उपेन्द्रनाथ ब्रह्म (31 मार्च 1956 - 1 मई 1990) एक भारतीय बड़ो सामाजिक कार्यकर्ता और अखिल बड़ो छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष थे। [1]

उपेन्द्रनाथ ब्रह्म
जन्म31 मार्च 1956
कोकराझार जिला, असम, भारत
मौत1 मई 1990(1990-05-01) (उम्र 34 वर्ष)
मुम्बई
पेशालेखक, छात्रनेता
भाषाबड़ो भाषा
शिक्षाएम एससी, गुवाहाटी विश्वविद्यालय
उल्लेखनीय कामsअलग राज्य क्यों? द बड़ोलैण्ड टाइम्स
खिताबबड़ोफा

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

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उपेन्द्रनाथ ब्रह्म का जन्म भारत के असम के कोकराझार जिले के एक छोटे से शहर डोटमा के बोरागारी गाँव में हुआ था। वह श्री मंगलाराम ब्रह्म और सुश्री लेफश्री ब्रह्म के पुत्र थे। वे अपने माता-पिता की पाँचवीं सन्तान थे। बचपन में उन्हें "थोपेन" कहा जाता था। वह गरीबी में पले-बढ़े।

उपेन्द्रनाथ ब्रह्म की शिक्षा डोटमा हाई स्कूल में, कोकराझार हाई स्कूल में और 1973 में स्वामी जि के मार्गदर्शन में शक्ति आश्रम हाई और वोकेशनल स्कूल सहित विभिन्न स्कूलों में हुई। 1975 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से गणित में अक्षरांक से उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने कॉटन कॉलेज से भौतिकी में ऑनर्स की डिग्री के साथ बीएससी की। तत्पश्चात 1981 में एमएससी के लिये गौहाटी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। ब्रह्मा ने गोसाईनीचिना में नेहरू वोकेशनल हाई स्कूल में स्नातक विज्ञान शिक्षक के रूप में भी काम किया, और उसी अवधि में कोकराझार कॉलेज में बीए के लिए अध्ययन भी किया। सन 1985 में उन्होंने बीए तथा 1986 में एमएससी किया।

सन् 1978-79 में गोलपारा जिला छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में वे निर्वाचित हुए। सन् 1981 से 1983 के बीच वे ऑल बड़ो स्टूडेन्ट्स यूनियन के उपाध्यक्ष और 1986 तक अध्यक्ष रहे। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने बड़ो लोगों की शिक्षा और कल्याण के लिए काम किया। उनका मानना था कि बोड़ो लोग अपनी संस्कृति खोते जा रहे हैं। उनके नेतृत्व में इस बात पर सहमति हुई कि अखिल बड़ो छात्र संघ से जुड़े छात्रों को राजनीतिक परिपक्वता देने के लिए राजनीतिक मुद्दों को संघ के कार्यवृत्त (एजेन्डा) में सम्मिलित किया जाना चाहिये।

 
बड़ोडफा को श्रद्धांजलि देते हुए मणिशंकर अय्यर

रक्त कैंसर के कारण 1 मई 1990 को उपेन्द्रनाथ ब्रह्म की मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में मृत्यु हो गई। उनके शव को कोकराझार ले जाया गया और फिर 4 मई को डोटोमा में दफनाया गया। जिस भूमि में उनको को दफनाया गया था उसे अब " थुलुंगपुरी " के नाम से जाना जाता है।

मरणोपरान्त ८ मई १९९० को उन्हें बोडोफा (बोडो के संरक्षक) की उपाधि से सम्मानित किया गया जो उनकी दृष्टि और नेतृत्व क्षमता को मान्यता प्रदान करती है। उनकी पुण्यतिथि पर उनको याद किया जाता है। इस तिथि को अब 'बड़ोफा दिवस कहा जाता है।[2]

उनकी मृत्यु की दसवीं वर्षगांठ पर कोकराझार में उनकी २१ फुट ऊँची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया।

इन्हें भी देखें

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  1. Sinha, S. P. (2008). Lost opportunities: 50 years of insurgency in the North-east and India's response. Lancer Publishers. पृ॰ 181. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7062-162-1. अभिगमन तिथि 2012-01-02.
  2. बड़ोफा उपेन्द्रनाथ ब्रह्म की जयन्ती को छात्र-दिवस के रूप में मनाया गया