उच्च शिक्षा (अंग्रेजी: Higher Education) उच्च शिक्षा का अर्थ है सामान्य रूप से सबको दी जानेवाली शिक्षा से ऊपर किसी विशेष विषय या विषयों में विशेष, विशद तथा शूक्ष्म शिक्षा। यह शिक्षा के उस स्तर का नाम है जो विश्वविद्यालयों, व्यावसायिक विश्वविद्यालयों, कम्युनिटी महाविद्यालयों, लिबरल आर्ट कालेजों एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों आदि के द्वारा दी जाती है। प्राथमिक एवं माध्यमिक के बाद यह शिक्षा का तृतीय स्तर है जो प्राय: ऐच्छिक (Non-Compulsory) होता है। इसके अन्तर्गत स्नातक, परास्नातक (Postgraduate Education) एवं व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण आदि आते हैं।

एक उच्चतर शिक्षा संस्थान में गणित का शिक्षण

इतिहास संपादित करें

ऐसी शिक्षा का स्वरूप विशदता के साथ भारतवर्ष में प्रतिष्ठित हुआ था। उच्च शिक्षा देनेवाले भारतीय गुरुकुलों की बड़ी विशेषता यह थी कि उनमें प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्चतम शिक्षा शिष्याध्यापक प्रणाली (मोनीटोरियल सिस्टम) से दी जाती थी। सबसे ऊपर के छात्र अपने से नीचे वर्ग के छात्रों को पढ़ाते थे और वे अपने से नीचे वाले को। यद्यपि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के पुत्र ही भर्ती किए जाते थे और वर्णों के अनुकूल ही बालकों को शिक्षा भी दी जाती थी तथापि नित्यधर्म, स्वच्छता, शील और शिष्टाचार की शिक्षा प्रत्येक छात्र को दी जाती थी और प्रत्येक छात्र को गुरुकुल में रहकर आश्रम का समस्त कार्य स्वयं करना पड़ता था। कुछ गुरुकुल तो इतने बड़े थे कि वहाँ एक एक कुलपति, दस सहस्र ऋषियों और ब्रह्मचारियों का अन्य दानादि देकर उनको पढ़ाने का प्रबंध करते थे और छात्र भी अपने सामर्थ्य के अनुसार गुरुदक्षिणा देते थे किंतु कोई भी राजा इन गुरुकुलों के प्रबंध में हस्तक्षेप नहीं करता था। इन गुरुकुलों का प्रारंभ वास्तव में उन परिषदों से हुआ जिनमें चार से लेकर 21 तक विद्वान्‌ और मनीषी किसी नैतिक सामाजिक या धार्मिक समस्या पर व्यवस्था देने के लिये एकत्र होते थे। कुछ गुरुकुलों ने वर्तमान सावास विश्वविद्यालय (रेजीडेंशल यूनिवर्सिटी) का रूप धारण कर लिया था। इन गुरुकुलों में वेद, वेदांग, दर्शन, नीतिशास्त्र, इतिहास, पुराण, धर्मशास्त्र, दंडनीति, सैन्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद और आयुर्वेद आदि सभी विषयों की उच्चतम शिक्षा दी जाती थी और जब छात्र, सब विद्याओं में पूर्ण निष्णात हो जाता था तभी वह स्नातक हो पाता था। ब्राह्मणों को यह छूट थी कि वे चाहें तो जीवन भर विद्यार्जन करते रहें।

