गागरौन दुर्ग
गागरोन का दुर्ग दक्षिण-पूर्वी राजस्थान Archived 2021-06-11 at the वेबैक मशीन के सबसे प्राचीन व विकट दुर्गों में से एक गागरोन दुर्ग हैँ प्रमुख जल दुर्ग है ! जिसे झालावाड़ में आहू और कालीसिंध नदियों के संगम स्थल ‘सामेलजी’ के निकट डोड ( परमार ) राजपूतों द्वारा निर्मित्त करवाया गया था ! इन्हीं के नाम पर इसे डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहते थे !
गागरौन दुर्ग | |
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गागरोन् का भाग | |
राजस्थान, भारत | |
निर्देशांक | 24°37′41″N 76°10′59″E / 24.627937°N 76.182957°E |
स्थल इतिहास | |
युद्ध/संग्राम | गागरों का युद्ध (१५१९) – राणा सांगा ने मालवा के महमूद खिलजी क्को पराजित किया।[1] |
दुर्गरक्षक जानकारी | |
निवासी | डोडिया राजपूत, खीची चौहान, भीमकरन महमूद खिलजी, राणा कुंभा, अकबर एवं महाराव भीम सिंह |
प्रकार: | सांस्कृतिक |
मापदंड: | ii, iii |
अभिहीत: | 2013 (36th session) |
भाग: | राजस्थान के पहाड़ी दुर्ग |
सन्दर्भ क्रमांक | 247 |
देश: | भारत |
क्षेत्र: | एशिया |
गागरोन दुर्ग भारतीय राज्य राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित एक दुर्ग है। यह काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित है। 21जूूून, 2013 को राजस्थान के 5 दुर्गों को युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया जिसमें से गागरों दुर्ग भी एक है। यह झालावाड़ से उत्तर में 13 किमी की दूरी पर स्थित है। किले के प्रवेश द्वार के निकट ही सूफी संत ख्वाजा हमीनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है।[2] यह दुर्ग दो तरफ से नदी से, एक तरफ से खाई से और एक तरफ से पहाड़ी से घिरा हुआ है। कभी इस किले 92 मंदिर होते थे और सौ साल का पंचांग भी यहीं बना था।
यह तीन ओर से अहू और काली सिंध के पानी से घिरा हुआ है। पानी और जंगलों से सुरक्षित यह किला कुछ ही ऐतिहासिक स्थलों में से एक है जिसमें ‘वन’ और ‘जल’ दुर्ग दोनों हैं। किले के बाहर यात्री सूफी संत मिट्ठे शाह की दरगाह देख सकते हैं। प्रत्येक वर्ष मोहर्रम के अवसर पर यहाँ एक मेला आयोजित किया जाता है। संत पीपा जी का मठ भी, जो संत कबीर के समकालीन के रूप में प्रसिद्ध है, किले के पास स्थित है।
इतिहासकारों के अनुसार, इस दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। डोड राजा बीजलदेव ने 12वीं सदी में निर्माण कार्य करवाया था और 300 साल तक यहां खिंची राजपूतों ने राज किया। सीधी खड़ी चट्टानों पर ये किला आज भी बिना नींव के सधा हुआ खड़ा है। किले में तीन परकोटे है जबकि राजस्थान के अन्य किलो में दो ही परकोटे होते हैं। इस किले में दो प्रवेश द्वार हैं, एक पहाड़ी की तरफ खुलता है तो दूसरा नदी की तरफ। किले के सामने बनी गिद्ध खाई से किले पर सुरक्षा हेतु नजर राखी जाती थी।
तेरहवी शताब्दी में अल्लाउदीन खिलजी ने किले पर चढ़ाई की जिसे राजा जैतसिंह खिंची ने विफल कर दिया था। 1338 ई से 1368 तक राजा प्रताप राव ने गागरों पर राज किया और इसे एक समर्ध रियासत बना दिया। बाद में सन्यासी बनकर वही 'राजा संत पीपा' कहलाए। गुजरात के द्वारका में आज उनके नाम का मठ है।
चौदहवी सदी के मध्य तक गागरों किला एक समर्ध रियासत बन चुका था। इसी कारन मालवा के मुस्लिम घुसपैठिये शासको की नजर इस पर पड़ी। होशंग शाह ने 1423 ईस्वी में तीस हजार की सेना और कई अन्य अमीर राजाओ को साथ मिलाकर गढ़ को घेर लिया और अपने इसे जीत लिया।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Decisive Battles India Lost pg 57 by Jaywant Joglekar
- ↑ "गागरों किला, झालावाड़". मूल से 1 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 नवंबर 2017.