चारा
गाय, बैल, भैंस, बकरी, घोड़ा आदि पालतू पशुओं को खिलाये जाने योग्य सभी चीजें चारा या 'पशुचारा' या 'पशु आहार' कहलातीं हैं। पशु को 24 घंटों में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भोज्य तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते हैं। जिस आहार में पशु के सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित अनुपात तथा मात्रा में उपलव्ध हों, उसे संतुलित आहार कहते हैं।
गाय व भैंसों में सन्तुलित आहार
संपादित करेंवैज्ञानिक दृष्टि से दुधारू पशुओं के शरीर के भार के अनुसार उसकी आवश्यकताओं जैसे जीवन निर्वाह, विकास, तथा उत्पादन आदि के लिए भोजन के विभिन्न तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, विटमिन्स तथा पानी की आवश्यकता होती है।
पशुओं में आहार की मात्रा उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन की अवस्था पर निर्भर करती है। पशु को कुल आहार का 2/3 भाग मोटे चारे से तथा 1/3 भाग दाने के मिश्रण द्वारा मिलना चाहिए। मोटे चारे में दलहनी तथा गैर दलहनी चारे का मिश्रण दिया जा सकता है। दलहनी चारे की मात्रा आहार में बढ़ाने से काफी हद तक दाने की मात्रा को कम किया जासकता है। वैसे तो पशु के आहार की मात्रा का निर्धारण उस के शरीर की आवश्यकता व कार्य के अनुरूप तथा उपलब्ध भोज्य पदार्थों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के आधार पर गणना करके किया जाता है लेकिन पशुपालकों को गणना कार्य की कठिनाई से बचाने के लिए थम्ब रूल को अपनाना अधिक सुविधा जनक है। इसके अनुसार हम मोटे तौर पर व्यस्क दुधारू पशु के आहार को तीन वर्गों में बांट सकते हैं।
- (1) जीवन निर्वाह के लिए आहार
- (2) उत्पादन के लिए आहार, तथा
- (3) गर्भावस्था के लिए आहार।
जीवन निर्वाह के लिए आहार
संपादित करेंयह आहार की वह मात्रा है जिसे पशु को अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दिया जाता है। इसे पशु अपने शरीर के तापमान को उचित सीमा में बनाए रखने , शरीर की आवश्यक क्रियायें जैसे पाचन क्रिया, परिवहन, श्वसन, उत्सर्जन, चयापचय आदि के लिए काम में लाता है। इससे उसके शरीर का बजन भी एक सीमा में स्थिर बना रहता है। चाहे पशु उत्पादन में हो या न हो इस आहार को उसे देना ही पड़ता है इसके अभाव में पशु कमजोर होने लगता है जिसका असर उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन क्षमता पर पड़ता है। इस में देसी गाय (जेबू) के लिए तूड़ी अथवा सूखे घास की मात्रा 4 किलो तथा संकर गाय , शुद्ध नस्ल की देशी गाय अथवा भैंस के लिए यह मात्रा 4 से 6 किलो तक होती है। इसके साथ पशु को दाने का मिश्रण भी दिया जाता है जिसकी मात्रा स्थानीय देसी गाय (जेबू) के लिए 1 से 1.25 किलो तथा संकर गाय, शुद्ध नस्ल की देशी गाय या भैंस के लिए इसकी मात्रा 2.0 किलो रखी जाती है। इस विधि द्वारा पशु को खिलाने के लिए दाने का मिश्रण उचित अवयवों को ठीक अनुपात में मिलाकर बना होना आवश्यक है। इसके लिए पशुपालक स्वयं निम्नलिखित घटकों को दिए हुए अनुपात में मिलाकर सन्तोषजनक पशु दाना बना सकते हैं।
- मोटे अनाज (गेहूं, जौ, मक्की, जुआर आदि) --- 25-35 प्रतिशत
- अनाज के उप-उत्पाद (बाईप्रोडकक्ट) (चोकर, चून्नी, चावल की फक आदि) --- 10-30 प्रतिशत
- खनिज मिश्रण --- 2 प्रतिशत
- आयोडीन युक्त नमक --- 1 प्रतिशत
- विटामिन्स ए.डी.-3 का मिश्रण --- 20-30 ग्रा. प्रति 100 किलो
उत्पादन के लिए आहार
संपादित करेंउत्पादन आहार पशु आहार की वह मात्रा है जिसे कि पशु को जीवन निर्वाह के लिए दिए जाने वाले आहार के अतिरिे उसके दूध उत्पादन के लिए दिया जाता है। इसमें स्थानीय गाय (जेबू)के लिए प्रति 2.5 किलो दूध के उत्पादन के लिए जीवन निर्वाह आहार के अतिरिे 1 किलो दाना देना चाहिए जबकि संकर/देशी दुधारू गायों/भैंसों के लिए यह मात्रा प्रति 2 किलो दूध के लिए दी जाती है। यदि हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो हर 10 किलो अच्छे किस्म के हरे चारे को देकर 1 किलो दाना कम किया जा सकता है। इससे पशु आहार की कीमत कुछ कम हो जाएगी और उत्पादन भी ठीक बना रहेगा। पशु को दुग्ध उत्पादन तथा जीवन निर्वाह के लिए साफ पानी दिन में कम से कम तीन बार जरूर पिलाना चाहिए।
गर्भावस्था के लिए आहार
संपादित करेंपशु की गर्भावस्था में उसे 5वें महीने से अतिरिे आहार दिया जाता है क्योंकि इस अवधि के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे की वृद्धि बहुत तेजी के साथ होने लगती है। अतः गर्भ में पल रहे बच्चे की उचित वृद्धि व विकास के लिए तथा गाय/भैंस के अगले ब्यांत में सही दुग्ध उत्पादन के लिए इस आहार का देना नितान्त आवश्यक है। इसमें स्थानीय गायों (जेबू कैटल) के लिए 1.25 किलो तथा संकर नस्ल की गायों व भैंसों के लिए 1.75 किलो अतिरिक्त् दाना दिया जाना चाहिए। अधिक दूध देने वाले पशुओं को गर्भावस्था के 8वें माह से अथवा ब्याने के 6 सप्ताह पहले उनकी दुग्ध ग्रन्थियों के पूर्ण विकास के लिए पशु की इच्छानुसार दाने की मात्रा बढ़ा देना चाहिए। इस के लिए जेबू नस्ल के पशुओं में 3 किलो तथा संकर गायों व भैंसों में 4-5 किलो दाने की मात्रा पशु की निर्वाह आवश्यकता के अतिरिे दिया जाना चाहिए। इससे पशु अगले ब्यांत में अपनी क्षमता के अनुसार अधिकतम दुग्धोत्पादन कर सकते हैं।
इन्हें भी देखें
संपादित करें- भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी (Indian Grassland and Fodder Research Institute)
- यूरिया उपचार
- साइलेज (Silage)
- पुआल
- सूखी घास (Hay)
- चरागाह
बाहरी कड़ियाँ
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