खीरा
खीरा (cucumber ; वैज्ञानिक नाम: Cucumis sativus) ज़ायद की एक प्रमुख फसल है।
सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा विभिन्न प्राकर की मिठाइयाँ भी तैयार की जाती है। पेट की गड़बडी तथा कब्ज में भी खीरा को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। खीरा में अधिक मात्रा में फाइबर मौजूद होता है खीरा कब्ज़ दूर करता है। पीलिया, प्यास, ज्वर, शरीर की जलन, गर्मी के सारे दोष, चर्म रोग में लाभदायक है। खीरे का रस पथरी में लाभदायक है। पेशाब में जलन, रुकावट और मधुमेह में भी लाभदायक है। घुटनों में दर्द को दूर करने के लिये भोजन में खीरे का सेवन अधिक मात्रा में करें|
डा सुनील बैद जी --- खीरा तेजाब रोग को कन्ट्रोल करता है तेजाब गैस वाले मरीजों को खीरा जरूर खाना चाहिए।।
उन्नत जातियाँ
संपादित करेंजापानीज लाग, ग्रीन पोइनसेट, खीरी पूना, फैजाबादी तथा कल्याणपुर मध्यम इत्यादि॥
भूमि एवं जलवायु
संपादित करेंयह हर प्रकार की भूमियों में जिनमें जल निकास का उचित प्रबन्ध हो, उगाया जाता है। इसकी खेती हल्की अम्लीय भूमियों जिनका पी.एच. 6-7 के मध्य हो, में की जा सकती है। अच्छी उपज हेतु जीवांश पदार्थयुक्त दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। इसकी फसल जायद तथा वर्षा में ली जाती है। अत: उच्च तापक्रम में अच्छी वृद्धि होती है, यह पाले को नहीं सहन कर पाता, इसलिए इसको पाले से बचाकर रखना होता है।
बुवाई का समय
संपादित करेंबीज की मात्रा एवं बुवाई
संपादित करेंप्रति हेक्टेयर बुवाई हेतु 2 से 2.5 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बुवाई लाइन में करते हैं। ग्रीष्म के लिए लाइन से लाइन की दूरी 1.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी ७75 सेमी. रखते है। वर्षा वाली फसल की वृद्धि अपेक्षाकृत कुछ अधिक होती है अत: इसकी दूरी बढा देना चाहिए इसमें लाइन से लाइन की दूरी 1.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 1.0 मीटर रखना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
संपादित करेंअच्छी उपज प्राप्त करने हेतु खेत तैयार करते समय प्रतिहेक्टेयर 20-25 टन गोबर की सड़ी खाद मिला देना चाहिए। इसके प्रति हे. की दर से आवश्यक होता है। नत्रजन की 1/3 मात्रा फास्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय, 1/3 नत्रजन पौधों में 4-5 पत्तियों की अवस्था पर तथा 4/5 नत्रजन फल आने की प्रारम्भिक अवस्था पर दें।
सिंचाई एवं निराई
संपादित करेंजायद में उच्च तापमान के कारण अपेक्षाकृत अधिक नमी की जरूरत होती है। अत: गर्मी के दिनों में हर सप्ताह हल्की सिंचाई करना चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई वर्षा पर निर्भर करती है। खेत में खुरपी या हो के द्वारा खरपतवार निकालते रहना चाहिए। वर्षाकालीन फसल के लिए जड़़ो में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
तोड़ाई एवं उपज
संपादित करेंयह बुवाई के लगभग दो माह बाद फल देने लगता है। जब फल अच्छे मुलायम तथा उत्तम आकार के हो जायें तो उन्हें सावधानीपूर्वक लताओं से तोड़कर अलग कर लेते हैं इस तरह प्रति हे. 50 -60 कुन्टल फल प्राप्त किये जा सकते है।
प्रमुख कीट एवं व्याधियाँ
संपादित करें1. लाल कीडा: यह पत्तियों तथा फूलों को खाता है रोकने हेतु इण्डोसल्फान 4% चूर्ण 20-25 किग्रा./हे. भुरकें।
2. फल कीडा: यह कीडा यह कीडा फूल को खा जाता है। तथा फलों में छेद करके उनमे घुस जाता है। इनके उपचार हेतु इण्डोसल्फान ४% चूर्ण 20-25 किग्रा./हे. भुरकें
3. एन्थ्रेकनोज: इस रोग में पत्तियों एवं फलों पर लाल, धब्बे हो जाते है। बीज को बुवाई से पहले एग्रोसेन जी. एन. से उपचारित कर लेना चाहिए।
4. फ्यूजेरियम रूट हाट: इस रोग के प्रकोप से तने का आधार काला हो जाता है, बाद में पौधा सूख जाता है, बीज पर गर्म पानी का उपचार (55 डिग्री सेल्सियस से 15 मिनट) करके मरक्यूरिक क्लोराइड के 0.1 % घोल में डुबा लेना चाहिए।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- खीरे की खेती
- Cucumber growing page
- Plant profile at the Plants Database (https://web.archive.org/web/20130603145708/http://plants.usda.gov/java/profile?symbol=ECPA2) - shows classification and distribution by US state.
- The Art of Promoting the Growth of the Cucumber and Melon by Thomas Watkins
- खीरा का लाभ
- ओपन फील्ड में खीरे की खेती Archived 2020-02-21 at the वेबैक मशीन
- मंडी भाव Archived 2022-10-08 at the वेबैक मशीन
इतिहास एवं सन्दर्भ