आत्मानन्द शांकर-मतानुयायी अद्वैतवादी आचार्य थे। इनका समय चौदहवीं शताब्दी ईस्वी है। इन्होंने ऋग्वेद के 'अस्यवामीय सूक्त' पर भाष्य लिखा है।

केवल एक सूक्त पर भाष्य-रचना में ही इन्होंने लगभग सत्तर ग्रंथों का प्रमाण दिया है।[1] इनके भाष्य में उद्धृत ग्रंथकारों में स्कन्दस्वामी, भट्ट भास्कर आदि का नाम मिलता है। परंतु सायण का नाम नहीं मिलता। इसलिए इन्हें सायण से पहले का का भाष्यकार माना गया है। इनके द्वारा उद्धृत लेखकों में मिताक्षरा के रचयिता विज्ञानेश्वर (1070 से 1100 ई) तथा स्मृति चन्द्रिका के रचयिता देवण भट्ट (13वीं शताब्दी) के नाम होने से इनका समय चौदहवीं शताब्दी ईस्वी माना गया है।[2] अपने भाष्य के संबंध में उन्होंने स्वयं लिखा है कि स्कन्दस्वामी आदि का भाष्य यज्ञपरक है; निरुक्त अधिदेव परक है; परंतु यह भाष्य अध्यात्म-विषयक है। फिर भी मूल रहित नहीं है। इसका मूल विष्णुधर्मोत्तर है।

इन्हें भी देखें

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  1. संस्कृत वाङ्मय कोश, प्रथम खण्ड, संपादक- डॉ॰ श्रीधर भास्कर वर्णेकर, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-2010, पृष्ठ-277.
  2. वैदिक साहित्य और संस्कृति, आचार्य बलदेव उपाध्याय, शारदा संस्थान, वाराणसी, पुनर्मुद्रित संस्करण-2006, पृष्ठ-52.

बाहरी कड़ियाँ

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