ॲल्बर्ट बॅण्डुरा एक प्रभावशाली सामाजिक संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक है, वह उनकी सामाजिक शिक्षा सिद्धांत, आत्म प्रभावकारिता और उनकी प्रसिद्ध बोबो डॉल प्रयोगों की अवधारणा के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं। उन्होंने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर एमेरिटस है और व्यापक रूप से महानतम जीवित मनोवैज्ञानिकों से एक के रूप में माना जाता है। २००२ में एक सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें बीसवीं सदी का चौथा सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक घोषित किया गया, केवल बी.एफ स्किनर, सिगमंड फ्रायड, और जीन पियाजे के पीछे। उन्होंने यह भी सबसे उद्धृत रहने वाले मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था।

ॲल्बर्ट बॅण्डुरा

अल्बर्ट बन्दूरा
जन्म

४ दिसंबर १९२५(4 दिसंबर 1925)
मुन्दारे, अलबर्टा, कनाडा

मृत्यु-26 जुलाई 2021स्टेनफोर्ड kaliforniya U.S.(written -kanhaiya lal bairwa)
राष्ट्रीयता कनाडाई
शिक्षा ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, आयोवा विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि का कारण सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धांत
आत्म प्रभावकारिता
सामाजिक शिक्षा सिद्धांत
बोबो डॉल प्रयोग
मानव एजेंसी
आपसी नियतिवाद
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

सामाजिक अधिगम सिद्धांत के सोपान :—

1.अवधान

2.धारणा

3.पुन: प्रस्तुतीकरण

4.पुनर्बलन

प्रेक्षण अधिगम के चार प्रमुख तत्त्व माने गए हैं

1. अवधान (Attencion) 2. स्मृति (Memory) 3. अनुकरण (Imitation) 4. अभिप्रेरणा (Motivation) Written by Akash

प्रारंभिक जीवन संपादित करें

बॅण्डुरा का जन्म मण्डरी, ॲलबर्टा, कॅनडा में हुआ, मोटे तौर पर चार सौ निवासियों का एक खुला शहर में। वह सभी 6 भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं और वह अपने परिवार में इकलौते बेटे हैं। इस जैसे दूरदराज के एक शहर में शिक्षा की सीमाओं की वजह से बन्दुरा सीखने के मामले में स्वतंत्र और आत्म प्रेरित थे, और इन मुख्य रूप से विकसित लक्षण उनके लंबे कैरियर में बहुत मददगार साबित हुए। बन्दूरा जल्द ही ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिले के बाद मनोविज्ञान द्वारा मोहित हो गये।समय गुजारने के लिए उन्होंने सुबह के कुछ घंटे, मनोविज्ञान को देना शुरू कर दिया। सिर्फ तीन साल में स्नातक होने के बाद, वे पढ़ने आयोवा विश्वविद्यालय चले गए। आयोवा विश्वविद्यालय क्लार्क हल और केनेथ स्पेंस और कर्ट लेविन सहित अन्य मनोवैज्ञानिकों का घर था। बन्दूरा ने 1951 में अपनी एमए की डिग्री हासिल की और अपने पीएच.डी 1952 में।