योरप में मिस्र की सभ्यता सर्वप्राचीन मानी जाती है किंतु वहाँ की उच्च शिक्षाप्रणाली का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता। बाबुल, असुरिया (असीरिया) के निवासियों तथा हिब्रू और फिनीसी लोगों में राजशास्त्र, नीतिशास्त्र, ज्योतिष और भूगोल की उच्च शिक्षा गिने चुने लोगों को ही दी जाती थी। यूनान में सौंदर्य की उदात्त भावना के साथ व्याकरण, काव्य, भाषा, शैली, अलंकारशास्त्र, वक्तृत्वकला, संगीत, गणित, भौतिकी विज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति की शिक्षा दी जाती थी। एक एक व्यक्ति एक एक विषय का पंडित होता था। उसी के पास युवक शिक्षा प्राप्त करने जाते थे। स्पार्ता के लोगों को केवल युद्ध की ही शिक्षा मिली, अन्य विषयों का पूर्ण अभाव रहा। वास्तव में एथेंस ही युनानी उच्च शिक्षा का विद्यानगर था जहाँ सुकरात, ज़ेनोफन, अफलातून और अरस्तू जैसे विद्वान्‌ शिक्षाशास्त्री और दार्शनिक विद्यमान थे। जब रोमवालों ने यूनान को जीत लिया तब रोम की शिक्षाप्रणाली पर यूनान का यह प्रभाव पड़ा कि वहाँ भी इतिहास, विज्ञान, दर्शन, वक्तृत्वकला और शास्त्रार्थकला की उच्च शिक्षा दी जाने लगी जिसके प्रभाव से सिसरो, सैनेका और क्विंतिलियन जैसे शिक्षाशास्त्री और वक्ता उत्पन्न हुए तथा थोड़े ही समय में उच्च शिक्षा के अनेक विद्यालय भी खुल गए। किंतु रोम साम्राज्य के छिन्न भिन्न होने के साथ ही यूनान और रोम की संपूर्ण शिक्षापद्धति समाप्त हो गई।

ईसाई मठों में पहले धर्मशिक्षा और प्रार्थना के साथ पढ़ना लिखना, गाना, पूजा करना और गणित की शिक्षा दी जाती थी किंतु इसके पश्चात्‌ वहाँ विद्यात्रयी (लातिन का व्याकरण, ज्यामिति, ज्योतिष और संगीत) का मिलाकर सात ज्ञानविस्तारक कलाओं के शिक्षण का क्रम चला और तभी से इन शास्त्रों के लिये (आर्ट) शब्द का प्रयोग चल पड़ा जो आजकल भ्रामक रूप से हमारे विश्वविद्यालयों की उपाधि में प्रयुक्त हो रहा है। योरप में प्रारंभ में कुछ विद्यार्थी किसी विशेष विद्या के आचार्य के पास अध्ययन के लिये एकत्र होते थे जैसे पैरिस में धर्मशास्त्र के अध्ययन के लिये, सालेरनो में भैषज्यविद्या के लिये या बोलोना में न्यायनीति (कानून) सीखने के लिये। इस प्रकार दक्षिण योरप में बोलोना के आदर्श पर विश्वविद्यालय खुले और उत्तर में पैरिस के आदर्श पर। इनके अतिरिक्त एक शिक्षाचार्य (बैकेलौरिएट) का प्रमाणपत्र भी था जो शिक्षक होने के लिये अनुज्ञापत्र समझा जाता था। धीरे धीरे विश्वविद्यालयों ने वर्तमान रूप धरण किया। इनमें उच्चतम शिक्षा का अर्थ है हाई स्कूल के पश्चात्‌ महाविद्यालयों (कालेजों) या व्यावसायिक संस्थाओं (ट्रेनिंग काॅलेज, मेडीकल काॅलेज, इंजिनियरिंग काॅलेज, टेक्निकल काॅलेज, कला महाविद्यालय, संगीत महाविद्यालय, शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय, न्यायनीति (लॉ), कृषि, वाणिज्य महाविद्यालय आदि) में दी जानेवाली शिक्षा जिसके लिये विश्वविद्यालय से उपाधि या राजकीय विभागों की ओर से परीक्षा लेकर प्रमाणपत्र दिए जाते हैं। उच्च शिक्षा देने का अधिकांश कार्य विश्वविद्यालय ही करते हैं।

भारत का उच्च शिक्षा तंत्र संपादित करें

भारत का उच्च शिक्षा तंत्र अमेरिका, चीन के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उच्च शिक्षा तंत्र है। विगत 50 वर्षों में देश के विश्वविद्यालयों की संख्या में 11.6 गुना, महाविद्यालयों में 12.5 गुना, विद्यार्थियों की संख्या में 60 गुना और शिक्षकों की संख्या में 25 गुना वृद्धि हुई है। सभी को उच्च शिक्षा के समान अवसर सुलभ कराने की नीति के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश में महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और साथ ही उच्च शिक्षा की अवस्थापना सुविधाओं पर विनियोग भी तदनुरुप बढा है।

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