गुमानी पन्त (जन्म :27 फरवरी १७७० - ) काशीपुर राज्य के राजकवि थे। वे संस्कृत और हिन्दी के कवि थे। वे कुमाऊँनी तथा नेपाली के प्रथम कवि थे। कुछ लोग उन्हें खड़ी बोली का प्रथम कवि भी मानते हैं। ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में गुमानी जी को कुर्मांचल प्राचीन कवि माना है। डॉ॰ भगत सिंह के अनुसार कुमाँऊनी में लिखित साहित्य की परंपरा १९वीं शताब्दी से मिलती हैं और यह परंपरा प्रथम कवि गुमानी पंत से लेकर आज तक अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। इन दो दृष्टांतों से यह सिद्ध हो जाता है कि गुमानी जी ही प्राचीनतम कवि थे।

जीवनी संपादित करें

गुमानी का जन्म विक्रत संवत् १८४७, कुमांर्क गते २७, बुधवार, फरवरी १७९० में नैनीताल जिले के काशीपुर में हुआ था। इनके पिता देवनिधि पंत उप्रड़ा ग्राम (पिथौरागढ़) के निवासी थे। इनकी माता का नाम देवमंजरी था। इनका बाल्यकाल पितामह पंडित पुरुषोत्तम पंत जी के सान्निध्य में बीता। इनका जन्म का नाम लोकरत्न पंत था। इनके पिता प्रेमवश इन्हें 'गुमानी' कहते थे और कालांतर में वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुए। इनकी शिक्षा-दीक्षा मुरादाबाद के पंडित राधाकृष्ण वैद्यराज तथा मालौंज निवासी पंडित हरिदत्त ज्योतिर्विद की देखरेख में हुई। २४ वर्ष की उम्र तक विद्याध्ययन के पश्चात इनका विवाह हुआ।

गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट होने भी न पाए थे कि बारह वर्ष तक के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने की ठान बैठे और तीर्थाटन को निकल गए। चार वर्ष तक प्रयाग में रह वहाँ एक लाख गायत्री मंत्र का जप किया। एक बार भोजन बनाते समय इनका यज्ञोपवीत जल गया। प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने व्रत समाप्ति तक पका अन्न न खाने की प्रतिज्ञा कर ली। उनके प्रपौत्र गोवर्धन पंत जी के अनुसार गुमानी जी ने प्रयाग के बाद कई वर्षों तक सोरों शूकरक्षेत्र के समीप कपिलमुनि की गुफा में दूर्वारस पीकर तपस्या की थी व हनुमान जी से साक्षात्कार किया था। व्रत समाप्ति के बाद माता के आग्रह पर इन्होंने गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया।

राजकवि के रूप में गुमानी जी सर्वप्रथम काशीपुर नरेश गुमान सिंह देव की राजसभा में नियुक्त हुए। राजसभा के अन्य कवि इनकी प्रतिभा से ईर्ष्या करने लगे। एक बार काशीपुर के ही पंडित सुखानंद पंत ने इन पर व्यंग्य कसा। पर्याप्त शास्त्रार्थ हुआ। जब महाराज गुमान सिंह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके तो मध्यस्थ की आवश्यकता हुई। उन्होंने मुरादाबाद के पंडित टीकाराम शर्मा को मध्यस्थ बनाया। टीकाराम जी भी गुमानी जी की प्रतिभा से ईर्ष्या करते थे। अतः उन्होंने सुखानंद संत का ही साथ दिया, गुमानी जी को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वे तत्काल निम्नलिखित श्लोक लिखकर सभा से बाहर चले गए-

चंदन कर्दम कलहे भेको मध्यस्थतापन्नः।
ब्रूते पंक निमग्नः कर्दम साम्यं च चंदन लभते॥

अर्थात चंदन और कीचड़ में विवाद हुआ और मेंढक को मध्यस्थ बनाया गया। चूँकि मेंढक कीचड़ में ही रहता है, वह चंदन का साथ भला कैसे दे सकता है?

कृतियाँ संपादित करें

रामनामपंचपंचाशिका, राम महिमा, गंगा शतक, जगन्नाथश्टक, कृष्णाष्टक, रामसहस्त्रगणदण्डक, चित्रपछावली, कालिकाष्टक, तत्वविछोतिनी-पंचपंचाशिका, रामविनय, वि्ज्ञप्तिसार, नीतिशतक, शतोपदेश, ज्ञानभैषज्यमंजरी।

उच्च कोटि की उक्त कृतियों के अलावा हिन्दी, कुमाऊंनी और नेपाली में कवि गुमानी की कई और कवितायें है- दुर्जन दूषण, संद्रजाष्टकम, गंजझाक्रीड़ा पद्धति, समस्यापूर्ति, लोकोक्ति अवधूत वर्णनम, अंग्रेजी राज्य वर्णनम, राजांगरेजस्य राज्य वर्णनम, रामाष्टपदी, देवतास्तोत्राणि।

साँचा:गुमानी पन्त की कृतियाँ

सन्दर्भ संपादित करें

ग्रियर्सन की लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया अंरेजी

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें