक्षा के माध्यम से संबद्ध कविताओं के मर्म-उद्घाटन के साथ-साथ उनमें निहित प्रगतिशीलता के तत्वों के कलात्मक अंकन को भी स्पष्ट करते गये हैं।

मौलिक लेखन के अतिरिक्त उन्होंने पुनर्प्रकाशित आलोचना (पत्रिका) के सहस्राब्दी अंक 1 से 4 में भी सह संपादक के रूप में कार्य किया।[3]

आलोचना के सौ बरस

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अरविन्द त्रिपाठी के संपादन-क्षेत्र में मील का पत्थर है 'आलोचना के सौ बरस'। इसमें उनकी आलोचनात्मक अन्तर्दृष्टि एवं व्यवस्थापन क्षमता का उत्तम परिचय मिलता है।[4] तीन खण्डों में प्रकाशित यह ग्रन्थ मूलतः अरविन्द त्रिपाठी द्वारा सम्पादित 'वर्तमान साहित्य' पत्रिका के 'शताब्दी आलोचना पर एकाग्र' तीन अंकों का पुस्तकीय रूप है। 'वर्तमान साहित्य' के इस शताब्दी आलोचना विशेषांक के तीनों अंक इस पत्रिका के वर्ष-19, अंक-5,6 एवं 7 के रूप में क्रमशः मई, जून एवं जुलाई 2002 ई॰ में प्रकाशित हुए थे।[5][6] इस विशेषांक के प्रथम खंड में संपादकीय के रूप में 'सदी की आलोचना को 'देखना'...' शीर्षक 12 पृष्ठों की विस्तृत भूमिका थी[7], जिसे पुस्तक-रूप में प्रकाशन के समय हटाकर एक पृष्ठ की संक्षिप्त भूमिका दे दी गयी है; किन्तु पृष्ठ-संख्या संपादकीय के बाद आरंभ होने के कारण उक्त विशेषांक एवं उनके पुस्तकीय रूप 'आलोचना के सौ बरस' के तीनों खंडों की विषय-सूची एवं पृष्ठ-संख्या बिल्कुल समान हैं। अंतर केवल एक आलेख का है। विशेषांक के द्वितीय खंड में 'संवाद' उपखंड के अंत में व्यंग्यात्मक शैली में लिखा एक कमजोर[4] आलेख था - छोटे सुकुल जी लिखित 'आलोचक का भीतर-बाहर (समकालीन आलोचना का पोस्टमार्टम)'। यह आलेख पृष्ठ-संख्या-392 से था। पुस्तक रूप में प्रकाशित होते समय इसे हटा कर उसी पृष्ठ-संख्या से रुस्तम राय लिखित 'स्वाधीनता आंदोलन और प्रतिबन्धित पत्रिकाएँ' शीर्षक आलेख दे दिया गया है। पुनः अगले आलेख की पृष्ठ संख्या में कोई अंतर नहीं है।

इस वृहदाकार आयोजन के प्रथम खण्ड में 'हिन्दी आलोचना के नवरत्न' के रूप में नौ आलोचकों पर चुने हुए आलोचकों के नौ विवेचनात्मक आलेख एवं 'प्रमुख आलोचनात्मक और वैचारिक कृतियाँ' शीर्षक अनुभाग के अन्तर्गत शीर्ष स्थानीय कृतियों की समीक्षाएँ प्रस्तुत की गयी हैं।

इसके द्वितीय खण्ड में 'विवाद और वाद' तथा 'संवाद' शीर्षक अनुभागों में ब्रजभाषा बनाम खड़ी बोली के विवाद, 'कथा में गांव बनाम शहर की बहस' तथा आधुनिकता, मार्क्सवाद आदि से सम्बद्ध विषयों-मुद्दों से लेकर रचना, आलोचना के विभिन्न आयामों के साथ उत्तर आधुनिकता तक पर श्रेष्ठ आलोचकों-विचारकों के 48 आलेख संकलित किये गये हैं। इसमें एक आलेख 'स्वाधीनता आंदोलन और प्रतिबन्धित पत्रिकाएँ' भी है, जिसमें वर्णित पत्रिकाओं के संदर्भ में रुस्तम राय की मान्यता है कि "कुल मिलाकर अंग्रेजी राज के दौरान राष्ट्रीय मुक्ति की चेतना के प्रसार में इन प्रतिबंधित पत्रिकाओं की युगान्तरकारी भूमिका रही है।"[8] इसी के 'मूल्यांकन' अनुभाग में 'छायावाद के पुरस्कर्ता : मुकुटधर पांडेय', रामचंद्र शुक्ल, नलिन विलोचन शर्मा, नंददुलारे वाजपेयी, डॉ० नगेन्द्र, नेमिचंद्र जैन, नामवर सिंह, देवीशंकर अवस्थी, मलयज तथा निर्मल वर्मा के मूल्यांकन के साथ-साथ 'सदी की नाट्यालोचना' एवं स्त्री आलोचना पर भी आलेख संयोजित किये गये हैं।