क्षेत्र संपादित करें

संज्ञानात्मकता मनोविज्ञान संपादित करें

 
संज्ञानात्मक मनोविज्ञान

व्यावहारिकता, २० वीं शताब्दी के पहले आधे भाग में अमेरिकी मनोविज्ञान में प्रभावी प्रतिमान था। हालाँकि, मनोविज्ञान का आधुनिक क्षेत्र मुख्यतः संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (cognitive psychology) से प्रभावित रहा। नोअम चोमस्की ने १९५९ में बी॰ ऍफ़॰ स्किनर के मौखिक व्यवहार की समीक्षा की, जिसने उस समय प्रभावी भाषा और व्यवहार के अध्ययन के व्यावहारिक दृष्टिकोण को चुनौती दी और मनोविज्ञान में संज्ञानात्मक क्रांति (cognitive revolution) में योगदान दिया। चोमस्की 'उत्तेजना', 'प्रतिक्रिया' और ' सुदृढीकरण' के मनमाने विचारों के बारे में जटिलता से सोचते थे, ये विचार स्किनर ने प्रयोगशाला में जंतु प्रयोगों के द्वारा प्राप्त किये। चोमस्की का तर्क था कि स्किनर के विचार केवल जटिल मानव व्यवहार जैसे भाषा अधिग्रहण पर एक अस्पष्ट और सतही तरीके से लागू किये जा सकते हैं। चोमस्की ने इस बात पर जोर दिया कि अनुसंधान और विश्लेषण के दौरान, भाषा के अधिग्रहण में एक बच्चे के योगदान की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए और प्रस्तावित किया कि मानव भाषा के अधिग्रहण (acquire language) की प्राकृतिक क्षमता के साथ पैदा हुए हैं। मनो विज्ञानी अल्बर्ट बन्दूरा (Albert Bandura) से सम्बंधित अधिकंश कार्य, जिन्होंने सामाजिक शिक्षा सिद्धांत (social learning theory) की शुरुआत की और इसका अध्ययन किया, ने दर्शाया कि बच्चे अवलोकन अधिगम (observational learning) के माध्यम से अपने रोल मॉडल से उग्रता सीख सकते हैं, इसके दौरान उनके खुले व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आता और इसे उप आंतरिक प्रक्रिया माना जा सकता है।

योगदान संपादित करें

प्रेक्षणात्मक अधिगम संपादित करें

 
प्रेक्षणात्मक अधिगम

प्रेक्षणात्मक अधिगम दूसरों का प्रेक्षण करने से घटित होता है अधिगम क इस रूप को पहले अनुकरण कहा जाता था।बन्दूरा और उनके सहयोगियों ने कई प्रायोगिक अध्ययनों में प्रेक्षणात्मक अधिगम की विस्तृत खोजबीन की। इस प्रकार के अधिगम में व्यक्ति सामाजिक व्यवहारों को सीखता है, इसलिए हरने कभी-कभी सामाजिक अधिगम भी कहा जाता है! हमारे सामने ऐसी अनेक सामाजिक स्थितियाँ आती हैं, जिनमें यह ज्ञात नहीं रहता कि हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए। ऐसी स्थितियां में हम दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों का प्रेक्षण करते हैं और उनकी तरह व्यवहार करते हैं। इस प्रकार के अधिगम को मॉडलिंग कहा जाता है।

