गुल्म किसी वृक्ष या अन्य वनस्पति के कटे हुए तने या टहनी को कहते हैं जिसमें से वह वनस्पति फिर से उग सकने में सक्षम हो। यह क्षमता कुछ ही जातियों में होती है, मसलन केवड़ा। जिन वृक्षों में यह क्षमता होती है अक्सर उनके वनों को निचले तने तक काटकर उनकी लकड़ी प्रयोग की जाती है। कुछ वर्षों बाद पेड़ फिर से बढ़ जाता है और उसे पुनः काटा जा सकता है। ऐसे वृक्षों के झुंड जिनमें काटकर केवल गुल्म ही छोड़ दिये गये हों उन्हे गुल्म दल (copse, कॉप्स) कहा जाता है।[1] किसी वृक्षों के झुंड को काटकर उनके गुल्म छोड़ देने को गुल्मकारी (coppicing) कहते हैं और यह मानना है कि मानव इसे हज़ारों वर्षों से करते आये हैं।[2] भारत में साल का वृक्ष पारम्परिक रूप से गुल्म करा जाता है।[3]

ऐल्डर नामक वृक्ष-जाति का एक गुल्म दल। इन कटे हुए गुल्मों से जल्दी ही टहनियाँ निकलने लगेंगी।
७ से २० वर्षों तक चलने वाला गुल्म चक्र - वृक्ष काटकर गुल्म छोड़े जाते हैं और फिर से उग जाते हैं।

चित्रदीर्घा

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इन्हें भी देखें

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  1. "यजुर्वेद संहिता[मृत कड़ियाँ]," "... वनों के गुल्म-वीरूद्ध (काटने पर पुनः बढ़ने वाले) ..."
  2. Coles, J M (1978). Limbrey, Susan and J G Evans (संपा॰). "Man and landscape in the Somerset Levels" (PDF). The effect of man on the landscape: the Lowland Zone. London: 86–89. मूल (PDF) से 27 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2018.
  3. "Coppice on sal tree (Shorea robusta ) – 2714050". मूल से 29 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 April 2014.