गोण्डा जिला

उत्तर प्रदेश का जिला

गोण्डा ज़िला भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। इस जिले का मुख्यालय गोण्डा है। सरयू और घाघरा नदी के प्रवाह क्षेत्र में बसे होने के नाते यह ज़िला उत्तर प्रदेश के सबसे उपजाऊ जिलों में शामिल है।

गोण्डा ज़िला

उत्तर प्रदेश में गोण्डा ज़िले की अवस्थिति
राज्य उत्तर प्रदेश
 भारत
प्रभाग देवीपाटन
मुख्यालय गोण्डा
क्षेत्रफल 4,448 कि॰मी2 (1,717 वर्ग मील)
जनसंख्या 3,431,386 (2011)
शहरी जनसंख्या करनैलगंज "नवाबगंज "गोण्डा
साक्षरता 61.16 per cent
तहसीलें तरबगँज" मनकापुर " करनैलगंज "गोण्डा सदर
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र गोण्डा लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र
विधानसभा सीटें गौरा "मनकापुर "तरबगँज "गोण्डा "मेहनोन "कटरा बाजार "करनैलगंज
आधिकारिक जालस्थल

इतिहास के एक लम्बे समय प्रवाह में इस जनपद ने अपनी एक विशेष पहचान बना रखी है। प्राचीन काल में इसके वर्तमान भूभाग पर श्रावस्ती का अधिकांश भाग और कोशल महाजनपद फैला हुआ था। महात्मा गौतम बुद्ध के समय इसे एक नयी पहचान मिली। यह उस दौर में इतना अधिक प्रगतिशील एवं समृद्ध था कि महात्मा बुद्ध ने यहाँ २१ वर्ष प्रवास में बिताये थे।[1] गोण्डा जनपद प्रसिद्ध उत्तरापथ के एक छोर पर स्थित है। प्राचीन भारत में यह हिमालय के क्षेत्रों से आने वाली वस्तुओं के अग्रसारण स्थल की तरह काम करता था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपने विभिन्न उत्खननों में इस जिले की प्राचीनता पर प्रकाश डाला है।[2] गोण्डा एवं बहराइच जनपद की सीमा पर स्थित सहेत महेत से प्राचीन श्रावस्ती की पहचान की जाती है। जैन ग्रंथों में श्रावस्ती को उनके तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ और आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभनाथ की जन्मस्थली बताया गया है। वायु पुराण और रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार श्रावस्ती उत्तरी कोशल की राजधानी थी जबकि दक्षिणी कोशल की राजधानी साकेत हुआ करती थी।[3] वास्तव में एक लम्बे समय तक श्रावस्ती का इतिहास ही गोण्डा का इतिहास है। सम्राट हर्षवर्धन (शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.) के राज कवि बाणभट्ट ने अपने प्रशस्तिपरक ग्रन्थ हर्षचरित में श्रुत वर्मा नामक एक राजा का उल्लेख किया हैं जो श्रावस्ती पर शासन करता था। दंडी के दशकुमारचरित में भी श्रावस्ती का वर्णन मिलता है। श्रावस्ती को इस बात का श्रेय भी जाता है कि यहाँ से आरंभिक कुषाण काल में बोधिसत्व की मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं। लगता है कि कुषाण काल के पश्चात् इस महत्त्वपूर्ण नगर का पतन होने लगा था। राम शरण शर्मा जैसे इतिहासकारों ने इसे गुप्त काल में नगरों के पतन और सामंतवाद के उदय से जोड़कर देखा है।

इसके बावजूद जेतवन का बिहार लम्बे समय तक, लगभग आठवीं एवं नौवीं शताब्दियों तक, अस्तित्व में बना रहा।[4] मध्यकालीन भारत में गोण्डा एक महत्वपूर्ण स्थान बनाये रखने में सफल रहा। सन १०३३ में किंवदंती अनुसार राजा सुहेलदेव ने सैय्यद मसूद गाजी से टक्कर ली थी। यह भी इतिहास का एक रोचक तथ्य है कि दोनों ही शहर-गोण्डा और बहराइच पूरे देश में समादृत हैं। एक दूसरी लड़ाई मसूद के भतीजे हटीला पीर के साथ अशोकनाथ महादेव मंदिर के पास भी हुई थी जिसमें हटीला पीर मारा गया। अशोकनाथ महादेव मंदिर राजा सुहेलदेव द्वारा बनवाया गया था। जिस पर बाद में हटीला पीर का गुम्बद बनवा दिया गया।[5] .

  1. अदभुत भारत, शिवलाल अग्रवाल एंड कंपनी, आगरा
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जुलाई 2010.
  3. उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, गोण्डा, कैलाश नारायण पाण्डेय,1989, पृष्ठ 17
  4. (लाल, बी० सी०, मेमोरीज़ ऑफ़ आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, श्रावस्ती इन इंडियन लिट्रेचर, दिल्ली १९३५)
  5. Nevile.H.R.,:Gonda:A Gazetteer, Allahabd,1921, page 138-178