बोबो डॉल प्रयोग संपादित करें

 
बोबो डॉल

एक प्रसिद्ध प्रयोग में बच्चों को पाँच मिनट की अवधि की एक फिल्म दिखाई। फिल्म में एक बड़े कमरे में बहुत से खिलौने रखे थे और उनमें एक खिलौना एक बड़ा सा गुड्डा (बोबो डॉल) था। अब कमरे में एक बड़ा लड़का प्रवेश करता है और चारों और देखता है। लड़का सभी खिलौनों के प्रति क्रोध प्रदर्शित करता है और बड़े खिलौने के प्रति विशेष रूप से आक्रामक हो उठता है। वह गुड्डे को मारता है, उसे फर्श पर फेंक देता है, पैर से ठोकर मारकर गिरा देता है और फिर उसी पर बैठ जाता है। इसके बाद का घटनाक्रम तीन अलग रूपों में तीन फिल्मों में तैयार किया गया। एक फिल्म में बच्चों के एक समूह ने देखा कि आक्रामक व्यवहार करने वाले लड़के (मॉडल) को पुरस्कृत किया गया और एक व्यक्ति ने उसके आक्रामक व्यवहार की प्रशंसा की। दूसरी फिल्म में बच्चों के दूसरे समूह ने देखा कि उस लड़के को उसका आक्रामक व्यवहार के लिए दंडित किया गया। तीसरी फिल्म में बच्चों के तीसरे समूह ने देखा कि लडके को न तो पुरस्कृत किया गया है और न ही दंडित इस प्रक्रार बच्चों के तीन समूहों को तीन अलग-अलग फिल्में दिखाई गई। फिल्में देखने के बाद सभी बच्चों को एक अलग प्रायोगिक कक्ष में बिठाकर उन्हें विभिन्न प्रकार के खिलौनों से खेलने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया और उन समूहों को छिपकर देखा गया और उनके व्यवहारों को नोट किया गया। उन लोगों ने पाया कि जिन बच्चों ने फिल्म में खिलौने के प्रति किए जाने वाले आक्रामक व्यवहार को पुरस्कृत हाते हुए देखा था, वे खिलौनों के प्रति सबसे अधिक आक्रामक थे। सबसे कम आक्रामकता उन बच्चों ने दिखाईं जिन्होंने फिल्म में आक्रामक व्यवहार को दंडित होते हुए देखा था। इस प्रयोग से यह स्पष्ट होता है कि सभी बच्चों ने फिल्म में दिखाए गए घटनाक्रम से आक्रामकता सीखा और मॉडल का अनुकरण भी किया। प्रेक्षण द्वारा अधिगम की प्रक्रिया में प्रेक्षक मॉडल के व्यवहार का प्रेक्षण करके ज्ञान प्राप्त करता हैं परतुं वह किस प्रकार से आचरण करेगा यह इस पर निर्भर करता है कि मॉडल को पुरस्कृत किया गया या दंडित किया गया।

सामाजिक अधिगम सिद्धांत:- संपादित करें

व्यक्तित्व विकास की व्याख्या अल्वर्ट बैन्डूरा द्वारा प्रतिपादित ‘सामाजिक अधिगम सिद्धांत’ के आधार पर किया, गया है।परिवेशीय दशाएं व्यक्तित्व विकास को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती है।इस सिद्धांत के प्रतिपादक बैन्डूरा एवं वाल्टर्स (1963) ने अपनी पुस्तक "सोशल लंर्निग एन्ड पर्सनालिटी डेवेलपमेंट” में व्यक्तित्व विकास में पर्यावरणीय परिस्थिति के महत्त्व को प्रदर्शित किया है।डोलार्ड तथा मिलर (1941) के अनुसार, विकास मूलतः व्यक्ति एवं पर्यावरण की अन्तःक्रिया का परिणाम है। बैन्डूरा का मानना है कि व्यक्तित्व के विकास में सामाजिक, संज्ञानात्मक एवं प्रेक्षणात्मक कारक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।परिवेश हमारे व्यवहार का नियमन करता है।इसमें प्रेरकों, अंतनोर्दों या किसी के व्यक्तिगत जीवन में अंतद्वर्न्दों के स्थान पर वर्तमान परिस्थिति में लोगों के क्रियाकलापों पर बल दिया गया है (बैण्डूरा, 1973) |nice

प्रसिद्ध कृतियां संपादित करें

  • बॅण्डुरा, ए (1977) सामाजिक शिक्ष

ण सिद्धांत। न्यू यॉर्क: जनरल लर्निंग प्रेस।

  • बॅण्डुरा, ए (1973) आक्रामकता : एक सामाजिक सीखना विश्लेषण। न्यू यॉर्क , न्यू जर्सी : अप्रेंटिस -हॉल।
  • बॅण्डुरा, ए (1986) विचार और कार्यों की सामाजिक नींव। न्यू यॉर्क , न्यू जर्सी : अप्रेंटिस -हॉल।
  • बॅण्डुरा, ए (1997) आत्म प्रभावकारिता : नियंत्रण के व्यायाम। न्यू यॉर्क: फ्रीमैन।

सन्दर्भ संपादित करें