इस ग्रन्थ के तृतीय खण्ड में 'साक्षात्कार और वार्तालाप' शीर्षक के अन्तर्गत 18 प्रमुख आलोचकों-विचारकों से प्रखर वैचारिक मुद्दों पर बातचीत समायोजित हैं। इसके अतिरिक्त इसमें शिवदान सिंह चौहान के छह पत्र[9] एवं अंत में जगदीश गुप्त का एक पत्र भी संकलित हैं।

प्रकाशित कृतियाँ

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  1. शताब्दी, मनुष्य और नियति (श्रीकांत वर्मा के साहित्य का मूल्यांकन) - 1986
  2. हमारे समय की कविता - 1998
  3. श्रीकान्त वर्मा (विनिबन्ध) - 1998 (साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली से)
  4. आलोचना की साखी - 2000
  5. कवियों की पृथ्वी - 2004 (आधार प्रकाशन, पंचकुला, हरियाणा से प्रकाशित)

सम्पादित कृतियाँ

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  1. श्रीकान्त वर्मा रचनावली (छह खंडों में) - 1995 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
  2. जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कहानी 'पुरस्कार' का नवसाक्षरों के लिए रूपांतरण - 1996
  3. प्रतिनिधि कविताएँ : अशोक वाजपेयी - 1999 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
  4. आलोचना के सौ बरस (तीन खंडों में) - 2003[1] (मूलतः सन् 2002 में 'वर्तमान साहित्य' के 'शताब्दी आलोचना पर एकाग्र' तीन अंकों का पुस्तकीय रूप; शिल्पायन, शाहदरा, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  1. हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'मेरा घर' शीर्षक कविता के लिए पुरस्कृत - 1986
  2. कृति सम्मान - 1998 (हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'हमारे समय की कविता' पुस्तक के लिए)

इन्हें भी देखें

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  1. आलोचना के सौ बरस, खण्ड-1, संपादक- अरविन्द त्रिपाठी, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2012, पृष्ठ-2 (आरंभिक)।
  2. कवियों की पृथ्वी, अरविन्द त्रिपाठी, आधार प्रकाशन, पंचकुला (हरियाणा), संस्करण-2004, अंतिम आवरण फ्लैप पर।
  3. आलोचना, सहस्राब्दी अंक-5 (अप्रैल-जून 2001), संपादक- परमानन्द श्रीवास्तव, पृष्ठ-6.
  4. मदन कश्यप, 'इंडिया टुडे' 11 सितम्बर 2002, पृ-75.
  5. वर्तमान साहित्य, शताब्दी आलोचना पर एकाग्र-1,2,3, वर्ष-19, अंक-5,6,7, मई,जून एवं जुलाई 2002, आवरण एवं पृष्ठ-2 (संपादकीय तथा विषय-सूची से पूर्व)।
  6. अनभै साँचा, संयुक्तांक-43-44, जुलाई-दिसंबर-2016, (डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी पर एकाग्र), संपादक- द्वारिकाप्रसाद चारुमित्र, पृष्ठ-154.
  7. वर्तमान साहित्य, शताब्दी आलोचना पर एकाग्र-1, वर्ष-19, अंक-5, मई 2002, पृष्ठ-5 से 16 (विषय-सूची से पूर्व)।
  8. आलोचना के सौ बरस, खण्ड-2, संपादक- अरविन्द त्रिपाठी, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2012, पृष्ठ-399.
  9. आलोचना के सौ बरस, खण्ड-3, संपादक- अरविन्द त्रिपाठी, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2012, पृष्ठ-14-20.

बाहरी कड़ियाँ

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