खंडोबा

गड़रिया महादेव पश्चिमी भारत मे खंडोबा के रूप में पूजे जाने वाले देवता भगवान शिव के अवतार !
(खण्डोबा से अनुप्रेषित)

खंडोबा,खंडेराया,मल्हारी मार्तण्ड,आदि नामो से प्रसिद्ध , महाराष्ट्र और कर्नाटक प्रदेश की बहुसंख्यक जनता के कुल देवता हैं। उनकी उपासना निम्नवर्गीय समाज से लेकर ब्राह्मण तक सभी करते हैं। 'खंडोबा' और 'स्कंद' दोनों नामों के सादृश्य के कारण कुछ लोगों में खंडोबा को स्कंद के अवतार समझे जाते हैं। अन्य लोग उन्हें शिव अथवा उनके भैरव रूप का अवतार बताते हैं। इसके प्रमाण में कहा जाता है कि खंडोबा परिवार में कुत्ते को स्थान प्राप्त है और कुत्ता भैरवनाथ का वाहन है। इनके चार आयुधों में खड्ग (खाँडे) का विशेष महत्व है और इसी 'खाँडे' के कारण इनका खंडोबा नाम पड़ा है। खंडोबा के संबंध में यह भी कहा जाता है कि वे मूलत: ऐतिहासिक वीर पुरूष थे। उन्हें कालांतर में देवता मान लिया गया है। इस कल्पना का आधार 'समयपरीक्षा' नामक कन्नड भाषा का एक ग्रंथ है।[1][2]

खण्डोबा
अन्य नाम मार्तण्ड भैरव , खंडेराव , मल्हारी , खड्गधर , शूलपाणी , खंडेराया आदि।
कन्नड़ लिपि ಖಂಡೋಬಾ
संबंध शिव के अवतार
निवासस्थान जेजुरी महाराष्ट्र
मंत्र ॐ श्री मार्तण्ड भैरव नमः
अस्त्र त्रिशुल, खड्ग
जीवनसाथी

म्हाळसादेवी एवं देवी बाणाई /

खण्डोबा बहण मां लक्ष्मी देवी
सवारी अश्व
त्यौहार चम्पा षष्ठी

खंडोबा के सेवक के रूप में वाघ्या और मुरली का उल्लेख किया जाता है। बाध्या को तो लोग कहते हैं कि वह खंडोबा के कुत्ते का नाम है। मुरली खंडोबा की उपासिका कोई देवदासी थी। सारे दक्षिण में बाध्या और मुरली नाम के खंडोबा के उपासकों का दो वर्ग प्रख्यात है। ये लोग घूमते फिरते हैं और भिक्षा माँगकर खाते हैं।

खंडोबा के संबंध में यह भी कहा जाता है कि खंडोबा की उपासना कर्णाटक से महाराष्ट्र में आई है और खंडोबा महाराष्ट्र और कर्णाटक के बीच सांस्कृतिक संबंध के प्रतीक हैं। कर्णाटक में खंडोबा मल्लारी, मल्लारि मार्तंड, मैलार आदि नाम से जाने जाते हैं। वहाँ उनके बारह प्रसिद्ध स्थान बताए जाते हैं। मद्रास के उपनगर 'मैलापुर' के संबंध में कहा जाता है कि मूलत: उसका नाम इन्हीं के नाम पर मैलारपुर था। दक्षिण में कुछ मुसलमान उन्हें मल्लू खाँ के नाम से पूजते हैं। महाराष्ट्र में इनके कन्नड़ नाम मैलार का संस्कृतकरण कर 'मल्लारि माहात्म्य' नाम से एक ग्रंथ की रचना हुई है। उसमें उनके संबंध में जो कथा दी गई है वह इस प्रकार है-

कृतयुग में मणिचूल पर्वत पर धर्मपुत्र सप्तर्षि तप कर रहे थे। वहाँ मणि और मल्ल नामक दो दैत्यों ने आकर उपद्रव करना आरंभ किया और ऋषि के तपोवन को ध्वस्त कर दिया। तब शोकाकुल ऋषि इंद्र के पास गए। इंद्र ने कहा कि मणि-मल्ल दोनों दैत्यों को अमर रहने का वरदान ब्रह्मा ने दे रखा है। इस कारण वे उनका वध करने में असमर्थ हैं। उन्होंने ऋषि को विष्णु के पास जाने की सलाह दी। ऋषि विष्णु के पास गए। जब विष्णु ने भी अपनी असमर्थता प्रकट की तब वे शिव के पास आए। शिव ने जब ऋषि की दु:खगाथा सुनी तो वे दु:खी हुए और उन्होंने मणि और मल्ल के विनाश के लिये मार्तंड भैरव का रूप धारण किया और कार्तिकेय के नेतृत्व में अपने सात कोटि गणों को लेकर मणिचूल पर्वत पर पहुँचे। वहां उनका मणि-मल्ल के साथ तुमुल युद्ध हुआ। अंत में मार्तंड भैरव ने मणि के वक्षस्थल को विदीर्ण कर दिया और वह भूमि पर गिर पड़ा। गिरने पर उसने शिव से प्रार्थना की कि वह उसे अश्व के रूप में अपने निकट रहने की अनुमति दें। शिव ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार मल्ल ने भी मरने से पूर्व मार्तंड भैरव से अनुरोध किया कि मेरे नाम से आप मल्लारि (मल्ल+अरि) नाम से ख्यात हों। तब सप्तऋषि ने भयमुक्त होकर मार्तंड भैरव से स्वयंभूलिंग के रूप में प्रेमपुर (पेंबर) में रहने का अनुरोध किया और उन्होंने उनका भी अनुरोध मान लिया। इस प्रकार मल्लारि (मैलार) की कथा प्रख्यात हुई। मल्लारि (मैलार) अर्थात् खंडोबा को श्वेत अश्व पर आरूढ़ अंकित किया जाता है। उनके साथ कुत्ता रहता है। उनके हाथ में खड्ग (खंडा) और त्रिशूल होता है।

चित्र दीर्घा

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  1. "चंपा षष्ठी: व्रत करने धुल जाते हैं पूर्व जन्म के पाप ऐसे, ये है महत्व". हरिभूमि. मूल से 2 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 दिसंबर 2017.
  2. "चंपा षष्ठी पर मार्तण्ड पूजन". वेब दुनिया. मूल से 2 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 दिसंबर 2017.

बाहरी कड़ियाँ

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