अरुण चन्द्र गुहा

भारतीय राजनीतिज्ञ

अरुण चन्द्र गुहा (जन्म 1892 - ) वे युगान्तर गुप्त संगठन के प्रमुख सदस्य एवं भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। जो बंगाल राज्य से भारत की संविधान सभा के सदस्य मनोनीत किए गए थे। स्वतंत्रता के बाद वह बारासाट संसदीय सीट से पहली, दूसरी और तीसरी, लोकसभा के लिए सांसद चुने गए।

परिचय एवं राजनैतिक सफर

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अरुण चन्द्र गुहा का जन्म 14 मई 1892 को बरिशाल (जो अब बांग्लादेश) में हैं, हुआ था। उन्होंने बरिशाल से ही अपनी स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे क़ानून की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कलकत्ता आ गये, पंरतु कलकत्ता में उनका मन क़ानून के अध्ययन में नहीं लगा और वे देश की आज़ादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे।

'बंग भंग' के विरोध में जो स्वदेशी आंदोलन आंरभ हुआ, 1906 में अरुण गुहा उसमें सम्मिलित हो गए। वे रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द के विचारों से अरुण चन्द्र बहुत प्रभावित थे।

महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण जून, 1946 तक फिर जेल की दीवारों के अंदर बंद रहना पड़ा।

भारत की आज़ादी के बाद अरुण चन्द्र गुहा संविधान सभा के सदस्य चुने गए । बाद में वे 1952, 1957, 1962 के संसदीय चुनावों में बारासाट संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए, लेकिन 1967 के चुनाव में उन्हें CPI उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा।

एक प्रसिद्ध लेखक के रूप में भी अरुण गुहा जाने जाते थे।[1]