ओड जाति
ओड ठाकुर क्षत्रिय राजपूत
ओड अथवा ओड्र क्षत्रिय हिंदू जाति है । ओड राजपूत यह जाति भारत की प्राचीन क्षत्रिय जाति में से एक है ये चक्रवर्ती सम्राट महाराज सगर के वंशज माना जाता है । ये क्षत्रिय जाति मूल रूप से उड़ीशा से है तथा इस जाति के राजा महाराज ओड ने सैकड़ों वर्षों तक पूर्वोतर भारत ( अर्थात् आर्यावर्त ) में शासन किया । कुछ समय बाद उनका युद्ध फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के साथ हुआ ओर कुछ अपनो की ग़द्दारी के कारण उनकी इस युद्ध में पराजय हुई ! ओड राजपूतों को वहाँ से स्थानांतरण करना पड़ा ओर इनका बहुत सारा इतिहास जला दिया गया । वर्तमान समय में ओड राजपूत पाकिस्तान , भारत तथा विश्व के कई देशों में निवास करते है
उत्पति
संपादित करेंइस अध्याय में ओड जाति की उत्पत्ति के बारे में वर्णन करेंगे। इस जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा सगर के वंशज राजा ओड़ से है। ऐतिहासिक ग्रंथों एवं प्राचीन पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राजा ओड ने दक्षिण दिशा में ओड देश की स्थापना करके राज्य किया गया था और तभी से राजा ओड की जाति संतान ओड़ राजपूत के नाम से विख्यात हुई। ओड देश का यह राज्य वर्तमान में ओडिशा राज्य के नाम से विख्यात है। सूर्यवंशी राजा ओड सगरवंशी थे और इसी वंश में राजा सगर के वंशजों के उद्धार के लिए राजा भागीरथ द्वारा गंगा मां को धरती पर अवतरण करने व अपने पूर्वजों को श्राप से मुक्त कराने से के कारण इस जाति के लोग भागीरथ वंशी ओड राजपूत के नाम से जाने गये। पाठकगण कपिल मुनि के श्राप से भस्म हुए राजा सगर के वंशजों की कहानी से भली भांति अवगत होंगे। यह वंश काफी प्राचीन है और पूरे भारतवर्ष में फैला हुआ है। सूर्यवंशी राजा भागीरथ के वंशज राजा ओड ने अपने नाम से ओड राज्य की स्थापना की थी जो कालांतर में ओड, ओड्डू, ओड्र व आद्र राजा के नाम से विख्यात हुई। वंश की 3 शाखाएं है जो निम्नवत है।
महाभारत युद्ध के पश्चात भागीरथ वंशी ओड राजपूत की शाखा गंगा वंश के नाम से प्रसिद्ध हुई। राजा भागीरथ द्वारा अपने पूर्वजों के उद्धार हेतु गंगा मां को पृथ्वी पर अवतरण करने के कारण ओड राजपूत की यह शाखा गंगा वंशी राजपूत के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस वंश के अंतिम राजा भीम अनंग देव ने ओड राज्य में राजा ओह द्वारा निर्मित जगन्नाथ जी भगवान के मंदिर को बहुत बड़े भूभाग में पूर्ण भव्यता के साथ निर्मित कराया गया। इस मंदिर के बारे में पाठकों को बता दें कि रामायण के उत्तराखंड में भगवान श्रीराम ने विभीषण को भगवान जगनाथ जी को इक्वाकु वंश का कुल देवता बताया है।[उद्धरण चाहिए]
पुराणों में जगन्नाथ जी भगवान का मंदिर ओड राज्य में स्थित होना बताया गया है। ओड राज्य में गंगा वंशी राजाओं का राज्य 15वीं शताब्दी तक मिलता है। राजा भीम अनंग देव के पश्चात ओड राज्य ओडिशा पर मुगल शासकों का आधिपत्य होना इतिहास है लिखा हुआ मिलता है। ओड देश ओडिशा पर मुगल शासकों का अधिपत्य हो जाने के पश्चात ओड़ राजपूतों द्वारा ओड राज्य (ओडिशा) को छोड़कर राजस्थान के लिए प्रस्थान किया गया इसका वर्णन हम आगे अध्याय में प्रस्तुत करते हैं ओड देश ओडिशा पर मुगल शासकों का राज्य स्थापित हो जाने के पश्चात ओड राजपूतों के द्वारा ओड देश ओडिसा राज्य को त्यागकर राजस्थान के लिए प्रस्थान किया गया और तब राजस्थान के कुंभलगढ़ परगने में ओडा गांव की स्थापना ओड राजपूतों के द्वारा की गई और तब ओड राजपूत गहलोत वंश की शाखा के रूप में प्रतिष्ठित हुए। मेवाड़ के अनेक राजाओं के साथ ओड राजपूतों का युद्ध में प्रतिभाग करना पाया गया है। मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप सिंह के समय में महाराणा के साथ लाखों की संख्या में ओड राजपूत उनके साथ युद्ध करते थे।[उद्धरण चाहिए]
उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा सगर के वंशज राजा ओड से है। ऐतिहासिक ग्रंथों एवं प्राचीन पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राजा ओड ने दक्षिण दिशा में ऑड देश की स्थापना करके शासन किया था और तभी से राजा ओड की जाति संतान ओड राजपूत के नाम से विख्यात हुई ओड देश का यह राज्य वर्तमान में ओडिशा राज्य के नाम से विख्यात है।[उद्धरण चाहिए]
