ग़बन के अन्य अर्थों के लिए ग़बन का लेख देखें

गबन या दुर्विनियोग (embezzlement) ऐसे अपराध को कहते हैं जिसमें किसी कार्य के लिए कोई पैसा या सम्पति किसी व्यक्ति दी गयी हो और वह व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए उसे चुरा ले।[1] ग़बन एक प्रकार का धोखा होता है। ग़बन का एक उदहारण दुकानों पर बैठे उन व्यक्तियों में देखा जाता है जो चालाकी से समय-समय पर किसी-किसी ग्राहक को बिना रसीद दिए सामान बेचते हैं और फिर वसूल किया गया पैसा दुकान के मालिक को देने के बजाय ख़ुद अपना मान लेते हैं।

भारतीय दण्ड संहिता में गबन के अपराधों के लिये धारा ४०३ तथा धारा ४०४ लागू होतीं हैं।

ग़बन और चोरी में अंतर संपादित करें

हालांकि चोरी और ग़बन एक जैसे अपराध लगते हैं, इन दोनों जुर्मों में एक गहरा अंतर है। चोरी के अपराध में चोरी की गयी सम्पति पर चोर का नियंत्रण और क़ब्ज़ा शुरू से अंत तक ग़ैर-क़ानूनी होता है। इसके विपरीत ग़बन की गयी सम्पति पर ग़बन करने वाले का नियंत्रण और क़ब्ज़ा न्याय के दृष्टिकोण से शुरू में बिलकुल जायज़ होता है। ग़बन करने वाले का जुर्म उस समय शुरू होता है जब वह इस नियंत्रण का नाजायज़ प्रयोग करते हुए उस सम्पति को अपने व्यक्तिगत फ़ायदे के लिए हड़प लेता है।[2] उदहारण के लिए बिहार और झारखण्ड राज्यों का चारा घोटाला एक प्रकार का ग़बन था क्योंकि उसमें सरकारी अफ़सरों ने जाली रसीदें जमा करके सरकारी ख़जाने से रुपये निकलवा कर हड़प लिए। इन अफ़सरों को सरकारी पैसा सरकारी काम पर ख़र्च करने का पूरा अधिकार था लेकिन उसे धोखे से अपनी सम्पति बना लेने का नहीं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. कम्पनी अधिनियम एवं अंकेक्षण[मृत कड़ियाँ] "... अत: चोरी करने बले की अधिकतम रूधि लिस्ट के ग़बन में होती है।.."
  2. Singer & LaFond, Criminal Law (Aspen 1997) पृष्ठ २१३ पर