सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी
हजरत सैय्यद सालार मसूद ग़ाज़ी | |
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![]() हजरत सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की मजार | |
जन्म |
हजरत सैय्यद मसूद 10 फरवरी सन् 1014 ईस्वी अजमेर राजस्थान भारत |
मौत |
15 जून सन् 1034 ईस्वी बहराइच उत्तर प्रदेश [[भारत] |
समाधि |
दरगाह शरीफ बहराइच 27°35′37.7″N 81°36′52.7″E / 27.593806°N 81.614639°E |
उपनाम | ग़ाज़ी सरकार |
जाति | सुन्नी इस्लाम |
पदवी | ग़ाज़ी |
प्रसिद्धि का कारण | अजमेर से बहराइच आकर जंग की |
अवधि | 1014 से 1034 तक |
धर्म | इस्लाम |
माता-पिता | सालार (पिता) |
संबंधी | हजरत सुलतान महमूद ग़ज़नवी (मामा) |
समाधि | दरगाह शरीफ बहराइचभारत |
उल्लेखनीय कार्य
सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी के उल्लेखनीय कार्य निम्न है :
- सोमनाथ को ध्वस्त करने के इरादे से आक्रमण करना।[1]
ब्रिटिश काल
19वीं शताब्दी में, ब्रिटिश प्रशासक मसूद के प्रति हिंदू लोगों की श्रद्धा से हतप्रभ थे।[5] विलियम हेनरी स्लीमन, अवध में ब्रिटिश रेजिडेंट ने टिप्पणी की:[6]
“ | यह कहना अजीब है कि मुसलमान के साथ-साथ हिन्दू भी इस दरगाह में चढ़ावा चढ़ाते हैं, और इस सैन्य गुण्डे के पक्ष में प्रार्थना करते हैं, जिसकी एकमात्र दर्ज योग्यता यह है कि उसने अपने क्षेत्र पर अनियंत्रित और अकारण आक्रमण में बड़ी संख्या में हिंदुओं को नष्ट कर दिया। | ” |
किंवदंती
सन् 1011 में अजमेर मुस्लिम सुल्तान महमूद से मदद की माँग की। महमूद के सेनापति सालार साहू ने अजमेर और आस-पास के क्षेत्रों के हिंदू शासकों को हराया। एक इनाम के रूप में महमूद ने अपनी बहन का सालार से विवाह किया। मसूद इसी विवाह का बालक था। मसूद का जन्म अजमेर में 10 फरवरी सन् 1014 में हुआ था।
फौजी और धार्मिक उत्साह से प्रेरित, मसूद ने ग़ज़नवी सम्राट से भारत आने और इस्लाम फैलाने की अनुमति माँगी। 16 साल की उम्र में, उसने सिंधु नदी पार करते हुए भारत पर हमला किया। उसने मुल्तान पर विजय प्राप्त की और अपने अभियान के 18वें महीने में, वह दिल्ली के पास पहुँचे। गज़नी से बल वृद्धि के बाद उन्होंने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और 6 महीने तक वहाँ रहे। उसके बाद उसने कुछ प्रतिरोध के बाद मेरठ पर विजय प्राप्त की। इसके बाद वह कन्नौज चला गये।
महाराजा सुहेलदेव नामक शासक के आगमन तक, बहराइच में अपने हिंदू दुश्मनों को मसूद हराता चला गया। वह 15 जून 1034 को सुहेलदेव के खिलाफ लड़ाई में घातक रूप से घायल हो गया ।[7] मरने के दौरान, उन्होंने अपने अनुयायियों से जंगल में स्थित तालाब के तट पर , एक कुआ के निकट, उन्होंने दफनाने के लिए कहा। क्योंकि उस ने हज़ारो हिन्दुओं की हत्या की थी , इस लिए उसे गाज़ी (धार्मिक योद्धा) के रूप में जाना जाने लगा।
वर्तमान
2019 तक, मसूद के दरगाह में आयोजित वार्षिक मेले के अधिकांश आगंतुक हिंदू थे। सालार मसूद की महिमा करने वाली स्थानीय किंवदंतियों के मुताबिक, उसको पराजित करने वाला महाराजा सुहेलदेव पासी एक पराक्रमी राजा था. जिसने अपनी प्रजा का उद्धार किया था। लेकिन हिन्दुओं द्वारा सुहेलदेव पासी को एक हिन्दू व्यक्ति रूप में चित्रित किया है ,जो क्रूर मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ा था। वही मसूद को एक विदेशी आक्रांता के रूप में चित्रित किया है जिसने हज़ारो हिंदुओं का नाश किया। जंग में लड़ते हुए मर जाने पर मुस्लिमो द्वारा शहीद और जंग पर हार प्राप्त करने पर ग़ाज़ी की उपाधि से सम्मानित किया जाता है।
सन्दर्भ
- ↑ अ आ Anna Suvorova 2004, p. 157.
- ↑ Shahid Amin 2016, p. xiii.
- ↑ अ आ Anna Suvorova 2004, p. 158.
- ↑ अ आ W.C. Benett 1877, p. 111–113.
- ↑ Anna Suvorova 2004, p. 160.
- ↑ P. D. Reeves 2010, p. 69.
- ↑ "निनाद : अतीत का तिलिस्म और गाजी मियां". जनसत्ता. 18 नव्मबर 2015. मूल से से 3 जुलाई 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 2 जुलाई 2018.
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