चक्रव्यूह- कविता संग्रह

कुँवर नारायण का पहला कविता-संग्रह चक्रव्यूह है, इस संग्रह से कवि का रंगप्रवेश भले ही हो रहा हो, वे प्रशंसनीय धीरता और खासी कुशलता से मंच पर अवतरित होते हैं। इन कविताओं के माध्यम से कवि के मानस और व्यक्तित्व की जो झलक दिखती है, वह पाठक में और भी जानने की इच्छा जगाती है। स्वागं भरने, मुद्रा ग्रहण करने से इनकार करते हुए कुँवर नारायण सचमुच आधुनिक हैं और सचमुच ही कवि हैं। उन्होंने बहुत कुछ जमा दिया है, वह किताबों से हो या मनुष्यों और स्मृतियों की दुनिया में रहने से। और उन्होंने इस सबको अपने मानस में उतरकर अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाने दिया है। उनके विषय, जो वह कहते हैं और जैसे वह कहते हैं, सब उनके एकदम अपने हैं। विचार की अन्तर्वस्तु काफी ही नहीं, कई बार काफी से कुछ ज्यादा होती दिखती है- लेकिन है वह उनकी अपनी, निजी। अगर अन्तिम काव्यात्मक अभिव्यक्ति में कई विभिन्न स्त्रोतों का योगदान रहा है, तो यह योगदान उनके ग्रहणशील, बेहतर संवेदनशील मानस में हुआ है, सीधे उनकी कविता में नहीं।

चक्रव्यूह- कविता संग्रह  

मुखपृष्ठ
लेखक कुँवर नारायण
देश भारत
भाषा हिंदी
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन,
प्रकाशन तिथि १९५६