गहलोत

माली मौर्य जाति की शाखा
(गहलोत राजपुत से अनुप्रेषित)

गह्लोत या गुहिलोत मेवाड़ का राजपूत वंश है। जिन्हे राणा , राणावत , सिसोदिया , गहलोत उपनाम से भी जाना जाता है। इस वंश मै से कुछ अन्य समाज निकले है जो की रावला और अन्य जाति की दासी के पुत्रों से चले। इसलिए गहलोत शब्द कुछ अन्य जातियां भी लगाती है। राजपूतों ने मेवाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, शाहपुरा, पालीताना, बिहार देव उमंगा , साठा दोआब , मालवा , हाथरस , लाठी , मऊ और वाराणसी सहित कई साम्राज्यों पर शासन किया।।[1] नाम की विविधताओं में गुहिला, गहलोत या गुहिलोत शामिल हैं।

विष्णु पाद मंदिर रक्षार्थ संपादित करें

वास्तविकता यह है कि यह वंश हिन्दू धर्म कि रक्षा हेतु "राणा लाखा" के नेतृत्व मे गयाजी (विष्णु पाद) मंदिर रक्षा हेतु पासवान राजस्थान से चलकर 'गोहिल वंश' के क्षत्रिय बड़ी संख्या मे बिहार आये उस समय इस्लामिक सत्ता थी जो हिंसा हत्या बलात्कार मे विस्वास करती थी, मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ना ही इनका धर्म था, इस्लाम के अंदर तो मानवता नाम कि कोई चीज न थी न आज है, उन्होने बड़ी वीरता के साथ इस धर्म भूमि और मंदिरों की रक्षा मे अपना जीवन बिता दिया यहीं के होकर रह गए, समय काल परिस्थितियाँ बदलीं जो रक्षक थे वे पददलित हो गए मुगलों की बर्बर सत्ता आ गयी हिंदुओं की बहन बेटियाँ सुरक्षित नहीं, सभी को यह पता है की हिन्दू धर्म मे बिबाह दिन में और मंदिरों मे होता था लेकिन इस्लामिक सत्ता ने सब कुछ तहस- नहस कर दिया, मंदिरों पर हमले होने के साथ वहाँ विवाह बंद हो गया जो बिबाह दिन मे होता था वह अपनी सुरक्षा हेतु घर के अंदर होने लगा, जो बिबाह बिना दहेज व खर्चे के होता था अब सुरक्षा हेतु बड़ी संख्या मे बारात के नाम पर लोग आने लगे और बिरात्री मे होने लगी

सन्दर्भ संपादित करें

  1. विद्या प्रकाश त्यागी (2009). Martial races of undivided India [अविभाजित भारत की योद्धा जातियाँ] (अंग्रेज़ी में). ज्ञान बुक्स प्राइवेट लिमिटेड. पृ॰ 71. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788178357751.