अल्फाबेतुम ब्रम्हानिकुमकैसियानो बेलिगत्ती द्वारा लैटिन भाषा में लिखा हुआ हिंदीव्याकरण का ग्रंथ है। इसका प्रकाशन सन १७७१ ईस्वी में हुआ। इसकी विशेषता यह है कि इसमें देवनागरी के अक्षर एवं शब्द सुन्दर टाइपों में मुद्रित हैं। ग्रियर्सन के अनुसार यह हिन्दी वर्णमाला सम्बन्धी श्रेष्ठ रचना है।[क] अल्फाबेतुम यूनानी भाषा का शब्द है जिससे अंग्रेज़ी का अलफ़ाबेट शब्द बना है। इसका अर्थ अक्षरमाला है। इस पुरस्तक के अध्याय एक में स्वर, अध्याय दो में मूल व्यंजन, अध्याय तीन में व्यंजनों के उच्चारण के विशेष विवरण, अध्याय चार में व्यंजनों के साथ स्वरों का संयोग, अध्याय पाँच में स्वर-संयुक्त व्यंजन, अध्याय छह में संयुक्ताक्षर और उनके नाम, अध्याय सात में संयुक्ताक्षर की तालिका, अध्याय आठ में किस प्रकार हिन्दुस्तानी कुछ अक्षरों की कमी पूरी करते हैं, अध्याय नौ में नागरी या जनता की वर्णमाला, अध्याय दस में हिन्दुस्तानी वर्णमाला की लैटिन वर्णमाला के क्रम और उच्चारण के साथ तुलना, अध्याय ग्यारह में अरबी अंकों के साथ हिन्दुस्तानी अंकों और अक्षरों में संख्याएं तथा अध्याय बारह में अध्येताओं के अभ्यास के लिए कुछ प्रार्थनाएं भी हिन्दुस्तानी लिपि में दी गई हैं। इसमें लैटिन प्रार्थनाओं का हिन्दुस्तानी लिपि में केवल लिप्यंतरण मिलता है। अंत में हिन्दुस्तानी भाषा में हे पिता आदि प्रार्थनाएं अनूदित हैं। इस रचना की भूमिका इटली की राजधानी रोम में ईसाई धर्म के प्रचारार्थ संस्था प्रोपगन्दा फीदे के अध्यक्ष योहन ख्रिस्तोफर अमादुसी ने लिखी थी। इस पुस्तक की भूमिका से यह स्पष्ट होता है कि सन १७७१ ईस्वी में भी नागरी लिपि में लिखी जनभाषा हिन्दी या हिन्दुस्तानी का राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार था। जो विदेशी उस समय भारत में व्यापार करने के लिए अथवा घूमने फिरने के लिए आते थे, वे भारत आने के पूर्व इसको सीखते थे तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसके माध्यम से अपना कार्य सम्पन्न करते थे।