सूर्यवंशी राजा ओड सगरवंशी थे और इसी वंश में राजा सगर के वंशजों के उद्धार के लिए राजा भागीरथ द्वारा गंगा मां को धरती पर अवतरण करने व अपने पूर्वजों को श्राप से मुक्त कराने से के कारण इस जाति के लोग भागीरथ वंशी ओड राजपूत के नाम से जाने गये पाठकगण कपिल मुनि के श्राप से भस्म हुए राजा सगर के वंशजों की कहानी से भली भांति अवगत होंगे। यह वंश काफी प्राचीन है और पूरे भारतवर्ष में फैला हुआ है। सूर्यवंशी राजा भागीरथ के वंशज राजा ओड ने अपने नाम से ओड राज्य की स्थापना की थी जो कालांतर में जड़ ओडू ओड़ ओइड (वर्तमान में उड़ीसा) राज्य के नाम से विख्यात हुई। वंश की 3 शाखाएं है जो निम्नवत है। महाभारत युद्ध के पश्चात भागीरथ वंश ओड राजपूत की शाखा गंगावंसी के नाम से प्रसिद्ध हुई राजा भागीरथ द्वारा अपने पूर्वजों के उद्धार हेतु गंगा मां को पृथ्वी पर अवतरण करने के कारण ओड राजपूत की यह शाखा गंगा वंशी राजपूत के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस देश के अंतिम राजा भीम अनंग देव ने ओड राज्य में राजा ओड द्वारा निर्मित जगन्नाथ जी भगवान के मंदिर को बहुत बड़े भूभाग में पूर्ण भव्यता के साथ निर्मित कराया गया। इस मंदिर के बारे में पाठकों को बता दें कि रामायण के उत्तराखंड में भगवान श्रीराम ने विभीषण को भगवान जगन्नाथ जी को इक्ष्वाकु वंश का कुल देवता बताया है। पुराणों में जगनाथ जी भगवान का मंदिर ओड राज्य में स्थित होना बताया गया है। ओड राज्य में गंगा वंशी राजाओं का राज्य 15वीं शताब्दी तक मिलता है। राजा भीम अनंग देव के पश्चात ओड राज्य ओडिशा पर मुगल शासकों का आधिपत्य होना इतिहास में लिखा हुआ मिलता है।[उद्धरण चाहिए]
ओड देश ओडिशा पर मुगल शासकों का अधिपत्य हो जाने के पश्चातओड राजपूतों द्वारा ओड राज्य ओडिशा को छोड़कर राजस्थान के लिए प्रस्थान किया गया इसका वर्णन हम जागे अध्याय में प्रस्तुत करते हैं। ओठ देश ओडिशा पर मुगल शासकों का राज्य स्थापित हो जाने के पश्चातओड राजपूतों के द्वारा ओड देश ओडिसा राज्य को त्यागकर राजस्थान के लिए प्रस्थान किया गया और तब राजस्थान के कुंभलगढ़ परगने में ओडा गांव की स्थापना ओड़ राजपूतों के द्वारा की गई और तब ओड राजपूत गहलोत वंश की शाखा के रूप में प्रतिष्ठित हुए। मेवाड़ के अनेक राजाओं के साथ ओड राजपूतों का युद्ध में प्रतिभाग करना पाया गया है। मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप के समय में महाराणा के साथ लाखों की संख्या में ओड राजपूत उनके साथ युद्ध में उनका सहयोग दिया। इतिहास में मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप के साथ ओड राजपूत सैनिक पिंड बनाकर मुगलों से युद्ध किया करते थे। इनके इस प्रकार युद्ध करने के कारण ओड राजपूत की शाखा पिंडारा प्रसिद्ध हुई।[उद्धरण चाहिए]
महाराणा प्रताप के बाद राणा राजसिंह जब मेवाड़ की गद्दी पर बैठे तब राणा प्रताप के बाद राणा राजसिंह ही एक ऐसे राजा हुए जिन्होंने मुगलों से डटकर युद्ध किया ऐतिहासिक ग्रंथों में लिखा है कि राणा राजसिंह का निधन कुंभलगढ़ के गांव ओड़ा में हुआ। ओड राजपूतों की शाखा पिंडारा का वर्णन हम अगले अध्याय में करेंगे। ओड राज्य का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इतिहास में इस देश की तीन शाखाओं का वर्णन मिलता है। 1 गंगा वंश 2 पिंडारा 3 ओड ठाकुर ओड राजपूत की इन तीनों शाखाओं का वर्णन इतिहास व ग्रंथों में मिलता है। राजा ओड के राज्य का वर्णन महाभारत काल के समय में भी मिलता है। महाभारत के समय में भारत वर्ष के समस्त राजाओं की बुलाई गई बैठक में राजा ओड की उपस्थिति ओड राजवंश की उपस्थित एवं उन्नति को दर्शाती है। इतिहास एवं पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात राजपूतों के बहुत सारे वंशों की समाप्ति का भी उल्लेख मिलता है। महाभारत का युद्ध इतना भयंकर था कि इसमें अनेकों राजवंशों को हानि उठानी पड़ी थी और कई सारे राज वंश इस युद्ध के पश्चात विलुप्त होने के कगार पर आ गए थे।[उद्धरण चाहिए]