केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली

केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (Central Avian Research Institute of India (CARI)) उत्तर प्रदेश में बरेली के पास इज्जतनगर में स्थित है। इसमें कुक्कुट विज्ञान से सम्बन्धित विविध विषयों पर शोध होता है। इसकी स्थापना १९७९ में हुई थी। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अन्तर्गत कार्य करती है।

केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली

परिचय संपादित करें

भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में 11 मार्च 1939 को 'पोल्ट्री रिसर्च' नाम से एक अलग इकाई खोली गई थी जिसे कुछ समय बाद एक अलग विभाग में बदल दिया गया। इसमें पोल्ट्री की प्रजातियों पर शोध होने लगा। यह संस्थान 70 के दशक में सबसे बड़े पोल्ट्री रिसर्च संस्थान के रूप में अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुका है। यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) के सहयोग से ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन पोल्ट्री साइंस’ की स्थापना हुई, तथा इंडियन काउंसिल आॅफ एग्रीकल्चर रिसर्च से 2 नवम्बर, 1979 को हरी झण्डी मिलने के बाद सेंट्रल एवियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएआरआई) खोला गया।

संस्थान में मुर्गी, टर्की और बटेर की प्रजातियों पर शोध होता है और पोल्ट्री के इस क्षेत्र में मास्टर डिग्री एवं डिप्लोमा कोर्स भी कराता है। मुर्गी पालन के लिए किसानों व ग्रामीण लोगों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस उल्लेखनीय कार्यक्रम के माध्यम से संस्थान ने हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। जो लोग मुर्गी पालन के क्षेत्र में कार्य करना चाहते हैं, उन्हें संस्थान समय-समय पर अच्छे दिशा-निर्देशों के साथ-साथ प्रशिक्षण की सुविधा भी देता है। अब तक कुक्कुट पर शोध करने वाला यह देश का महत्वपूर्ण संस्थान है। संस्थान में मुर्गियों के लिए पोषक आहार तैयार करने के साथ-साथ बीमारियों से वचाने के लिए टीके व दवाइयाँ तैयार की जाती हैं। वर्ष में तीन बार लघु औद्योगिक प्रशिक्षण दिया जाता है, और समय-समय पर संस्थान के द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिए मेले का आयोजन भी किया जाता है। यह संस्थान भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान के परिसर में ही स्थित है और टर्की-पोल्ट्री के क्षेत्र में नित नये शोध करने के साथ-साथ इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य करते रहने हेतु लगातार प्रयासरत है।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान संस्थान में ऐसी विभिन्न प्रजातियाँ विकसित की गई हैं जिनमें मांस की वृद्धि तेजी से होती है और उनमें अंडा उत्पादन क्षमता का भी विकास किया गया है। अनेक प्रजातियां ऐसी विकसित की गई हैं जो सालभर में 300 से अधिक अंडे देती हैं। कई प्रजातियों में से एक हैं ‘कैरीप्रिया’ ब्रीड जिसका अंडा अच्छी किस्म का माना जाता है। ‘कैरी सोनाली’ प्रजाति की मुर्गी सुनहरे भूरे रंग के अंडे देती है, यह प्रजाति संस्थान में ही 1997 में विकसित की गई, यह पूरे साल में लगभग 280 अंडे देती हैं। ‘कैरी रेनब्रो’ नाम के रंगीन ब्रायलर को प्रमुख रूप से आहार के लिए विकसित किया गया है। मुर्गियों की इस प्रजाति का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है।

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