गुजरी महल (ग्वालियर)
ग्वालियर दुर्ग के भूतल भाग में गुजरी महल स्थित है। जिसका निर्माण राजा मान सिंह तोमर ने 15वीं शताब्दी मे प्रेम में करवाया था तथा दोनों के नाम महल के शिलालेख पर अंकित है [1][2] ग्वालियर के राजाओं के बनाए मंदिर सिद्धांचल जैन गुफा व चतूर्भूज मंदिर जैसे स्मारक भी मौजूद है गुजरी महल ७१ मीटर लम्बा एवं ६० मीटर चैड़ा आयताकार भवन है जिसके आन्तरिक भाग में एक विशाल आंगन है। गूजरी महल का बाहरी रूप आज भी प्रायः पूरी तरह से सुरक्षित है। महल के प्रस्तर खण्डों पर खोदकर बनाई गई कलातम्क आकृतियों में हाथी, मयूर, झरोखे आदि एवं बाह्य भाग में गुम्बदाकार क्षत्रियों की अपनी ही विशेषता है तथा मुख्य द्वार पर निर्माण संबंधी फारसी शिलालेख लगा हुआ है।
सम्पूर्ण महल को रंगीन टाइलों से अलंकृत किया गया था, कहीं-कहीं प्रस्तर पर बड़ी कलात्मक नयनाभिराम पच्चीकारी भी देखने को मिलती है।
इस महल के भीतरी भाग में पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना सन 1920 में एम.वी.गर्दे द्वारा कराई गई थी जिसे सन् 1922 में दर्शकों के लिये खोला गया था। संग्रहालय के 28 कक्षों में मध्य प्रदेश की ईसापूर्व दूसरी शती ई. से १७वीं शती ई. तक की विभिन्न कलाकृतियों और पुरातात्विक धरोहरों का प्रदर्शन किया गया है।
गुजरी महल स्थित संग्रहालय मध्यप्रदेश का सबसे पुराना संग्रहालय है जिसमें मध्यप्रदेश के पुरातत्व इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण शिलालेख भी रखे गए हैं और विदिशा के बेसनगर, पवाया से प्राप्त महत्वपूर्ण पाषाण प्रतिमाएं रखी हुई हैं। इसके अतिरिक्त संग्रहालय में सग्रहीत पुरा सामग्री में पाषाण प्रतिमाएं, कांस्य प्रतिमाएं, लघुचित्र, मृणमयी मूर्तियां, सिक्के तथा अस्त्र-शस्त्र प्रदर्शित है। इनमें विशेष रूप से दर्शनीय ग्यारसपुर की शालभंजिका की मूर्ति है।
गूजरी रानी का गाँव 'मैहर राई', ग्वालियर से २५ किमी मील दूर था। शर्त के अनुसार राजा मानसिंह ने मृगनयनी के गाँव से नहर द्वारा पीने का पानी लाने की व्यवस्था की थी।