कृष्ण चन्द्र पाणिग्रही
कृष्णचन्द्र पाणिग्रही (1 दिसम्बर 1909 – 25 फरवरी 1987),[1] भारत के एक प्रसिद्ध इतिहासकार, पुरातत्त्वविद एवं उड़िया साहित्यकार थे।
कृष्णचन्द्र पाणिग्रही | |
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जन्म |
01 दिसम्बर 1909 खिचिंग, मयूरभंज, उड़ीसा |
मौत |
1987 (आयु 77–78) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | एम ए (प्राचीन इतिहास, संस्कृत) |
शिक्षा की जगह |
उत्कल विश्वविद्यालय कोलकाता विश्वविद्यालय |
पेशा | पुरातत्त्वविद |
बच्चे | 4 |
पुरस्कार | पद्मश्री |
आरम्भिक जीवन एवं शिक्षा
संपादित करेंकृष्णचन्द्र पाणिग्रही का जन्म उड़ीसा के मयूरभंज जिले के खिचिंग में हुआ था। खिचिंग, भंज राजवंश की राजधानी थी। उअन्के पिता सागर पाणिग्रही स्थानीय खिचकेश्वरी मन्दिर के पुजारी थे। उन्होंने १९३७ में रावेनशा महाविद्यालय से इतिहास में बी ए किया। इसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में एम ए किया। इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने १९५४ में पीएच-डी किया जिसका विषय था, "भुवनेश्वर के पुरातात्विक अवशेष"।[1]
व्यावसायिक जीवन
संपादित करें१९३७ से १९४४ तक कृष्णचन्द्र भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण में शोधछात्र थे जहाँ वे मृद्भाण्ड (pottery) पर विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे थे। इसके बाद वे उड़ीसा के शिक्षा विभाग में इतिहास के व्याख्याता के रूप में भर्ती हुए। वहाँ वे १९४७ तक रहे। इसके बाद वे पुनः उड़ीसा संग्रहालय के के क्युरेटर हुए जहाँ वे १९४७ से १९५१ तक रहे। इसके बाद वे पुनः शिक्षण में आ गये। एक बाद फिर वे सहायक सुपरिटेन्डेन्ट बनकर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण में आ गये। अन्त में वे इतिहास के प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए ।[1]
ओड़िया साहित्य में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें ओड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। तत्पश्चात् साहित्य और शिक्षा में योगदान के लिये उन्हे भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।[2] अपनी आत्मकथा "मो समय र ओड़ीसा" (मेरे समय का ओड़ीसा) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सन १९८७ में ७८ वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। [1] उनके दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं।
कृतियाँ
संपादित करेंउन्होंने इतिहास और पुरातत्त्व पर अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें से प्रमुख ये हैं-
- भारत प्रत्नतत्त्व (अनुवाद, 1960 में)
- Archaeological Remains at Bhubaneswar, Orient Longmans, 1961[3]
- Archaeology of Orissa, 1961
- इतिहास ओ किंबदन्ति (इतिहास और किम्वदन्ति), (1964 में)
- प्रबन्ध मानस (1972 में)
- ओड़िशार इतिहास ओ संस्कृतिरे याजपुर , 1973
- सारळा साहित्यर ऐतिहासिक चित्र (सारला साहित्य का ऐतिहासिक चित्र ; 1976)
- History of Orissa, 1981
- मो समय र ओड़ीशा (आत्मकथा ; १९७७ में)
- Chronology of Bhauma-Karas and Somavamsis of Orissa, 1961
- Sarala Dasa,
सम्मान एवं पुरस्कार
संपादित करें- पद्मश्री, १९७६
- ओड़िशा साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७९[७] ('मो समयर ओड़िशा' पर)
- ओड़िशा साहित्य अकादमी सम्बर्द्धना, १९७५[८]
- सारळा सम्मान, १९८३
- प्रजातन्त्र प्रचार समिति बिषुब मिळन पुरस्कार, १९७२[९]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ इ ई Kar, Bauribandhu. "Dr. Krishna Chandra Panigrahi : A Master of Modern Odia Prose" (PDF). Govt. of Odisha. अभिगमन तिथि 29 April 2014.
- ↑ "Padma Shri Awardees". India.gov.in. मूल से 7 जनवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 August 2015.
- ↑ Panigrahi, K.C. (1961). Archaeological Remains at Bhubaneswar. Orient Longmans. अभिगमन तिथि 22 August 2015.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- http://www.123orissa.com/person/person.asp?sno=22&cat=a Archived 2016-03-03 at the वेबैक मशीन