करोंदा
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करोंदा एक झाड़ी नुमा पौधा होता है। इसका वैज्ञानिक नाम कैरिसा कैरेंडस (Carissa carandus) है। करोंदा के फलों का उपयोग सब्जी और अचार बनाने में किया जाता है। यह पौधा भारत में छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हिमालय के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह नेपाल और अफगानिस्तान में भी पाया जाता है।
करोंदा | |
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चित्र:करोंदा.JPG | |
करोंदा का पेड़ | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Plantae |
अश्रेणीत: | Angiosperms |
अश्रेणीत: | Eudicots |
अश्रेणीत: | Asterids |
गण: | Gentianales |
कुल: | Apocynaceae |
वंश: | Carissa |
जाति: | C. carandas |
द्विपद नाम | |
Carissa carandas L. | |
पर्यायवाची | |
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यह पौधा बीज से अगस्त या सितम्बर में १.५ मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कटिंग या बडिंग से भी लगाया जा सकता है। दो वर्ष के पौधे में फल आने लगते हैं। फूल आना मार्च के महीने में शुरू होता है और जुलाई से सितम्बर के बीच फल पक जाता है।
पौधे की विशेषताऐं
संपादित करेंकरौंदे का पेड़ पहाडी देशों में ज्यादा होते हैं कांटे भी होते है। करौंदे का पौधा एक झाड़ की तरह होता है। इसकी ऊंचाई 6 से 7 फीट तक होती है। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। इसके फूलों की गन्ध जूही के समान होते है। इसके फल गोल, छोटे और हरे रंग के होते है। पकने पर यह काले रंग के होते है।
करोंदा के कच्चे फल सफेद व लालिमा सहित अण्डाकार दूसरे बैंगनी व लाल रंग के होते हैं देखने में सुन्दर तथा कच्चे फल को काटने पर दूध निकलता है। पक जाने पर फल का रंग काला हो जाता है। इसके अन्दर 4 बीज निकलते हैं।
विभिन्न भाषाओं मे करोंदा के नाम
संपादित करेंहिन्दी: करोंदा, करोंदी।
अंग्रेजी: जस्मीड फ्लावर्ड।
संस्कृत: करमर्द, सुखेण, कृष्णापाक फल।
बंगाली: करमचा।
मराठी: मरवन्दी।
गुजराती: करमंदी।
तैलगी: बाका।
लैटिन: कैरीसा करंदस।
करोंदा के गुण
संपादित करेंरंग - करोंदा का रंग सफेद, स्याह, सुर्ख और हरा होता है।
स्वाद - करोंदा का स्वाद खट्टा होता है।
स्वभाव - करोंदा की तासीर गरम होती है।
हानिकारक - करोंदा रक्त पित्त और कफ को उभारते है।
दोषों को दूर करने वाला - करोंदा में व्याप्त दोषों को नमक, मिर्च और मीठे पदार्थ दूर हो जाते हैं।
उपयोग
संपादित करेंपके हुए करौंदे खाने में बहुत अच्छे लगते हैं। करौंदे का अचार भी बहुत अच्छा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है। एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और देखने में सुन्दर भी। इस पर कुछ सुर्खी-सी होती है। इसी को आचार और चटनी के काम में ज्यादा लिया जाता है। भारत के कुछ गाँव में इसकी सब्जी बनाकर भी खाई जाती है।
करोंदा भूख बढ़ाता है और पित्त को शान्त करता है। प्यास को रोकता है, दस्तों को बन्द करता है। खासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक चीज है कच्चे करोंदा भूख को बढ़ाते है, भारी होते है, मल को रोकते है और रूची को उत्पन्न करते है और पके हुए हल्के, रीगल, पित्त, रक्त, पित्त त्रिदोष और विष तथा वात विनाशक है।
करोंदे का उपयोग
संपादित करेंकरोंदे का उपयोग आप बहुत तरह से कर सकते हैं। करोंदे की चटनी बनाई जाती है, इसका जैम भी बनाया जाता है। आप करोंदे का अचार भी बना सकते है। और आजकल तो इससे जूस भी बनाया जाता है।