केदारेश्वर बनर्जी
केदारेश्वर बनर्जी (15 सितम्बर, 1900 – 30 अप्रैल, 1975) एक एक्स-किरण क्रिस्टलोग्राफर तथा कोलकाता के इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स के निदेशक थे|[1][2][3]
केदारेश्वर बनर्जी | |
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केदारेश्वर बनर्जी मूल प्रति, इलाहाबाद विश्वविद्यालय | |
जन्म |
15 सितम्बर 1900 स्थल (पबना), विक्रमपुर ढ़ाका (अब बांगलादेश) |
मृत्यु |
30 अप्रैल 1975 बरसत, कोलकाता |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
क्षेत्र | क्रिस्टिलोग्राफी |
संस्थान | इलाहाबाद विश्वविद्यालय, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, ढ़ाका विश्व्विद्यालय, और इंडियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस |
शिक्षा | कलकत्ता विश्वविद्यालय |
प्रसिद्धि | क्रिस्टलोग्राफर |
क्रिस्टिलोग्राफी के विकास में प्रो. केदारेश्वर बनर्जी द्वारा 1933 में किया गया शोध बाद में प्रो. हरबर्ट हैपमैन और कारले को दिए गए नोबल पुरस्कार की नींव बना। प्रो. बनर्जी ने प्रो. सीवी रमन के साथ शोध कार्य किया। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में काँच, बहुलक (पॉलीमर) और अमॉफिस पदार्थो पर कार्य किया जो बाद में बेहद महत्वपूर्ण पदार्थ सिद्ध हुए। उसके बाद ही एक्सरे डिफ्रेक्शन का प्रयोग डीएनए की संरचना जानने के लिए किया गया। इस कार्य के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिक वाटसन और फिक्र को नोबल पुरस्कार दिया गया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ “K Banerjee was Reader, University of Dacca; Mahendra Lal Sircar Professor (1943-52), Indian Association for the Cultivation of Science (IACS), Kolkata; Professor & Head, Department of Physics, University of Allahabad (1952-59); and Director, IACS (1959)” Archived 2020-08-09 at the वेबैक मशीन. Professor Banerjee Director at Indian Association of Cultivation of Science
- ↑ “Professor Kedareswar Banerjee – The Crystallographer (15 September 1900 – 30 April 1975)” Archived 2020-07-11 at the वेबैक मशीन. Professor Kedareswar Banerjee a brief Introduction from IUCR web page
- ↑ “Kedareswar Banerjee” Archived 2016-03-04 at the वेबैक मशीन. From IISc Bangore web page